Essay on Demonetization in Hindi for RAS EXAM
Hello Aspirants,
आज के लेख में हम जिस विषय पर चर्चा करेंगे वह है – नोट-बंदी या विमुद्रीकरण। नोट-बंदी या विमुद्रीकरण से सम्बंधित आपकी सभी उलझनों को इस लेख के माध्यम से सुलझाने का प्रयास किया गया है। इस लेख में नोट-बंदी या विमुद्रीकरण क्या है? इसकी आवश्यकता क्यों होती है? भारत में आज तक कितनी बार नोट-बंदी या विमुद्रीकरण किया गया है? नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के लाभ और हानियाँ क्या-क्या हुई? इसके क्या-क्या परिणाम निकले? इन सभी पृष्ठों को विस्तार के साथ बताया गया है और हम आशा करते हैं कि हमारा यह लेख आपके सभी प्रश्नों का उत्तर देने में समर्थ होगा।
प्रस्तावना
भारत एक विकासशील देश है जो दिन-प्रति दिन विकास की बुलंदियों को छूता जा रहा है। ऐसे में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नोट-बंदी करने का निर्णय एक बहुत ही कठिन निर्णय था, जो की भारत की केंद्र की मोदी सरकार ने लिया। ऐसे में बहुत से आम लोगों को तकलीफ हुई परन्तु भ्रष्टाचार और काला धन जैसी समस्या कम हुई, जिसके कारण कहा जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार की नई क्रान्ति आई है।
नोट बंदी के बाद नागरिकों को एक सीमित समय सीमा दी जाती है जिसके अंतर्गत वो बैंको में जाकर बंद हुए नोटों को जाकर बदलवा सकते हैं और उतनी ही कीमत के नए नोट ले सकते हैं।
विमुद्रीकरण से काला धन, आतंकवाद और नशे पर लगाम लगी है और साथ ही भारत डीजिटल भी हुआ है क्योंकि नोट-बंदी के दौरान सारा लेन देन डीजिटल ही हुआ था। विमुद्रीकरण देश के लिए लाभकारी साबित हुआ है।
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Demonetization
प्रस्तावना
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण का अर्थ
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की आवश्यकता
भारत में नोट-बंदी या विमुद्रीकरण कब-कब और कितनी बार
8 नवम्बर, 2016 की नोट-बंदी या विमुद्रीकरण
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण का विरोध
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण पर मिडिया की भूमिका
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के लाभ
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की हानियाँ
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के परिणाम
उपसंहार
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण का अर्थ
नोट-बंदी को ही विमुद्रीकरण कहा जाता है। नोट-बंदी या विमुद्रीकरण का अर्थ है किसी भी देश में सरकार द्वारा बड़े मूल्य के नोटों को बंद करना या उनके प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना जिससे वे किसी भी काम के नही रहते। न ही उनसे कोई लेन देन किया जा सकता है, न ही कुछ खरीदा जा सकता है।
दूसरे शब्दों में – जब पुराने नोटों और सिक्कों को बंद करके नए नोट और सिक्के चलाए जाते हैं उसे नोट-बंदी या विमुद्रीकरण कहते हैं।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सरकार देश में प्रचलित पुरानी मुद्रा को बंद कर देती है और नई मुद्रा लागू करती है। विमुद्रीकरण के अंतर्गत ज्यादातर बड़े नोटों को ही बदला जाता है। जब नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के नए नोट समाज में आ जाते हैं तो पुराने नोटों की कोई कीमत नहीं रहती। पुराने नोटों को बैंकों और एटीएम से बदलवाया जाता है। नोटों को बदलवाने के लिए समय निर्धारित किया जाता है। नोटों को बैंक की मदद से बदलवाया जा सकता हैं।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की आवश्यकता
सबसे पहले सभी के ज़हन में यह सवाल उठता है कि आखिर किसी भी देश को नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
(i) नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की आवश्यकता किसी भी देश को तब पड़ती जब देश में काले धन की जमाखोरी और जाली नोटों के कारोबार में अधिकता होने लगती है। ऐसे में लोग टैक्स की चोरी करने के लिए नगद लेन देन ज्यादा करने लगे जिनमें ज्यादातर बड़े नोट शामिल थे।
(ii) 2016 में नोट बंदी से पहले बहुत से जाली नोट भी पाए गए थे जो कि हमारी अर्थव्यवस्था को खराब कर रहे थे। देश की अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित रखने के लिए भी नोट-बंदी की आवश्यकता पड़ी है।
(iii) भ्रष्टाचार, काला-धन, नकली नोट, महँगाई और आतंकवादी गतिविधियों पर काबू पाने के लिए ही नोट-बंदी का उपयोग किया जा सकता है।
(iv) अर्थशास्त्री मानते हैं कि सुरक्षा के लिहाज से हर 5 सालों में नोटों में कुछ बदलाव किए जाने चाहिए, हालांकि नोटों को बंद ही कर देना अपने आप में ही एक बहुत बड़ा बदलाव है।
(v) जाली नोटों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि बैंक और एटीएम से भी जाली नोट निकलने के सामाचार मिल रहे थे। जांच करने के बाद पाया गया कि ये जाली नोट बिलकुल असली जैसे थे। इसके चलते भी यह कदम उठाया जाना आवश्यक था।
भारत में नोट-बंदी या विमुद्रीकरण कब-कब और कितनी बार
(i) विमुद्रीकरण हमारे भारत देश के लिए कोई नई बात नहीं थी। हमारे भारत में पहली बार साल 1946 में 500, 1000 और 10 हजार के नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया था।
1970 के दशक में भी प्रत्यक्ष कर की जांच से जुड़ी वांचू कमेटी ने विमुद्रीकरण का सुझाव दिया था, लेकिन सुझाव सार्वजनिक हो गया, जिसके चलते नोट-बंदी नहीं हो पाई।
(ii) जनवरी 1978 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार सरकार ने एक कानून बनाकर 1000, 5000 और 10 हजार के नोट बंद कर दिए। हालांकि तत्कालीन आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल ने इस नोट-बंदी का विरोध किया था।
(iii) भारत में 2005 में मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने 500 के 2005 से पहले के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया था।
(iv) 2006 में भी मोदी सरकार ने 500 और 1000 के नोटों की नोटबंदी या विमुद्रीकरण का फैसला किया। इन दो करेंसी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 86% भाग पर कब्ज़ा किया था यही नोट बाजार में सबसे अधिक चलते थे। इसी वजह से इसका इतना बड़ा बवाल और परिणाम हुआ।
नोटबंदी के दौरान पूरा भारत ‘कैशलेस’ हो गया था। सारा लेन देन ओनलाईन हो गया था। विमुद्रीकरण के दौरान लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। विमुद्रीकरण ने लोगों को थोड़े दिन की परेशानी जरूर दी थी लेकिन इससे बहुत ही ज्यादा लाभ भी हुआ है। विमुद्रीकरण की योजना उतनी सफल नहीं रही जितनी होनी चाहिए थी लेकिन फिर भी काफी हद तक इससे बहुत फायदा हुआ है।
8 नवम्बर, 2016 की नोट-बंदी
8 नवम्बर, 2016 को 8:15 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 500 और 1000 के नोटों की नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की घोषणा की। लोगों को आशा थी प्रधानमंत्री जी भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली नोक-झोक की बात करेंगे लेकिन नोट-बंदी की घोषणा ने तो सभी को हिला कर रख दिया।
कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री जी का समर्थन किया तो कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री जी का विरोध किया और नोटबंदी की ख़ारिज करने की मांग की लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन लोगों ने काले धन को छिपा कर रखा हुआ था वो सुनारों के पास जाकर उस धन से सोना खरीदने लगे। नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन से ही बैंकों और एटीएम के बाहर सख़्ती लगनी शुरू हो गयी।
सरकार ने काला धन निकालने के लिए बहुत प्रयत्न किये जैसे – बैंकों में नोटों को बदलवाने की संख्या में घटाव-बढ़ोतरी की गई, नए-नए कानून बनाए गये, नियमों को सख़्ती से लागू किया गया। सरकार ने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए 50 दिन का समय माँगा। पुराने नोटों को बदलने के लिए 500 और 2000 के नए नोटों को चलाया गया।
विमुद्रीकरण से काला धन काफी हद तक खत्म हुआ है और लोगों को बहुत लाभ हुआ है। विमुद्रीकरण से भारत डीजिटल भी बना है क्योंकि उस समय सारा लेन देन डीजिटल ही हुआ था। विमुद्रीकरण ने अर्थव्यवस्था को सुधारने में सहायता की है।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण का विरोध
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की योजना को जहाँ कुछ लोग सही बोल रहे थे वहीं विपक्ष पार्टी उनके इस फैसले को असफल और देश के पिछड़ने की वजह बता रहे थे, लेकिन प्रधानमंत्री जी अपने फैसले पर अड़े रहे। विपक्षी पार्टी इस तरह से नोट-बंदी का विरोध कर रही थी मानो उन्होंने अपने पास बहुत सारा काला धन छुपा कर रखा हुआ है। लेकिन प्रधानमंत्री जी किसी भी हाल में अपने फैसले से नहीं हटे।
पूरी विपक्ष पार्टी ने नोट-बंदी की योजना का विरोध किया और उनके खिलाफ बहुत से कदम भी उठाये जैसे -मोर्चे, प्रदर्शन, रोष प्रकट करना आदि लेकिन दूसरी तरफ सरकार अपने इस निर्णय को सही साबित करने में लगी रही। कभी प्रधानमंत्री व उनकी टीम लोगों को इस नोट-बंदी के फायदे गिनाने में लगे रहे व कभी पचास दिन का समय मांगते नजर आए। लोगों के अंदर भी बहुत भाईचारा देखने को मिला। कहीं अमीर दोस्तों को उनके गरीब नाकारा दोस्त याद आ रहे थे। कहीं अमीर रिश्तेदारों को अपने गरीब रिश्तेदारों के महत्व का एहसास होने लगा। अमीर बेटे की गरीब माँ का बैंक अकॉउंट जो की पिता की मौत के बाद मर चुका था अचानक जिन्दा हो गया। ऐसा लगा मानों पूरी मानवता जिन्दा हो गई।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण में मिडिया
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण में मिडिया ने अहम भूमिका निभाई थी। कुछ मिडिया वाले नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के पक्ष में थे तो कुछ नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के विरोध में थे। कुछ खबरों में लोगों को लाईनों में खड़े होकर मजे लेते हुए देखा गया तो कुछ लोगों को नोट-बंदी की वजह से आत्महत्या करते भी देखा गया। कुछ खबरों के मुताबिक लगभग सौ लोगों ने अपनी जान लाईनों में खड़े होकर गवा दी।
मिडिया में यह भी बताया गया कि लोग जब फिल्में देखने के लिए टिकट खरीदने के लिए बड़ी-बड़ी लाइन लगाते हैं, जब सुबह 4 बजे से सिलेंडर भरवाने के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है ,तब लोगों को कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन नोट-बंदी के हानिकारक प्रभावों को लोगों ने बहुत ही बढ़ा-चढ़ा कर बताया।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण से होने वाली समस्या से जूझने के लिए कई मिडिया वालों ने जनता की मदद की और कुछ मिडिया वाले लोगों को नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के विरुद्ध भड़काने का काम भी कर रहे थे।
मिडिया किसी भी देश की सफलता का चौथा स्तंभ कहा जाता है अतः मिडिया को अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए कभी भी जनता को गुमराह नहीं करना चाहिए। बल्कि मिडिया को चाहिए कि वह पूरी ईमानदारी से बिना मिर्च-मसाला लगाए ख़बरों को ज्यों-की-त्यों जनता के समक्ष रखे।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के लाभ
सरकार द्वारा किए गए इस फैसले ने देश को कमजोर कर रहें सभी कारणों पर करारा प्रहार किया। नोट-बंदी के समय लोगों को थोड़ी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बहुत से लाभ भी हुए हैं –
1. जब लोग बैंको में पैसा बदलवाने गए तब उनके हर एक पैसे की जानकारी सरकार के पास चली गई। जिनके पास आय से ज्यादा पैसा मिला उनसे आयकर विभाग वालों ने जाँच पड़ताल की और बहुत से लोगों के पास मौजूद काला धन पकड़ा गया।
2. काला धन ही है जो आतंकवाद, अहिंसा को बढ़ावा देता है। काला धन कम होने की वजह से आतंकवाद में भी कमी हुई है। क्योंकि वे जिस काले धन को दहशत फैलाने के लिए उपयोग कर रहे थे नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के कारण वो केवल कागज रह गया था।
3. नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की वजह से बहुत सा काला धन खत्म हुआ है और सरकार के कोष में गया है। जिसकी वजह से सरकार के पास धन बढ़ा है और सरकार ने उन पैसों को देश के विकास में प्रयोग किया है।
4. बैंको में नकद होने की वजह से ब्याज दरों में भी गिरावट हुई है।
5. बैंको में पैसे होने की वजह से लोगो को बड़े पैमाने पर उधार भी दिया जाता है ताकि वो उघोग लगा सके इस तरह से रोजगार में भी वृद्धि हुई है।
6. नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की वजह से आम लोगों को आर्थिक कर और उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ है यह बहुत बड़ी बात है।
7. नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के होने से सभी ऑनलाईन, डिजिटल पेमेंट करने लगे हैं। यहाँ तक की चाय वाला, किराने वाला, जेरॉक्स, प्रिंटिंग वाला भी अब ओनलाईन भुगतान करवाता है। यह नोट-बंदी से प्राप्त हुई एक बहुत ही बड़ी उपलब्धी है।
8. नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की वजह से नकली नोट छापने का काम भी बंद हो गया है जिसकी वजह से देश से नकली नोटों को बहुत बड़ी मात्रा में निकाल दिया गया है।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण की हानियाँ
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर नोट-बंदी के लाभ नज़र आते हैं तो उसकी कुछ हानियाँ भी उसके साथ-साथ चलती आई हैं। लेकिन हानियाँ कुछ दिनों की थी और लाभ लंबे समय तक चलने वाले है। नोट-बंदी से हुई निम्नलिखित हानियाँ –
1. स्थानीय पैसा न होने की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान पर्यटन स्थलों को हुआ । बहुत से लोगों ने अपने भारत दौरे को भी रद्द किया। काम में बहुत मंदी आई।
2. आम आदमियों की रोजमर्रा की जिंदगी में तकलीफ हुई है। बैंकों और एटीएम के सामने घंटों लाईनों में खड़े रहना, अस्पताल का बिल, बिजली का बिल, किराये की समस्या, और बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
3. लोग शादियाँ भी उतनी धूमधाम से नहीं कर पाए जितना उन्होनें सोचा था।
4. आज के समय में नोट-बंदी पर बहुत सवाल उठाये जा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि नोट-बंदी फेल हुई है। यह एक स्कीम है जिसमें काले धन को सफेद किया जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि नोट-बंदी से कोई फायदा नहीं हुआ है सिर्फ नुकसान हुआ है। भारत की आर्थिक प्रगति दर 7.5 से कम होकर 6.3 हो गई है।
5. नए नोटों को छापने में बहुत पैसा खर्च हुआ लेकिन आतंकवादी फंडिंग अब तक चालू हैं। हम उन आरोपों को टाल भी नहीं सकते हैं शायद नोट-बंदी से जिस स्तर की अपेक्षाएँ की गई थीं वे हासिल नहीं हुईं।
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के परिणाम
नोट-बंदी या विमुद्रीकरण का जो फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने लिया था उसके परिणाम भी जल्द ही देखने को मिले। हालांकि जितनी उम्मीद सरकार कर रही थी नोट-बंदी या विमुद्रीकरण उतना सफल नहीं रहा। परन्तु जो भी परिणाम निकले देश के हित में योगदान देने वाले हैं –
(i) जो काला धन भ्रष्टाचारी लोगों ने 500 और 1000 के नोटों के रूप में नकद रखा था इस समय में वे एक कागज मात्र बन कर रह गया है।
(ii) काले धन की कोई भी कीमत नहीं रह गई है। नोट-बंदी के कारण भ्रष्टाचारियों को अपना छिपाया हुआ काला धन सरकार को समर्पित करना पड़ा।
(iii) कई लोगों ने काले धन को जला दिया और कइयों ने तो इसे फेंक दिया।
(iv) जो नोट जाली थे वे बाजार में किसी भी काम के नहीं रहे थे। जिस कारण देश को होने वाला नुक्सान काफी कम हो गया।
(v) नोट-बंदी या विमुद्रीकरण के होने से सभी ऑनलाईन, डिजिटल पेमेंट करने लगे हैं।
(vi) विमुद्रीकरण की वजह से सरकारी कोष में बहुत सा धन एकत्रित हुआ है जिसे जन कल्याण के लिए प्रयोग किया जाता है।
उपसंहार
भारत में विमुद्रीकरण पहले भी बहुत बार हुआ है। समय समय पर इसकी जरूरत महसूस की गई है। लेकिन मोदी सरकार द्वारा विमुद्रीकरण की सोच, उठाए गए कदम, और लागू करने का तरीका बहुत ही सराहनीय है। नोट-बंदी ने देश को विकास के लिए गति दी है। नोट-बंदी और जीएसटी यह बहुत ही बड़े फैसले हैं। इतिहास में शायद ही ऐसे बड़े फैसले कभी लिए गये हैं। अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो इससे भी बड़े-बड़े कदम उठाने होंगे। हर चीज में कुछ गुण होते हैं तो कुछ कमियाँ भी होती हैं लेकिन हमें हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
कभी-कभी कुछ अच्छी चीजें करने के लिए हिम्मत रखना, उसके लिए लाखों लोगों का भरोसा जीतना बहुत ही बड़ी बात होती है। हमें ऐसे बड़े फैसलों पर सरकार की मदद करनी चाहिए और खराब परिणाम पर सवाल भी उठाने चाहिए। सरकार और जनता दोनों को मिलकर देश को आगे ले जाना होगा यही जनतंत्र होता है।
विमुद्रीकरण की योजना उतनी सफल नहीं रही जितनी होनी चाहिए थी लेकिन फिर भी काफी हद तक इससे बहुत फायदा हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कुछ सालों बाद विमुद्रीकरण अवश्य किया जाना चाहिए। ऐसा करने से देश का काला धन साथ ही साथ खत्म होता जाएगा और आतंकवाद से जुड़ी सभी समस्याएँ भी खत्म हो जाएगी। हम सबको विमुद्रीकरण की इस प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए और लोगों के सहयोग से ही यह सफल हो पाएगी।
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