{UPPSC} International Relations notes pdf in Hindi

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Hello Aspirants,

1. International Relations (IR):

International Relations is the study of interactions between countries, including diplomatic, political, economic, and cultural exchanges.
2. International Organizations:

United Nations (UN): The primary global organization for international cooperation, peacekeeping, and development.
World Trade Organization (WTO): Regulates international trade and resolves trade disputes.
International Monetary Fund (IMF) and World Bank: Deal with global financial stability and development.
NATO (North Atlantic Treaty Organization): A military alliance of North American and European countries for mutual defense.
3. Diplomacy:

Diplomacy involves negotiation and communication between countries to address international issues and promote cooperation.
Diplomatic relations are maintained through embassies, consulates, and international treaties.
4. Treaties and Agreements:

International treaties and agreements are formal contracts between countries to cooperate or address specific issues.
Examples include the Paris Agreement on climate change and the Geneva Conventions on humanitarian treatment during conflicts.
5. Global Challenges:

Climate Change: Addressing global warming and its impacts on the environment and economies.
Terrorism: Combating terrorism and ensuring international security.
Refugee Crisis: Managing the displacement of people due to conflicts, persecution, or disasters.
Cybersecurity: Addressing threats to digital infrastructure and information security.
6. Soft Power and Cultural Diplomacy:

Soft power refers to a country’s ability to influence others through attraction and persuasion rather than coercion.
Cultural diplomacy promotes a nation’s culture and values to enhance its image abroad.
7. Geopolitics:

Geopolitics considers the influence of geographic factors on international relations, including resources, location, and power dynamics.
8. Economic Relations:

International trade, foreign investments, and economic cooperation are central to international relations.
Trade agreements aim to reduce tariffs and promote economic growth.
9. Multilateralism vs. Bilateralism:

Multilateralism involves cooperation among multiple countries to address global issues.
Bilateralism focuses on direct relations and agreements between two countries.
10. Human Rights and Humanitarian Interventions:

International human rights treaties protect individuals’ rights regardless of their nationality.
Humanitarian interventions aim to prevent or alleviate suffering in conflicts, even without the consent of the affected country.
11. National Sovereignty:

National sovereignty is the principle that states have the right to govern themselves without external interference.
12. International Law:

International law consists of treaties, conventions, and customary practices that govern relations between countries.
Understanding international relations is essential for navigating global challenges and contributing to peaceful and cooperative interactions between countries. These notes provide a starting point for exploring this complex field.

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Most Important International Relations Question Answer

प्रश्न : हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिये। भारत इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों का लाभ किस प्रकार उठा सकता है? (250 शब्द)

उत्तर : परिचय:

“हिंद-प्रशांत” शब्द दो महासागरों के परस्पर समन्वय से संबंधित है और इस क्षेत्र में एक प्रमुख हितधारक के रूप में भारत की भूमिका निर्णायक है। चीन के उदय, शक्ति असंतुलन एवं समुद्री विवादों के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र ने विभिन्न देशों का ध्यान आकर्षित किया है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विभिन्न देशों ने स्थिरता बनाए रखने और साझा समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये इस क्षेत्र की सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को आकार देने में गहरी रुचि दिखाई है।

मुख्य भाग: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा:
इस क्षेत्र में प्रभाव और नियंत्रण के लिये चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा देखी जाती है, जिससे संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने में भारत के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

समुद्री सुरक्षा:
हिंद-प्रशांत क्षेत्र से महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग गुजरते हैं जिससे भारत को समुद्री डकैती, आतंकवाद और क्षेत्रीय विवादों से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इससे समुद्री सुरक्षा एवं नेविगेशन की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

आर्थिक एकीकरण:
जटिल व्यापार समझौतों, नियामक बाधाओं और देशों के बीच अलग-अलग आर्थिक प्रणालियों के कारण भारत को इस क्षेत्र के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

बुनियादी ढाँचे का विकास:
कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत को आर्थिक अवसरों का फायदा उठाने में चुनौती उत्पन्न होती है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष उपलब्ध अवसर:

रणनीतिक साझेदारी:
भारत के पास नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने, नेविगेशन की स्वतंत्रता को बनाए रखने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये इस क्षेत्र में जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने के अवसर हैं।

आर्थिक समन्वय:
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक आर्थिक संभावनाएँ हैं। भारत क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में सक्रिय रूप से भाग लेकर, निवेश और व्यापार को बढ़ावा देकर एवं बुनियादी ढाँचे की विकास परियोजनाओं में संलग्न होकर इसका लाभ उठा सकता है।

सुरक्षा सहयोग:
क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सहयोगात्मक सुरक्षा पहल और सैन्य अभ्यास से भारत के सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलने के साथ साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की क्षमताओं में मज़बूती आती है।

सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी:
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध सॉफ्ट पावर कूटनीति के अवसर प्रदान करते हैं, जो लोगों के बीच आदान-प्रदान, सांस्कृतिक सहयोग और सार्वजनिक कूटनीति प्रयासों को सुविधाजनक बनाते हैं।
रणनीतिक और आर्थिक हितों का लाभ उठाना:

क्षेत्रीय साझेदारी को मज़बूत बनाना:
क्वाड जैसी रणनीतिक साझेदारियों को मज़बूत करने के साथ बहुपक्षीय मंचों में शामिल होने से भारत अपने हितों पर जोर देने के साथ क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान कर सकता है।

बुनियादी ढाँचे का विकास:
क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश करके भारत कनेक्टिविटी, व्यापार सुविधा और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दे सकता है, जिससे भारत के साथ इस क्षेत्र के अन्य देशों को लाभ होगा।

व्यापार और निवेश सुविधा:
भारत, ट्राँस-पैसिफिक पार्टनरशिप जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में सक्रिय रूप से भाग लेकर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ावा देकर अपने आर्थिक हितों का लाभ उठा सकता है।

रक्षा और समुद्री सहयोग:
समुद्री सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने, संयुक्त नौसैनिक अभ्यास आयोजित करने और साझेदार देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने से इस क्षेत्र में समुद्री स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत की क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष:

भारत के समक्ष हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियाँ और अवसर दोनों ही हैं। क्षेत्रीय साझेदारों के साथ रणनीतिक रूप से जुड़कर, आर्थिक अवसरों का लाभ उठाकर, सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर और क्षेत्रीय पहलों में सक्रिय रूप से भाग लेकर, भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा कर सकता है। संतुलित दृष्टिकोण (जो क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देता हो) से न केवल अंतर्राष्ट्रीय कानून को बनाए रखने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की उभरती गतिशीलता में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में भारत की स्थिति को भी मज़बूती मिलेगी।

प्रश्न : उभरते प्राकृतिक संसाधन समृद्ध अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्र में भारत अपना क्या स्थान देखता है?? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

उत्तर : फ्रीका में विश्व के खनिज भंडार का लगभग 30%, वैश्विक प्राकृतिक गैस का 8% और वैश्विक तेल भंडार का 12% है। इस महाद्वीप में दुनिया का 40% सोना और 9% तक क्रोमियम तथा प्लैटिनम है। दुनिया में कोबाल्ट, हीरे, प्लेटिनम और यूरेनियम का सबसे बड़ा भंडार अफ्रीका में है। इसमें दुनिया की 65% कृषि योग्य भूमि और ग्रह के आंतरिक नवीकरणीय ताजे पानी के स्रोत का 10% हिस्सा है।

भारतीय उपमहाद्वीप को इसकी बढ़ती मांग के साथ संसाधनों की आवश्यकता है और एक अविकसित महाद्वीप जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, भारत और अफ्रीका दोनों के लिये पारस्परिक रूप से लाभकारी होगा।

व्यापार संबंध:

व्यापार के मामले में अफ्रीकी संघ संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात के बाद भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जो महाद्वीप में भारतीय निर्यात में विविधीकरण द्वारा समर्थित स्थिति है।
जबकि भारत ने वित्त वर्ष 2012 में अफ्रीका को 40 बिलियन डॉलर का माल निर्यात किया, इसका आयात आंशिक रूप से विभिन्न अफ्रीकी देशों से तेल खरीद के कारण 49 बिलियन डॉलर से अधिक था।
महाद्वीप में भारत के निर्यात का लगभग पाँचवा हिस्सा पेट्रोलियम उत्पाद थे और 18% से अधिक फार्मास्यूटिकल्स थे। एक व्यापार समझौता शून्य या रियायती शुल्क पर इन उत्पादों की निर्बाध आवाजाही को सक्षम करेगा, जिससे दोनों पक्षों को मदद मिलेगी।
अफ्रीकी महाद्वीप से भारत को संभावित लाभ:

भारत जैसे संसाधन की आवश्यकता वाले देश के लिये, विकास के अपने प्रारंभिक चरण में अफ्रीका जैसा संसाधन संपन्न महाद्वीप विकास के असीम अवसर प्रदान करेगा।
अफ्रीका की ज़मीन में बहुमूल्य खनिज संसाधनों का खजाना है। 2019 में, महाद्वीप ने 406 बिलियन डॉलर मूल्य के लगभग 1 बिलियन टन खनिजों का उत्पादन किया। जिसका भारतीय कंपनियों द्वारा आसानी से फायदा उठाया जा सकता था, जिसके बदले में अफ्रीकी महाद्वीप में रोज़गार मिलेगा और धन का सृजन होगा।
भारत-अफ्रीका संबंधों को मज़बूत करने के लिये सरकार की पहलें:

भारत और मॉरीशस ने व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौते (सीईसीपीए) पर हस्ताक्षर किये
भारत जापान एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर
पैन अफ्रीका ई-नेटवर्क
वैक्सीन मैत्री
अफ्रीकी देशों ने अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) को वस्तुओं, सेवाओं, श्रम और पूंजी की मुक्त आवाजाही के लिये एक एकल अफ्रीकी बाज़ार बनाने तथा अंतर-अफ्रीकी व्यापार को बढ़ाने के उद्देश्य से लॉन्च किया। AfCFTA भारतीय फर्मों और निवेशकों को एक बड़े, एकीकृत और मज़बूत अफ्रीकी बाज़ार में टैप करने के कुछ अवसर प्रदान करने में सक्षम हो सकता है।
भारत-अफ्रीका सहयोगात्मक परियोजनाएँ:

भारत ने अब तक 197 परियोजनाएँ पूरी कर ली हैं, 65 और वर्तमान में निष्पादन के अधीन हैं तथा 81 पूर्व-निष्पादन चरण में हैं।
गाम्बिया में, भारत ने नेशनल असेंबली भवन का निर्माण किया है और जल आपूर्ति, कृषि तथा खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में परियोजनाएँ शुरू की हैं।
जाम्बिया में, भारत एक महत्वपूर्ण जल-विद्युत परियोजना, पूर्व-निर्मित स्वास्थ्य चौकियों के निर्माण और वाहनों की आपूर्ति में शामिल है।
मॉरीशस में, हाल की उल्लेखनीय परियोजनाओं में मेट्रो एक्सप्रेस, नया सुप्रीम कोर्ट और सामाजिक आवास शामिल हैं।
निष्कर्ष:

भारत को अफ्रीका में एक सशक्त उपस्थिति बनाने के लक्ष्य की आवश्यकता है जो व्यापार के अवसरों में विविधता लाने, राजनयिक संबंधों को मज़बूत करने और विभिन्न अफ्रीकी सरकारों के साथ सहयोग तथा साझेदारी बढ़ाने के माध्यम से अफ्रीका और भारत दोनों को लाभान्वित कर सके।

प्रश्न : क्वाड आधुनिक दुनिया की नई वास्तविकता है और यह भारत के लिये फायदे और नुकसान दोनों के साथ आता है। (150 शब्द)

उत्तर :
क्वाड के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
क्वाड व्यवस्था में भारत के लिये अवसरों की चर्चा कीजिये।
क्वाड से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
परिचय

क्वाड- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है। सभी चारों राष्ट्र लोकतांत्रिक होने के कारण इनकी एक सामान आधारभूमि हैं और निर्बाध समुद्री व्यापार और सुरक्षा के साझा हित का भी समर्थन करते हैं।इसका उद्देश्य “मुक्त, स्पष्ट और समृद्ध” इंडो-पैसिफिक क्षेत्र सुनिश्चित करना तथा उसका समर्थन करना है।

क्वाड का विचार पहली बार वर्ष 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने रखा था। हालाँकि यह विचार आगे विकसित नहीं हो सका, क्योंकि चीन के ऑस्ट्रेलिया पर दबाव के कारण ऑस्ट्रेलिया ने स्वयं को इससे दूर कर लिया।

प्रारूप

क्वाड व्यवस्था में भारत के लिये संभावनाएँ:

चीन से मुक़ाबला:
हिमालय में उपलब्ध अवसरवादी भूमि हड़पने के प्रयासों में संलग्न होने की तुलना में समुद्री क्षेत्र चीन के लिये बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं।
चीनी व्यापार का एक बड़ा हिस्सा भारतीय समुद्री मार्गों से होता है जो समुद्री चौकियोँ से होकर गुज़रता है।
सीमाओं पर किसी भी चीनी आक्रमण की स्थिति में, भारत क्वाड देशों के सहयोग से चीनी व्यापार को संभावित रूप से बाधित कर सकता है।
इसलिये महाद्वीपीय क्षेत्र के विपरीत भारत जहाँ चीन-पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण ‘नटक्रैकर जैसी स्थिति’ का सामना कर रहा है, समुद्री क्षेत्र भारत के लिये गठबंधन, निर्माण, नियम स्थापित करने और रणनीतिक अन्वेषण के अन्य रूपों के लिये खुला है।
उभरते सुरक्षा प्रदाता की तरह:
समुद्री क्षेत्र में विशेष रूप से ‘हिंद-प्रशांत’ की अवधारणा के आगमन के साथ महान शक्तियों के बीच रुचि बढ़ रही है। उदाहरण के लिये, कई यूरोपीय देशों ने हाल ही में अपनी हिंद-प्रशांत रणनीतियों को जारी किया है।
भारत-प्रशांत भू-राजनीतिक कल्पना के केंद्र में स्थित है, ‘व्यापक एशिया’ की दृष्टि को साकार कर सकता है व भौगोलिक सीमाओं से दूर अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है।
इसके अलावा भारत मानवीय सहायता और आपदा राहत, खोज एवं बचाव या समुद्री डकैती विरोधी अभियानों के लिये नौवहन की निगरानी, जलवायु की दृष्टि से कमज़ोर देशों को बुनियादी ढाँचा सहायता, कनेक्टिविटी पहल तथा इसी तरह की गतिविधियों में सामूहिक कार्रवाई कर सकता है।
इसके अलावा क्वाड हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की साम्राज्यवादी नीतियों की जाँच कर सकता है तथा इस क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास सुनिश्चित कर सकता है।
क्वाड से संबंधित मुद्दे:

अपरिभाषित दृष्टि: क्वाड परिभाषित रणनीतिक मिशन के बिना एक तंत्र बना हुआ है, इसके बावजूद सहयोग की संभावना है।
समुद्री प्रभुत्व: इंडो-पैसिफिक पर पूरा ध्यान क्वाड को एक भूमि-आधारित समूह के बजाय एक समुद्र का हिस्सा बनाता है, यह सवाल उठता है कि क्या यह सहयोग एशिया-प्रशांत और यूरेशियन क्षेत्रों तक फैला हुआ है।
भारत की गठबंधन प्रणाली का विरोध: तथ्य यह है कि भारत एकमात्र सदस्य है जो संधि गठबंधन प्रणाली के खिलाफ है, इसने एक मज़बूत चतुष्पक्षीय जुड़ाव को लेकर प्रगति को धीमा कर दिया है।
आगे की राह

क्वाड राष्ट्रों को सभी के आर्थिक एवं सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक व्यापक ढाँचे में इंडो-पैसिफिक विज़न को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की ज़रूरत है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के कई अन्य साझेदार हैं, भारत ऐसे में इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों को इस समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित कर सकता है।
भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करनी चाहिये, जिसमें वर्तमान एवं भविष्य की समुद्री चुनौतियों पर विचार करने, अपने सैन्य एवं गैर-सैन्य उपकरणों को मज़बूत करने तथा रणनीतिक भागीदारों को शामिल करने पर ध्यान दिया जाए।

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Author: Deep