International Relations notes pdf in Hindi for UPSC

International Relations notes pdf in Hindi for UPSC

International Relations notes pdf in Hindi for UPSC

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Most Important International Relations Question Answer

प्रश्न : बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम में भारत की सहायता के परिणामस्वरूप भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में काफी सुधार हुआ लेकिन अभी भी भारत-बांग्लादेश संबंधों में कई चुनौतियाँ हैं। चर्चा कीजिये।

उत्तर :अपने उत्तर की शुरुआत भारत और बांग्लादेश संबंधों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये ।
परिचय

भारत विश्व का पहला देश था जिसने बांग्लादेश को एक पृथक एवं स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की थी और दिसंबर 1971 में इसकी स्वतंत्रता के तुरंत एक मित्र दक्षिण एशियाई पड़ोसी के रूप में बांग्लादेश के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये थे।

भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति में बांग्लादेश एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। बांग्लादेश के साथ भारत के सभ्यतागत, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक संबंध हैं। एक साझा इतिहास एवं विरासत, भाषाई एवं सांस्कृतिक संबंध, संगीत, साहित्य और कला के लिये एकसमान उत्साह आदि दोनों देशों को परस्पर संबद्ध करता है। उल्लेखनीय है कि रवींद्रनाथ टैगोर भारत के साथ ही बांग्लादेश के राष्ट्रगान के भी रचयिता हैं।

प्रारूप भारत और बांग्लादेश के बीच वर्तमान प्रमुख मुद्दे

तीस्ता नदी जल विवाद: तीस्ता नदी भारत से बांग्लादेश में प्रवेश करते हुए बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होती है। पश्चिम बंगाल के लगभग आधा दर्जन ज़िले इस नदी पर निर्भरता रखते हैं। यह बांग्लादेश के वृहत रंगपुर क्षेत्र में धान की खेती के लिये सिंचाई की एक प्रमुख स्रोत भी है।
बांग्लादेश की शिकायत है कि उसे जल का उचित हिस्सा प्राप्त नहीं होता है। चूँकि भारत में जल राज्य सूची का विषय है, इसलिये बंगाल की राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच असहमति से बाधा की स्थिति बनती है।
तीस्ता जल बँटवारे विवाद को सुलझाने के लिये अभी तक दोनों देशों के बीच किसी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया गया है।
अवैध प्रवासन: बांग्लादेश से भारत में अवैध आप्रवासन (जिसमें शरणार्थी और आर्थिक प्रवासी दोनों शामिल हैं) बेरोकटोक जारी है।
सीमा पार से ऐसे प्रवासियों की बड़ी संख्या के आगमन ने बांग्लादेश की सीमा से लगे भारतीय राज्यों के लोगों के लिये गंभीर सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक समस्याएँ खड़ी कर दी हैं, जो इसके संसाधनों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये गंभीर निहितार्थ रखते हैं।
यह समस्या तब और जटिल हो गई जब मूल रूप से म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसपैठ करने लगे।
इसके अलावा, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)—जो भविष्य में बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के भारत में प्रवेश पर रोक का लक्ष्य रखता है, ने भी बांग्लादेश में गहन चिंता को जन्म दिया है।
मादक द्रव्यों की तस्करी: सीमा पार से मादक द्रव्यों की तस्करी की कई घटनाएँ सामने आई हैं। इसके अलावा, मानव तस्करी (विशेषकर बच्चों और महिलाओं की तस्करी) और सीमा क्षेत्र में विभिन्न वन्यजीवों एवं पक्षियों के अवैध शिकार की घटनाएँ भी होती रहती हैं।
आतंकवाद: सीमा क्षेत्र आतंकवादी घुसपैठ के लिये अतिसंवेदनशील हैं। जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) जैसे कई आतंकी संगठन भारत भर में अपना जाल फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
JMB को बांग्लादेश, भारत, मलेशिया और यूनाइटेड किंगडम द्वारा एक आतंकवादी समूह के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (NIA) ने भोपाल की एक विशेष न्यायालय में JMB के 6 सदस्यों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की है।
बांग्लादेश में बढ़ता चीनी प्रभाव: बांग्लादेश चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) का एक सक्रिय भागीदार है, जबकि भारत इसका अंग नहीं है।
इसके अलावा, बांग्लादेश ने रक्षा क्षेत्र में पनडुब्बियों सहित अन्य चीनी सैन्य उपकरणों का आयात किया है जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रमुख चिंता का विषय है।
आगे की राह

तीस्ता नदी जल विवाद को संबोधित करना: तीस्ता नदी के जल के बँटवारे की सीमा के निर्धारण और एक परस्पर समझौते तक पहुँचने की दिशा में आम सहमति स्थापित करने के लिये पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार दोनों को आपसी समझ के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये और सहकारी संघवाद का संकेत देना चाहिये।
बेहतर संपर्क: तटीय संपर्क, सड़क, रेल और अंतर्देशीय जलमार्गों में सहयोग को मज़बूत कर इस भूभाग में कनेक्टिविटी/संपर्क बढ़ाने की आवश्यकता है।
ऊर्जा सुरक्षा: चूँकि वैश्विक ऊर्जा संकट का उभार जारी है, यह अपरिहार्य है कि भारत और बांग्लादेश दक्षिण एशिया को पर्याप्त ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाने हेतु स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा का उपयोग करने में परस्पर सहयोग करें।
भारत बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन: यह परियोजना भूमिगत रूप से से शुरू की जा रही है और इसके पूरा होने पर भारत से उत्तरी बांग्लादेश में डीजल की उच्च गति से आवाजाही हो सकेगी।
बांग्लादेश ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड को परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों की सरकार-से-सरकार आपूर्ति हेतु एक पंजीकृत एजेंसी के रूप में स्वीकार किया है।
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) की ओर ध्यान केंद्रित करना: बांग्लादेश वर्ष 2026 तक एक अल्प विकसित देश (LDC) से एक विकासशील देश में परिणत हो जाएगा और फिर अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के तहत LDC को प्राप्त व्यापार और अन्य लाभों का पात्र नहीं रह जाएगा।
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) के माध्यम से बांग्लादेश इस संक्रमण का प्रबंधन कर सकने और अपने व्यापार विशेषाधिकारों को संरक्षित रख सकने में सक्षम होगा। यह भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक संबंधों को भी मज़बूत करेगा।
चीन के प्रभाव का मुक़ाबला करना: परमाणु प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, आधुनिक कृषि तकनीकों और बाढ़ डेटा विनिमय के साथ बांग्लादेश की सहायता करने से उसके साथ भारत के संबंधों को और मज़बूती मिलेगी और यह चीन के प्रभाव का काफी हद तक मुक़ाबला करने में भारत की मदद करेगा।
शरणार्थी संकट से निपटना: भारत और बांग्लादेश दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में अन्य देशों को शरणार्थियों पर सार्क घोषणा का विकास करने और शरणार्थियों एवं आर्थिक प्रवासियों की स्थिति निर्धारित करने के लिये एक विशिष्ट प्रक्रिया निर्धारित करने हेतु अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

प्रश्न : एस.सी.ओ. के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है? (250 शब्द)

उत्तर :
शंघाई में स्थापित शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation–SCO) एक अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता को बनाए रखना है। वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान को इसके सदस्य का दर्जा मिला।

SCO के लक्ष्य एवं उद्देश्य

सदस्य देशों के मध्य परस्पर विश्वास तथा सद्भाव को मज़बूत करना।
राजनीतिक, व्यापारिक एवं आर्थिक, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, इत्यादि क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ाना।
संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना तथा सुनिश्चिता प्रदान करना।
एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना।
हालाँकि, इस संगठन में शामिल देश मिलकर अलग-अलग एवं परस्पर विरोधी हितों का एक जटिल मेट्रिक्स बनाते हैं। उदाहरण के लिये, भारत-पाकिस्तान-रूस-चीन संबंध। वहीं चीन की नीतियाँ; जैसे- चेक-बुक पॉलिसी, वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी, मानवाधिकार उल्लंघन या हॉन्गकॉन्ग मुद्दा आदि SCO के लक्ष्य एवं उद्देश्यों को लेकर चीन की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल उठाते हैं। जहाँ SCO के ज़रिये चीन ने आर्थिक सहयोग के नाम पर अपने BRI प्रोजेक्ट को विस्तार दिया है, तो वहीं पाकिस्तान और चीन के आतंकवादी एवं अलगाववादी संगठनों के समर्थन से क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) की मूल भावना को धूमिल किया है। इसके अलावा कोविड-19 के दौरान SCO देशों के बीच सीमित विकासात्मक सहयोग जुड़ाव की कमी को दर्शाता है।

भारत के लिये SCO का महत्त्व

SCO को दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है और इसमें शामिल होने से भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व बढ़ा है।
SCO की भारत की सदस्यता मध्य एशियाई देशों के खनिज एवं ऊर्जा संसाधनों तक पहुँच प्रदान करके ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा दे सकती है।
भारत को मध्य एशिया के देशों से आर्थिक संबंधों का विस्तार करके सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, बैंकिंग, वित्तीय तथा फार्मा उद्योगों आदि हेतु एक विशाल बाज़ार प्राप्त हो सकता है।
भारत विस्तारित पड़ोस (मध्य एशिया) में सक्रिय भूमिका निभा सकता है तथा साथ ही यूरेशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम एवं चीन के साथ मिलकर अमेरिका को काउंटर करने का प्रयास भी कर सकता है।
SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना के माध्यम से भारत आतंकवाद, उग्रवाद और कटेरपंथ का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भारत को इसके माध्यम से क्षेत्रीय एकीकरण, सीमाओं के पार संपर्क एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है।

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Most Important International Relations Question Answer

प्रश्न : ब्रिक्स एक हद तक सफल रहा है लेकिन अब उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में समूह की स्थिरता बनाए रखने के लिये उठाए जाने वाले कदमों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

उत्तर :

उत्तर की शुरुआत ब्रिक्स समूह की सफलता के बारे में लिखते हुए कीजिये।
वर्तमान समय में ब्रिक्स के सामने आने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
भविष्य में समूह की प्रासंगिकता और उपयोगिता बनाए रखने के लिये आगे की राह सुझाइये।
ब्रिक्स विश्व की आबादी के 42%, भूमि क्षेत्र के 30%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 24% और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के 16% का प्रतिनिधित्व करता है। इसने वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने का प्रयास किया है। BRICs ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया ताकि वे विश्व अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों और उभरते बाज़ारों की तेज़ी से बढ़ती केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित कर सकें।

ब्रिक्स के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त: समूह के समक्ष संघर्ष की कई स्थितियाँ मौजूद रही हैं। जैसे, पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता से भारत-चीन संबंध पिछले कई दशकों में अपने निम्नतम स्तर पर आ गया है।
पश्चिम के साथ चीन और रूस के तनावपूर्ण संबंधों और ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका में व्याप्त गंभीर आंतरिक चुनौतियाँ जैसी वास्तविकताओं का सामना भी यह समूह कर रहा है।
इधर दूसरी ओर कोविड-19 के कारण वैश्विक स्तर पर चीन की छवि खराब हुई है। इस पृष्ठभूमि में ब्रिक्स की प्रासंगिकता संदेहास्पद बनी है।
विषम जातीयता (Heterogeneity): आलोचकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विषम जातीयता (सदस्य देशों की परिवर्तनशील/भिन्न प्रकृति), जहाँ देशों के अपने अलग-अलग हित हैं, से समूह की व्यवहार्यता को खतरा पहुँच रहा है।
चीन-केंद्रित समूह: ब्रिक्स समूह के सभी देश चीन के साथ एक-दूसरे की तुलना में अधिक व्यापार करते हैं, इसलिये इसे चीन के हित को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में दोषी ठहराया जाता है। चीन के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना अन्य साझेदार देशों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
शासन के लिये वैश्विक मॉडल: वैश्विक मंदी, व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद के बीच, ब्रिक्स के लिये एक प्रमुख चुनौती शासन के एक नए वैश्विक मॉडल का विकास करना है जो एकध्रुवीय नहीं हो, बल्कि समावेशी और रचनात्मक हो।
लक्ष्य यह होना चाहिये कि प्रकट हो रहे वैश्वीकरण के नकारात्मक परिदृश्य से बचा जाए और विश्व की एकल वित्तीय तथा आर्थिक सातत्य को विकृत किये या तोड़े बिना वैश्विक उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक जटिल विलय शुरू किया जाए।
घटती प्रभावकारिता: पाँच शक्तियों का यह गठबंधन सफल रहा है, लेकिन एक सीमा तक ही। चीन के वृहत आर्थिक विकास ने ब्रिक्स के अंदर एक गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। इसके अलावा, समूह ने वैश्विक दक्षिण की सहायता के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किया है, ताकि अपने एजेंडे के लिये उनका इष्टतम समर्थन हासिल कर सके।
आगे की राह

समूह के भीतर सहयोग: ब्रिक्स को चीन की केंद्रीयता के त्याग के साथ एक बेहतर आंतरिक संतुलन के निर्माण की आवश्यकता है, जो क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं के विविधीकरण और सशक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता से प्रबलित हो (जिसकी आवश्यकता महामारी के दौरान उजागर हुई है)।
नीतिनिर्माता कृषि, आपदा प्रत्यास्थता (disaster resilience), डिजिटल स्वास्थ्य, पारंपरिक चिकित्सा और सीमा शुल्क संबंधी सहयोग जैसे विविध क्षेत्रों में इंट्रा-ब्रिक्स सहयोग (intra-BRICS cooperation) में वृद्धि को प्रोत्साहित करते रहे हैं।
ब्रिक्स ने अपने पहले दशक में साझा हितों के मुद्दों की पहचान करने और इन मुद्दों के समाधान के लिये एक मंच के निर्माण के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया था।
अगले दशकों में ब्रिक्स के प्रासंगिक बने रहने के लिये, इसके प्रत्येक सदस्य को इस पहल के अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिये।
बहुपक्षीय विश्व के लिये प्रतिबद्धता: ब्रिक्स देशों को अपने दृष्टिकोण के पुनःव्यासमापन (Recalibration) और अपने आधारभूत लोकाचार के लिये फिर से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। ब्रिक्स को एक बहुध्रुवीय विश्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिये जो संप्रभु समानता और लोकतांत्रिक निर्णय लेने का अवसर देता हो।
उन्हें NDB की सफलता से प्रेरित होना चाहिये और अन्य ब्रिक्स संस्थानों में निवेश करना चाहिये। ब्रिक्स के लिये OECD की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान प्रभाग विकसित करना उपयोगी होगा, जो ऐसे समाधान पेश करेगा जो विकासशील विश्व के लिये अधिक अनुकूल होंगे।
ब्रिक्स को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते (Paris Agreement on climate change) और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (UN’s sustainable development goals) के तहत घोषित अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिये ब्रिक्स-नेतृत्त्व वाले प्रयास पर विचार करना चाहिये। इसमें ब्रिक्स ऊर्जा गठबंधन (BRICS energy alliance) और एक ऊर्जा नीति संस्थान (energy policy institution) स्थापित करने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
ब्रिक्स देशों को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में संकट और संघर्ष के शांतिपूर्ण तथा राजनीतिक-राजनयिक समाधान के लिये भी प्रयास करना चाहिये।
निष्कर्ष

इस प्रकार, ब्रिक्स का भविष्य भारत, चीन और रूस के आंतरिक और बाह्य मुद्दों के समायोजन पर निर्भर करता है। भारत, चीन और रूस के बीच आपसी संवाद आगे बढ़ने के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण होगा।

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Author: Deep

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