सम्राट अशोक का इतिहास | Samrat Ashok History In Hindi

सम्राट अशोक का इतिहास | Samrat Ashok History In Hindi

सम्राट अशोक का इतिहास | Samrat Ashok History In Hindi

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अशोक इतिहास जीवन परिचय Samrat Ashok History In Hindi Biography story : मौर्य सम्राट अशोक अपने पिता के शासनकाल में प्रांतीय उपरत्या (प्रशासक) था. इससे उसे शासन करने का अनुभव मिला. मौर्य सम्राज्य के इतिहास के संबंध में सर्वाधिक अभिलेखीय प्रमाण सम्राट अशोक के ही काल में प्राप्त होते है. सम्राट अशोक के अभिलेखों में उसका नाम देवानां प्रियदर्शी राजा एवं अशोक लिखा हुआ है. अशोका सीरियल के जरिये इस महान राजा के जीवन को फिल्माया जा चूका है. सम्राट अशोक का इतिहास के इस लेख में इनके जीवन उनके राज्य एवं महान कार्यों के बारे में बताएगे.

कलिंग विजय के नरसंहार को देखकर अशोक ने कभी युद्ध न करने का फैसला किया था. सम्राट अशोक पहला शासक था जिसने अपने अभिलेखों के माध्यम से राज्य की प्रजा को संदेश पहुचाने का कार्य किया.

अशोक 269 ई.पू. में मौर्य सम्राट बना था, तत्पश्चात अपने तीस वर्ष के शासनकाल में उसने लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष को अपने अधीन कर लिया था.

मगध के पडौस में कलिंग का शक्तिशाली राज्य था, जिसे अशोक जितना चाहता था. इस कारण अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया.

सम्राट अशोक के अभिलेख सम्पूर्ण भारतवर्ष के विभिन्न भागों में पाये जाते है, अशोक के अधिकतर अभिलेख प्राकृत भाषा में है, जो उस समय आम लोगों की भाषा थी.

उत्तर पश्चिम में कुछ अभिलेख यूनानी भाषा में है, अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है.लेकिन अन्य लिपियों में भी कुछ अभिलेख प्राप्त होते है.

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सम्राट अशोक की धार्मिक नीति (samrat Ashoka religious policy)

सम्राट अशोक स्वयं बौद्ध धर्म का अनुयायी था, परन्तु उसने सभी धर्मों के प्रति उदार नीति अपना रखी थी. उसने अच्छे आचरण पर बल दिया एवं पशु वध को दंडनीय घोषित कर दिया था.

सम्राट अशोक का एक विशाल सम्राज्य था. इस सम्राज्य में विभिन्न सम्प्रदाय के लोग रहते थे. इन लोगों के बिच सद्भाव एवं एकता बनाए रखने हेतु अशोक ने प्रजा को शिक्षा देना अपना कर्तव्य समझा.

इस कार्य के लिए अशोक ने धम्म महामात्य नामक अधिकारियों की नियुक्ति की, जो लोगों को शिक्षा देते थे. सम्राट अशोक द्वारा प्रचारित इस नीतिगत शिक्षा को सम्राट अशोक का धम्म कहा जाता है, जिसने जनता को अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया था.

अशोक के धम्म में दैनिक जीवन की समस्याओं से लेकर नीतिगत तरीके से रहने की बात कही गई है, यथा पड़ोसियों से न लड़ो, सबसे अच्छा व्यवहार करो, दूसरे धर्म के लोगों से टकराव न करो आदि.

बौद्ध धर्म में उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के लिए अशोक ने पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति (महासभा) का आयोजन किया. तत्पश्चात विदेशो में धर्म प्रचार के लिए अलग अलग क्षेत्रों में विभिन्न धर्म प्रचारक भेजे थे, सम्राट अशोक द्वारा विभिन्न देशों में भेजे गये धर्म प्रचारक ये थे.

प्रचारक क्षेत्र

सोन एवं उतरा स्वर्णभूमि (पेंगु)
महेंद्र एवं संघमित्रा सिंहल (श्रीलंका)
महारक्षित यवन प्रदेश
रक्षित वनवासी (उतरी कनाडा)
विदेशी में भारतीय संस्कृति एवं धर्म के प्रचार में सम्राट अशोक का योगदान अद्वितीय रहा है.

सम्राट अशोक के जन कल्याणकारी कार्य (People’s welfare work of samrat Ashoka)

सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद सम्पूर्ण जीवन सेवा एवं जनकल्याण में लगाया, उसने सड़के, छायादार वृक्ष, कुएँ, धर्मशालाएँ, मनुष्यों एवं पशुओं के लिए चिकित्सालय आदि कार्य करवाएं.

उसने घोषणा करवाई थी, कि जनता अपने कष्ट निवारण के लिए राजा से किसी भी समय मिल सकती थी. सम्राट अशोक के समय प्रजा के कष्टों में कमी आई थी तथा उनके नैतिक आचरण में वृद्धि हुई थी. सम्राट अशोक के उतरावर्ती मौर्य सम्राट अयोग्य एवं दुर्बल होने से मौर्य सम्राज्य का पतन हो गया.

सम्राट अशोक की सम्पूर्ण जीवन कहानी 

अशोक बिन्दुसार का पुत्र था. यधपि अशोक ने २७८ ई पू में ही सिंहासन प्राप्त कर लिया था. तक गृहयुद्ध में रत रहने के कारण अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक २६९ ई पू में हुआ था. दीपवंश एवं महावंश के अनुसार अशोक ने अपने ९९ भाइयों की हत्या की थी.

राज्याभिषेक से पहले अशोक उज्जैन का राज्यपाल था. अशोक ने अपने राज्याभिषेक के सात वर्ष बाद कश्मीर और खैतान के अनेक क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिला लिया. उसके साम्राज्य में तमिल प्रदेश के अतिरिक्त समूचा भारत और अफगानिस्तान का बड़ा भूभाग शामिल था.

अपने राज्याभिषेक के आठवे वर्ष अर्थात २६१ ई पू में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया. इसका उल्लेख अशोक के १३ वें शिलालेख में है.

कलिंग युद्ध में व्यापक नरसंहार ने अशोक को विचलित कर दिया, जिसके परिणाम स्वरूप उसने शस्त्र त्याग की घोषणा कर दी. तत्पश्चात उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया, जबकि इससे पूर्व वह ब्राह्मण मतानुयायी था.

उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया. अशोक बौद्ध की स्थविर शाखा का अनुयायी था. अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा.

अशोक ने अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में सर्वप्रथम बौद्ध गया की यात्रा की थी. अपने शासनकाल के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को कर मुक्त कर दिया था.

अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए जिन आचार विचारों को प्रस्तुत किया था, उसे अभिलेखों में धम्म कहा गया है. अशोक के शासनकाल से पूर्व विहार यात्राओं का प्रचलन था.

जिसमें मनोरजनार्थ पशुओं का शिकार किया जाता था. अशोक ने इसके स्थान पर धम्म यात्रा का प्रावधान किया, जिसमें बौद्ध तीर्थों की यात्रा तथा ब्राह्मणों, श्रमणों व वृद्धों को दान दिया जाता था.

सम्राट अशोक के शासनकाल के चौहदवे वर्ष में धम्म महामात्र की नियुक्ति की जिसका प्रमुख कार्य प्रजा में धम्म का प्रचार करना, कल्याणकारी कार्य करने आदि था.

अशोक प्रथम शासक था जिसने अभिलेखों के माध्यम से प्रजा को संबोधित किया. इसकी प्रेरणा उसने ईरानी शासक दारा प्रथम से ली थी.

अशोक के अभिलेखों में उसे सामान्यतः देवानामपिय (देवताओं का प्रिय) कहा गया है. भ्राबू अभिलेख में उसे पियदस्सी (देखने में रमणीय), जबकि मास्की में बुद्धशाक्य कहा गया है. कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की थी.

अशोक के अभिलेख (edicts of ashoka in hindi)

अशोक के इतिहास की जानकारी उनके अभिलेखों से मिलती है. अशोक पहला भारतीय शासक था जो अभिलेखों के द्वारा प्रजा को सीधे ही संबोधित करता था.

अशोक के अभिलेखों के प्रकार

दीर्घ अभिलेख
लघु शिलालेख
पृथक शिलालेख
दीर्घ स्तम्भ लेख
लघु स्तम्भलेख
अशोक के सर्वाधिक अभिलेख प्राकृत भाषा में है. अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरमाइक एवं ग्रीक लिपियों में मिलते है. अशोक के शिलालेखों में शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है.

सम्राट अशोक के तक्षशिला एवं लघुमान (अफगानिस्तान) अभिलेख अरमाइक लिपि में उत्कीर्ण है. अशोक का शेर ए कुना (अफगानिस्तान) अभिलेख अरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण है.

ब्राह्मी लिपि बाएँ से दाएं तथा खरोष्ठी दाएं से बाएँ लिखी जाती है. अशोक के अभिलेखों में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि को सर्वप्रथम जेम्स प्रिसेप ने 1837 में पढ़ा.

अशोक के शिलालेख और उनके विषय (Pillars of Ashoka in Hindi)

पहला शिलालेख– पशुवध निषेध
दूसरा शिलालेख– विदेशों में धम्म प्रचार एवं मनुष्य एवं पशु चिकित्सा का उल्लेख
तीसरा शिलालेख– राज्जुक एवं युक्त की नियुक्ति एवं अधिकारियों को हर पांच वर्षों में राज्य भ्रमण करने का आग्रह
चौथा अभिलेख– धम्मघोष का भेरीघोष के स्थान पर प्रतिपादन
पांचवा अभिलेख– धम्म महापात्रों की नियुक्ति
छठा अभिलेख– इसमें जन मामलों को निपटाने के लिए प्रशासनिक सुधारों का उल्लेख है.
सातवाँ अभिलेख– अशोक सभी धार्मिक मतों के प्रति निष्पक्षता रखेगा.
आठवां अभिलेख– बोधगया की यात्रा का उल्लेख एवं विहार यात्रा के स्थान पर धम्म यात्रा का प्रतिपादन
नवाँ अभिलेख– सच्चे विधानों एवं शिष्टाचार का वर्णन
दसवां अभिलेख– अशोक के उद्यम का लक्ष्य धम्माचरण की श्रेष्ठता घोषित
ग्यारहवां शिलालेख– धम्म के तत्वों का प्रकाशन
बाहरवाँ शिलालेख– धार्मिक सहिष्णुता पर जोर
तेहरवाँ शिलालेख– कलिंग के युद्ध के बाद विजय की घोषणा, विदेशों में धम्म प्रचार
चौदहवां शिलालेख– पहले तेरह शिलालेखों का पुनरवलोकन तथा अशोक के साम्राज्य की महाल के विजिते की संज्ञा.

अशोक के स्तम्भ लेख (Essay on Ashoka pillar)

ये छः स्थानों से प्राप्त हुए है-

दिल्ली-टोपरा; यह मूलतः टोपरा (अम्बाला, हरियाणा) में स्थित था और इसे फिरोजशाह तुगलक द्वारा टोपरा से अपनी नवीन राजधानी फिरोजशाह दिल्ली में स्थापित किया गया.
दिल्ली-मेरठ: फिरोजशाह तुगलक द्वारा उस अभिकेख को मेरठ से लाकर अपनी नवीन राजधानी में स्थापित किया गया.
प्रयाग– वर्तमान में यह इलाहबाद के किले में है, पर माना जाता है कि यह मूलतः कौशाम्बी में था इसे रानी अभिलेख कहा जाता था. इसी अभिलेख पर समुद्रगुप्त की प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति है. और इसी स्तम्भ पर जहांगीर द्वारा उत्कीर्ण अभिलेख भी है.
रामपुरवा– बिहार के चम्पारन जिले में
लौरिया अरराज- यह उत्तरी बिहार के चम्पारन जिले में है.

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