Internal security handwritten notes pdf in Hindi for UPPSC

Internal security handwritten notes pdf in Hindi for UPPSC

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Most Important Internal security Question Answer

प्रश्न : ‘पूर्वोत्तर राज्यों के क्षेत्रीय/जातीय तनावों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए हाल ही में हुआ ब्रू शरणार्थी समझौता बेहतर प्रयास है।’ कथन के संदर्भ में ब्रू-मिज़ो संघर्ष के कारणों की चर्चा करते हुए ब्रू शरणार्थी समझौते के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालें।

उत्तर :
• भूमिका।

• ब्रू शरणार्थी समझौता क्या है?

• इस समझौते के तहत विस्थापित ब्रू परिवारों के लिए की गई व्यवस्था क्या है?

• निष्कर्ष।

ब्रू समुदाय भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मिज़ोरम राज्य का एक जनजातीय समुदाय है तथा इस समुदाय को त्रिपुरा राज्य में रियांग नाम से भी जाना जाता है, अतः अलग-अलग स्थानों पर इस समुदाय को ब्रू, रियांग अथवा ब्रू-रियांग नाम से संबोधित किया जाता है।

मिज़ो समुदाय के अनुसार, ब्रू जनजाति के लोग बाहरी (विदेशी) हैं, जो उनके क्षेत्र में आकर बस गए हैं। इन दोनों समुदायों के बीच संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है। वर्ष 1995 में मिज़ोरम राज्य में ब्रू समुदाय द्वारा स्वायत्त ज़िला परिषद की मांग और चुनावों में भागीदारी के कुछ अन्य मुद्दों पर ब्रू और मिज़ो समुदाय के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। वर्ष 1997 में दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़पें पुनः तेज़ हो गईं, इसी दौरान ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट के सदस्यों ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी। इसके बाद दोनों समुदायों के बीच दंगे भड़क गए और अल्पसंख्यक होने के कारण ब्रू समुदाय को मिज़ोरम में अपना घर-बार छोड़कर त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में आश्रय लेना पड़ा। ब्रू समुदाय के लोग पिछले 23 वर्षों से उत्तरी त्रिपुरा के कंचनपुर प्रखंड में स्थायी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

ब्रू शरणार्थी समझौता

उपरोक्त चतुर्पक्षीय समझौते से करीब 23 वर्षों से जारी एक बड़ी समस्या का स्थायी समाधान किया जाएगा। इस समझौते के तहत केंद्र सरकार ने ब्रू-रियांग समुदाय के लोगों के पुनर्वास हेतु त्रिपुरा एवं मिज़ोरम की राज्य सरकारों और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर एक नई व्यवस्था बनाने का फैसला किया है।

इस समझौते के तहत विस्थापित ब्रू परिवारों के लिये निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की गई हैं-

वे सभी ब्रू-रियांग परिवार जो त्रिपुरा में ही बसना चाहते हैं, उनके लिये त्रिपुरा में स्थायी तौर पर रहने की व्यवस्था के साथ उन्हें त्रिपुरा राज्य के नागरिकों के सभी अधिकार दिये जाएंगे।
ये लोग केंद्र सरकार व त्रिपुरा राज्य की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे।
समझौते के तहत विस्थापित परिवारों को 1200 वर्ग फीट (40X30 फीट) का आवासीय प्लाॅट दिया जाएगा।
प्रत्येक विस्थापित परिवार को घर बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए की नकद सहायता प्रदान की जाएगी।
इसके साथ ही हर परिवार को 4 लाख रुपए फिक्स्ड डिपाॅजिट के रूप दिये जाएंगे।
पुनर्वास सहायता के रूप में परिवारों को दो वर्षों तक प्रतिमाह 5 हज़ार रुपए और निःशुल्क राशन प्रदान किया जाएगा।
इस समझौते के तहत सभी प्रकार की नकद सहायता प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benifit Transfer) प्रणाली के माध्यम से सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जमा कराई जाएगी।
राज्य सरकार विस्थापित परिवारों के बैंक खाते, आधार कार्ड, जाति व निवास प्रमाण पत्र तथा मतदाता पहचान पत्र आदि ज़रूरी प्रमाण-पत्रों की व्यवस्था करेगी।
इस नई योजना के लिये भूमि की व्यवस्था त्रिपुरा सरकार द्वारा की जाएगी।
नए समझौते के तहत योजना के लिये केंद्र सरकार द्वारा 600 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी।
16 जनवरी को ब्रू शरणार्थियों की समस्या को लेकर हुए इस समझौते के बाद लगभग दो दशक से अधिक समय से चली आ रही इस समस्या का समाधान संभव हो सकेगा। सरकार की इस पहल के बाद इस समुदाय को घर, बिजली, पानी के साथ कई अन्य मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा। ब्रू समुदाय के लोग मतदान के माध्यम से त्रिपुरा सरकार तक अपनी बात पहुँचा सकेंगे। पिछले कुछ वर्षों से शरणार्थी शिविरों में नवजात मृत्यु जैसी गंभीर समस्याओं में वृद्धि हुई थी। इस समझौते के बाद केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इस समुदाय को पुनः मुख्यधारा में शामिल करने में मदद मिलेगी। वर्ष 2018 के समझौते के बाद बड़ी संख्या में ब्रू समुदाय के लोगों ने मिज़ोरम में अपनी सुरक्षा से संबंधित चिंताओं के कारण विरोध जाहिर किया था। अतः इस समझौते के बाद सामुदायिक सौहार्द को बनाए रखते हुए ब्रू जनजाति का सफल पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सकेगा।

प्रश्न :‘वर्तमान वैश्वीकरण एवं संचार क्रांति के युग में परिवर्तित होते युद्ध के स्वरूप में मुख्य चुनौती बाहरी दुश्मन न होकर नागरिक समाज में छिपे अदृश्य दुश्मन हैं।’ टिप्पणी करें।

उत्तर :
• वर्तमान सशक्त भारतीय ढाँचा एवं नवीन चुनौतियाँ।

• विभिन्न जाति वर्गों में विभक्त समाज एवं वंचना के कारण उत्पन्न अदृश्य दुश्मन।

• आंतरिक सुरक्षा हेतु सरकारी ढाँचा एवं नवीन आवश्यकताएँ।

• भविष्य में उत्पन्न चुनौतियाँ।

• नवीन चुनौतियों के समाधान हेतु उपाय।

• निष्कर्ष।

वर्तमान भारत आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त देश है। हमारे पास विशाल सैन्य एवं पुलिस क्षमता और एक सक्षम प्रशासनिक ढाँचा है जिसके चलते हम प्रत्यक्ष रूप से आंतरिक चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं। परंतु वर्तमान वैश्वीकरण एवं संचार क्रांति के युग में परिवर्तित होते युद्ध के स्वरूप में मुख्य चुनौती बाहरी दुश्मन न होकर नागरिक समाज में छिपे अदृश्य दुश्मनों से है।

जैसा कि हम जानते हैं कि भारत विविधतामयी समाज है जिसमें कई धर्म, जाति और वर्गों के लोग एक साथ रहते हुए एक राष्ट्र/देश का निर्माण करते हैं जो कि सामाजिक एवं आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। लेकिन अभी भी देश में विकास के संदर्भ में वंचना व्याप्त है जो कि एकरूपी न होकर बहुरूपी है, जिसके कई चेहरे हैं। इन्हीं वंचनाओं के कारण राष्ट्र/देश की व्यवस्था के प्रति नकारात्मक और अज्ञानता की वजहों से एक अदृश्य तंत्र का निर्माण हो रहा है जो वर्तमान सोशल मीडिया और संचार क्रांति के युग में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिये बड़ी चुनौती है।

हालाँकि भारत ने अपनी आंतरिक सुरक्षा की मज़बूती हेतु गृह मंत्रालय के अधीन आंतरिक सुरक्षा विभाग का गठन किया है जो आंतरिक सुरक्षा पर विशेष नज़र रखता है। साथ ही साथ भारत द्वारा इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं, जैसे राष्ट्रीय जाँच एजेंसी का गठन, इंटेलीजेन्स ब्यूरो, रिसर्च और एनालिसिस विंग आदि। परंतु 21वीं सदी में चौथी पीढ़ी के युद्धों को देखते हुए हमें अभी और प्रयासों की आवश्यकता है।

भविष्य में भारत के समक्ष बड़ी आर्थिक चुनौतियाँ, बड़े आर्थिक अवसर, विशाल आबादी और अधिक समस्याएँ होंगी। ऐसी स्थिति में नागरिक समाजरूपी युद्धस्थल में छिपे अदृश्य दुश्मन भारतीय समाज की अज्ञानता, जटिलता, वर्ग-विभेद, जातीयता आदि को भड़का कर भारतीय सामाजिक ढाँचे को नुकसान पहुँचाकर आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से आतंकवाद, उन्माद, सांप्रदायिकता आदि का प्रचार करना और लोगों की भावनाओं को भड़काना।

इन समस्याओं से निपटने के लिये आंतरिक सुरक्षा कार्य में लगी एजेंसियों, संगठनों, पुलिसकर्मियों आदि को और दक्ष होना होगा तथा नई चुनौतियों के लिये खुद को बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिये प्रयास जारी रखने होंगे। 21वीं सदी में हमें तकनीकी रूप से और दक्ष होना और नई चुनौतियों का सामना करने के लिये हमेशा तैयार रहना होगा। तभी हम इन नवीन समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना कर विश्व में अपनी एक अलग पहचान कायम कर सकते हैं।

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Most Important Internal security Question Answer

प्रश्न : विश्व के अन्य देशों के समान वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण वर्ष 2020 में भारत की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए इस समस्या के समाधान में सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयासों का मूल्यांकन कीजिये।

उत्तर :
• भूमिका।

• भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियां।

• समस्या के समाधान में सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयास।

• निष्कर्ष।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा कि वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था तकरीबन 1 प्रतिशत तक कम हो सकती है। साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि यदि बिना पर्याप्त राजकोषीय उपायों के आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और अधिक बढ़ाया जाता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है। विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह जाएगी, तो वहीं 2020-21 में तुलनात्मक आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी जो घटकर मात्र 2.8 प्रतिशत रह जाएगी।

वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ विद्यमान हैं –

सकल घरेलू उत्पाद: विभिन्न रेटिंग एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिये अपने संशोधित अनुमानों में जीडीपी वृद्धि दर में उल्लेखनीय कमी का अनुमान लगाया है। उदाहरण के लिये इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने हाल ही में भारत के विकास पूर्वानुमान को संशोधित करके 6 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत कर दिया है।
रिवर्स माइग्रेशन: लॉकडाउन के कारण निर्माण, विनिर्माण और तमाम आर्थिक गतिविधियों के बंद होने से प्रवासी मज़दूर महानगरों से अपने गाँव की ओर लौट रहे हैं। जिससे महानगरों की आर्थिक गतिविधियाँ लॉकडाउन में छूट देने के बावज़ूद सुचारू रूप से कार्य नहीं कर पा रही हैं। इन महानगरों आने वाले कुछ समय तक मानव संसाधन की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मांग में गिरावट: लॉकडाउन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि गतिविधियाँ ठप्प हैं परिणामस्वरूप कृषकों की आय समाप्त हो गई है। कृषकों की आय समाप्त होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होने वाली मांग तेज़ी से घट रही है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन और नाबार्ड के अखिल भारतीय वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों से कृषि के दौरान ग्रामीण परिवारों की आय स्थिर रही है।
ग्रामीण बाज़ार की तालाबंदी: वैश्विक महामारी और जारी लॉकडाउन के कारण ग्रामीण बाज़ार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बाज़ार बंद होने के कारण थोक कृषि, बागवानी और डेयरी उत्पादन से संबंधित आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जिसके कारण किसान अपनी उपज को न्यूनतम मूल्य पर बेचने में असमर्थ हैं।
न्यून कृषि गतिविधियाँ: पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कृषि संपन्न राज्यों में व्यापक तौर पर कृषि कार्य किया जाता है, रिवर्स माइग्रेशन के कारण इन राज्यों में खड़ी फसल को काटने के लिये पर्याप्त मज़दूर नहीं मिल पा रहे हैं जिससे खड़ी फसल बर्बाद हो गई है और अब किसान अगली फसल की बुवाई नहीं करना चाहते हैं।
उत्पादन में कमी: लॉकडाउन के कारण उद्योगों में काम न होने से उत्पादन में गिरावट हुई है। किंतु लॉकडाउन के समाप्त होने के बाद भी मानव संसाधन की आपूर्ति न हो पाने के कारण इन उद्योगों में पुनः उत्पादन होने की संभावना काफी कम है।
उपरोक्त समस्याओं के मद्देनज़र सरकार के द्वारा निम्नलिखित प्रयास किए गये हैं –

भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है।
यह पैकेज COVID-19 महामारी की दिशा में सरकार द्वारा की गई पूर्व घोषणाओं तथा RBI द्वारा लिये गए निर्णयों को मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपये का है।
यह आर्थिक पैकेज भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ के लगभग 10% के बराबर है। पैकेज में भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
सरकार द्वारा पैकेज के तहत घोषित प्रत्यक्ष उपायों में सब्सिडी, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, वेतन का भुगतान आदि शामिल होते हैं। जिसका लाभ वास्तविक लाभार्थी को सीधे प्राप्त होता है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग तथा अन्य क्षेत्रों के लिये सरकार द्वारा विभिन्न क्रेडिट गारंटी योजनाओं की घोषणा की गई है।
निष्कर्षतः भारत सरकार को स्वास्थ्य प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हुए लगातार विकास की गति का अवलोकन करने की आवश्यकता है।

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Author: Deep

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