Social issues handwritten notes pdf in Hindi for UPPCS

Social issues handwritten notes pdf in Hindi for UPPCS

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Hello friends,

Social issues are broad-ranging problems that affect society as a whole, often involving disparities or inequalities between different groups of people. These issues can include poverty, economic inequality, discrimination based on race, gender, sexuality, religion, and other factors, political polarization, environmental degradation, crime and violence, homelessness, mental health, substance abuse, immigration and refugee issues, and more.

Addressing social issues requires a comprehensive approach that involves understanding the root causes of these problems, and working to address them at both the individual and systemic levels. This may involve policies, programs, and interventions that address economic, political, and social inequalities, as well as efforts to promote understanding, cooperation, and communication across different groups of people.

It is important to involve communities and stakeholders in the development and implementation of interventions, as well as to evaluate the effectiveness of these approaches over time. This can involve a range of strategies, including advocacy, public education, community organizing, and research and data analysis.

Ultimately, addressing social issues requires a commitment to social justice, equality, and human rights, and a willingness to work towards a more just and equitable society. This involves creating policies, systems, and structures that promote inclusion, respect, and dignity for all people, regardless of their race, gender, sexual orientation, religion, or socioeconomic status.

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Social issues handwritten notes pdf in Hindi

प्रश्न : भारत में सामाजिक न्याय पर आर्थिक नीतियों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये और समावेशी एवं न्यायसंगत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने हेतु उपाय बताइये। (150 शब्द)

उत्तर :
सामाजिक न्याय पर आर्थिक नीतियों के प्रभाव की व्याख्या करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
न्यायसंगत और समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए।
तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:

आर्थिक नीतियों का भारत के सामाजिक न्याय पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। भारत के संदर्भ में सामाजिक न्याय का तात्पर्य सभी नागरिकों के बीच उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के इतर धन, अवसरों और संसाधनों का उचित वितरण करना शामिल है।
हालाँकि भारत में असमानता में वृद्धि, कुछ समूहों के हाशिए पर जाने और समावेशी आर्थिक विकास न होने के कारण वर्तमान आर्थिक व्यवस्था की आलोचना की जाती है। फिर भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहाँ विभिन्न सरकारी पहलों ने असमानताओं को कम करने और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की कोशिश की है।
मुख्य भाग:

ऐसे प्रमुख क्षेत्र जहाँ आर्थिक नीतियों का भारत के सामाजिक न्याय पर प्रभाव पड़ता है:
शिक्षा और साक्षरता: केंद्रीय बजट 2022-2023 के अनुसार भारत में शिक्षा के लिये आवंटन कुल जीडीपी का लगभग 3% होता है जो अन्य देशों की तुलना में काफी कम है।
इसलिये बजट में शिक्षा के लिये आवंटन को जीडीपी के 6% तक बढ़ाने के प्रयास करने की आवश्यकता है।
संपत्ति और आय वितरण: प्रगतिशील कराधान, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और सीमांत क्षेत्रों में लक्षित निवेश के माध्यम से वितरणात्मक न्याय को बढ़ावा देने वाली आर्थिक नीतियाँ यह सुनिश्चित करने में मदद करती हैं कि आर्थिक विकास के लाभों को अधिक समान रूप से साझा किया जाता है।
उदाहरण के लिये भारत का महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक सौ दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
पर्यावरणीय न्याय: आर्थिक नीतियों ने सतत विकास को बढ़ावा दिया है जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली है कि हाशिये पर रहने वाले समुदाय पर्यावरणीय गिरावट और संसाधनों की कमी से असमान रूप से प्रभावित नहीं हों।
उदाहरण के लिये भारत में राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (NCEF) स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिये भारत सरकार द्वारा स्थापित एक कोष है।
आर्थिक न्याय: धन के समान वितरण को बढ़ावा देने के लिये समावेशी आर्थिक नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।
इसके अलावा भारत में आर्थिक नीतियों की अक्सर सामाजिक समानता और कल्याण को बढ़ावा न देने के लिये आलोचना की जाती है। लेकिन ऐसी कई सरकारी पहलें हैं जो आर्थिक न्याय को बढ़ावा देती हैं ताकि नागरिकों की निष्पक्ष और न्यायसंगत आर्थिक अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित हो।
उदाहरण के लिये भारत का भूमि अर्जन,पुनर्वासन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 उन प्रभावित व्यक्तियों हेतु उचित मुआवजे का प्रावधान करता है जिनकी भूमि का अधिग्रहण किया गया है और इसमें प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास के प्रावधान भी शामिल हैं।
समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के उपाय:
समावेशी, सतत और सहभागी विकास के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: नीति आयोग की रणनीति भी समावेशी, सतत और भागीदारीपूर्ण विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के महत्त्व पर जोर देती है।
इसमें डिजिटल बुनियादी ढाँचे और सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और सामाजिक तथा आर्थिक परिणामों में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
शिक्षा में सुधार: शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में सुधार और यह सुनिश्चित करना कि भारत में हर बच्चा साक्षर हो, के लिये समावेशी विकास एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। शिक्षा किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास की प्राथमिक आवश्यकता है।
आय, धन और अवसरों में समानता: आय, धन और अवसरों में समानता की प्राप्ति, आर्थिक विकास और सामाजिक उन्नति का एक अभिन्न अंग होना चाहिये।
स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार: इस क्षेत्र में आवंटन, सकल घरेलू उत्पाद का 1-1.5% है। हालांकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह 6% के अनुशंसित आवंटन से काफी कम है।
निष्कर्ष:

आर्थिक नीतियों का भारत के सामाजिक न्याय पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वर्तमान आर्थिक नीतियों द्वारा समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर असमानता को कम करने की कोशिश की जा रही है।

प्रश्न : भारत के पड़ोस में अफीम की अवैध खेती का सबसे बड़ा क्षेत्र होना, भारत के युवाओं के लिये खतरा है। इस खतरे को रोकने के लिये आवश्यक सुरक्षात्मक उपायों पर चर्चा कीजिये? (250 शब्द)

उत्तर :
भारत में नशीले पदार्थों के खतरे की वर्तमान स्थिति पर संक्षेप में चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
भारत में नशीले पदार्थों के खतरे के कारणों पर चर्चा कीजिये और इन मुद्दों से निपटने के लिये कुछ उपाय सुझाइए।
तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:

मादक पदार्थों की लत भारत के युवाओं में तेज़ी से फैल रही है क्योंकि भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों के मध्य में स्थित है जिसके एक तरफ स्वर्णिम त्रिभुज/गोल्डन ट्रायंगल क्षेत्र और दूसरी तरफ स्वर्णिम अर्द्धचंद्र/गोल्डन क्रिसेंट क्षेत्र स्थित है।
स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र में थाईलैंड, म्यांँमार और लाओस शामिल हैं।
स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं।
भारत उपयोगकर्त्ताओं के मामले में विश्व के सबसे बड़े अफीम बाज़ारों में से एक है और यह संभवत: बढ़ी हुई आपूर्ति के प्रति संवेदनशील होगा।
वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 में 5.2 टन अफीम की चौथी सबसे बड़ी मात्रा ज़ब्त की गई और तीसरी सबसे बड़ी मात्रा में मॉर्फिन (0.7 टन) भी उसी वर्ष ज़ब्त की गई थी। भारत वर्ष 2011-2020 में विश्लेषण किये गए 19 प्रमुख डार्कनेट बाज़ारों में बेची जाने वाली ड्रग के शिपमेंट से भी संबंधित है।
मुख्य भाग:

भारत में नशीले पदार्थों का प्रभाव व्यक्तियों के स्वास्थ्य के साथ-साथ परिवारों एवं समुदायों पर सामाजिक एवं आर्थिक प्रभावों के रुप में पड़ता है।
भारत में अवैध नशीले पदार्थों के खतरे से संबंधित विभिन्न कारण:
सहकर्मी दबाव: विशेष रूप से स्कूली बच्चों और युवा वयस्कों के बीच, सहकर्मी दबाव और जिज्ञासा नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के प्रमुख कारणों में से एक है। इसके अतिरिक्त टेलीविजन और मीडिया में इनके महिमामंडन से नशीले पदार्थों के उपयोग को और बढ़ावा मिल सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे: मादक द्रव्यों का सेवन और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे अक्सर संबंधित होते हैं। जो लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से गुजर रहे हैं वे नशीले पदार्थों का सहारा ले सकते हैं।
शिक्षा और जागरूकता की कमी: शिक्षा और जागरूकता की कमी से नशीले पदार्थों के उपयोग के जोखिमों को बढ़ावा मिलता है।
निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ: निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ जैसे कि बेरोज़गारी और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के अभाव से नशीले पदार्थों के दुरुपयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
नशीले पदार्थों के खतरे के समाधान हेतु आवश्यक उपाय:
भारत में अवैध अफीम की खेती की समस्या का समाधान करने और देश के युवाओं को नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के खतरों से बचाने के लिये कई उपाय किये जा सकते हैं:
नशीले पदार्थों की समस्याओं से जुड़े कलंक को कम करना: नशीले पदार्थों के पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखने और अपराधियों के बजाय उनके साथ सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के रूप में व्यवहार करके, नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के कलंक को कम किया जा सकता है और साथ ही इससे अधिक लोगों को मदद लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
उपचार और पुनर्वास तक पहुँच बढ़ाना: उपचार और पुनर्वास कार्यक्रमों के लिये अधिक संसाधन और सहायता प्रदान करने से व्यक्तियों को अपनी लत से बाहर निकलने और अपने जीवन को सही करने में मदद मिल सकती है।
कानून प्रवर्तन प्रयासों में वृद्धि करना: नशीले पदार्थों की अवैध खेती और तस्करी को कम करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक, कानून प्रवर्तन प्रयासों को बढ़ाना है जिसमें गश्त, खुफिया जानकारी एकत्र करना और इस पर रोक लगाना शामिल है। यह आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने में मदद करने के साथ मादक पदार्थों के तस्करों के कार्य को और भी अधिक कठिन बना सकता है।
मांग में कमी लाने वाले कार्यक्रमों को शुरु करना: आपूर्ति के साथ नशीले पदार्थों की मांग को कम करना भी महत्त्वपूर्ण है। जागरूकता और रोकथाम अभियानों जैसे कार्यक्रमों को लागू करने से इन पदार्थों का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या कम करने के साथ अवैध पदार्थों के बाजार को सीमित करने में मदद मिल सकती है।
वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा देना: अफीम की खेती को कम करने का एक और तरीका किसानों को इस प्रकार की वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना है जो आर्थिक रूप से अधिक स्थिर और टिकाऊ हो। इसमें प्रशिक्षण और समर्थन के साथ ही ऋण और अन्य संसाधनों तक पहुँच शामिल हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना: अफीम की अवैध खेती और तस्करी में अक्सर अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क और सीमापार व्यापार शामिल होता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी को मजबूत करने से इन नेटवर्कों को बाधित करने में मदद मिल सकती है जिससे अवैध व्यापार करने वालों के लिये इसे संचालित करना अधिक कठिन हो सकता है।
नशीले पदार्थों के उपयोगकर्ताओं के लिये उपचार और सहायता प्रदान करना: उन लोगों के लिये सहायता और उपचार प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है जो नशीले पदार्थों की लत से गुजर रहे हैं। इसमें पुनर्वास और सहायता सेवाओं तक पहुँच के साथ ही नुकसान कम करने के उपाय शामिल हो सकते हैं।
वैकल्पिक विकास कार्यक्रमों को लागू करना: अफीम उत्पादन क्षेत्रों में किसानों और समुदायों को आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान करके, सरकार अवैध अफीम की आपूर्ति को कम करने और सतत विकास का समर्थन करने में मदद कर सकती है।
इससे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय पहल:
भारत:
ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली: नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा ड्रग अपराधों और अपराधियों का ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करने हेतु पोर्टल बनाया गया है।
द नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, (NDPS) 1985: यह किसी भी व्यक्ति द्वारा मादक पदार्थ या साइकोट्रॉपिक पदार्थ के उत्पादन, बिक्री, क्रय, परिवहन, भंडारण और / या उपभोग को प्रतिबंधित करता है।
सरकार द्वारा ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ को शुरू करने की घोषणा की गई है जो सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
नशीले पदार्थों के खतरे का मुकाबला करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और अभिसमय:
भारत नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के खतरे से निपटने के लिये निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों का हस्ताक्षरकर्त्ता है:
नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र (UN) कन्वेंशन (1961)
नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों की अवैध तस्करी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)
निष्कर्ष:

भारत में अवैध मादक पदार्थों का संकट एक जटिल और बहुआयामी समस्या है जिसके समाधान के लिये व्यापक एवं समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मांग को कम करने एवं आपूर्ति को बाधित करने के साथ नशीले पदार्थों के दुरुपयोग से प्रभावित व्यक्तियों तथा समुदायों के लिये सहायता प्रदान करने हेतु उपाय करके, इस मुद्दे से निपटने के साथ लोगों का कल्याण करना संभव है।

प्रश्न : शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रक पर डिजिटल डिवाइड के प्रभावों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

उत्तर :
डिजिटल डिवाइड के बारे में तथ्यों को संक्षेप में बताते हुए अपना उत्तर शुरू कीजिये।
शिक्षा और स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।
डिजिटल डिवाइड गैप को कम करने के लिये कुछ उपाय बताइये।
उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय

डिजिटल डिवाइड की परिभाषा में प्रायः सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) तक आसान पहुँच के साथ-साथ उस प्रौद्योगिकी के उपयोग हेतु आवश्यक कौशल को भी शामिल किया जाता है।

इसके तहत मुख्यतः इंटरनेट और अन्य प्रौद्योगिकियों के उपयोग को लेकर विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों या अन्य जनसांख्यिकीय श्रेणियों में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों या भौगोलिक क्षेत्रों के बीच असमानता का उल्लेख किया जाता है।

मुख्य भाग

डिजिटल डिवाइड ने समाज में एक नया अंतराल आधार बनाया है जिसने विश्व स्तर पर लोगों के दैनिक कार्यों और आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इंटरनेट का पूरी तरह से उपयोग करने की क्षमता आज विभिन्न क्षेत्रों में असमानता और अलगाव पैदा कर रही है।

डिजिटल डिवाइड का प्रभाव:

शिक्षा पर
वंचितों पर सर्वाधिक दबदबा:
‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों’ [EWS]/वंचित समूहों [DG] से संबंधित बच्चों को अपनी शिक्षा पूरी नहीं करने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है, साथ ही इस दौरान इंटरनेट और कंप्यूटर तक पहुँच की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है।
वे बच्चे बाल श्रम अथवा बाल तस्करी के प्रति भी सुभेद्य हो गए हैं।

अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा:

गरीब बच्चे प्रायः ऑनलाइन मौजूद सूचनाओं से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार वे हमेशा के लिये पिछड़ जाते हैं, जिसका प्रभाव उनके शैक्षिक प्रदर्शन पर पड़ता है।
इस प्रकार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम छात्र और कम विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।

सीखने की क्षमता में असमानता:

निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग प्रायः वंचित होते हैं और पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिये उन्हें लंबे समय तक बोझिल अध्ययन की स्थिति से गुज़रना पड़ता है।
जबकि अमीर परिवारों से संबंधित छात्र आसानी से स्कूली शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं।

गरीबों के बीच उत्पादकता में कमी:

अधिकांश अविकसित देशों या ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित अनुसंधान क्षमताओं और अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण आधे-अधूरे स्नातक पैदा होते हैं, क्योंकि प्रशिक्षण उपकरणों की कमी के साथ-साथ इन क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी भी सीमित है।
स्वास्थ्य:

स्वास्थ्य सेवा में, डिजिटल डिवाइड टेलीहेल्थ केयर एक्सेस या ऑनलाइन अपॉइंटमेंट शेड्यूलर जैसे प्रबंधन सॉफ्टवेयर का उपयोग करने की क्षमता में असमानता का कारण बन सकता है।

विश्वसनीय स्वास्थ्य सूचना तक असमान पहुँच:

व्यक्तिगत स्तर पर, गलत सूचना, दुष्प्रचार और जानकारी की कमी सभी एक व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी देखभाल में बाधाओं के रूप में काम करते हैं।
सिस्टम स्तर पर उच्च-गुणवत्ता की कमी, समय पर जानकारी केअभाव के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य समानता में अंतर बढ़ सकता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और सेवाओं में प्रतिनिधित्व का अभाव:
सूचना प्रणालियाँ और उनके द्वारा एकत्र किया गया डेटा अक्सर आबादी का समान रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करता है, उदाहरण के लिये, कमज़ोर समुदायों के सदस्यों की गणना न होना या स्वास्थ्य प्रणाली में असमानताओं का निदान करने के लिये सही डेटा एकत्र नहीं करना।
जब डेटा प्रतिनिधि और समावेशी नहीं होता है, तो इस डेटा का विश्लेषण और उपयोग स्वाभाविक रूप से असमान होगा।
स्वास्थ्य और डिजिटल साक्षरता का अभाव:
स्वास्थ्य साक्षरता को मौलिक स्वास्थ्य संबंधी आँकड़ों और प्रणाली को प्राप्त करने, संसाधित करने और समझने की क्षमता के रूप में वर्णित किया गया है और फिर इन्हें स्वास्थ्य संबंधी उचित निर्णय लेने के लिये लागू किया जाता है।
तकनीकी और वित्तीय प्रतिबंधों के साथ, स्वास्थ्य साक्षरता भी ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने के लिये प्रमुख है।
कुछ कारण, जैसे पहुँच और संचार की समस्याएँ, शारीरिक और मानसिक प्रतिबंध, साथ ही आयु, लिंग और साक्षरता जैसे सामाजिक कारक न केवल डिजिटल विभाजन और डिजिटल साक्षरता बल्कि स्वास्थ्य साक्षरता को भी प्रभावित करते हैं।
इसलिये, विश्वसनीय और भरोसेमंद स्वास्थ्य जानकारी की आवश्यकता को पूरा करने में डिजिटल उपकरणों और दृष्टिकोणों की बहुत बड़ी भूमिका है।

डिजिटल डिवाइड को कम करने की रणनीति:

संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों में डिजिटल डिवाइड (एसडीजी 9) को कम करना शामिल है। यही कारण है कि कई जगहों पर प्रौद्योगिकी तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये पहल शुरू की गई हैं। जो इस प्रकार हैं:

डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: यह इंटरनेट के प्रति कम रूचि वाले क्षेत्रों में लोगों को अपनी व्यक्तिगत भलाई में सुधार करने के लिये निर्देश देते हैं।
अफोर्डेबल इंटरनेट के लिये गठबंधन (A4AI): सरकारों, व्यवसायों और नागरिक समाज के एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के नेतृत्व में इस परियोजना का उद्देश्य अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विशिष्ट क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड की लागत को कम करना है।
फ्री बेसिक्स: फेसबुक और छह अन्य प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा प्रवर्तित इस पहल का उद्देश्य एक मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से कई वेबसाइटों तक मुफ्त पहुँच प्रदान करना है।
स्टारलिंक: टाइकून एलोन मस्क द्वारा प्रवर्तित यह परियोजना, सस्ती कीमतों पर उच्च गति के इंटरनेट और वैश्विक कवरेज प्रदान करने के लिये उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च कर रही है।
भारतीय पहल:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020: इसका उद्देश्य “भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति” बनाना है तथा शिक्षा में और सुधार करना है ताकि इसे समाज के दलित वर्ग द्वारा भी आसानी से प्राप्त किया जा सके।
नॉलेज शेयरिंग के लिये डिजिटल इन्फास्ट्रक्चर (DIKSHA): इसका उद्देश्य शिक्षकों को सीखने और खुद को प्रशिक्षित करने तथा शिक्षक समुदाय के साथ जुड़ने का अवसर देने के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
PM eVidya: यह डिजिटल/ऑनलाइन शिक्षा के लिये मल्टी-मोड एक्सेस कार्यक्रम है।
स्वयं प्रभा टीवी चैनल: यह टीवी नेटवर्क की एक समर्पित श्रृंखला है जो विभिन्न कक्षाओं के छात्रों के लिये पाठ्यक्रम प्रसारित करती है।
निष्कर्ष

डिजिटल डिवाइड गंभीर सामाजिक प्रभाव डालता है। प्रौद्योगिकी तक पहुँच की अक्षमता में मौजूदा सामाजिक बहिष्करणों को बढ़ाने और आवश्यक संसाधनों से व्यक्तियों को वंचित करने की क्षमता है। डिजिटल तकनीकों और इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता के साथ, डिजिटल डिवाइड का शिक्षा, स्वास्थ्य, गतिशीलता, सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और जीवन के हर दूसरे कल्पनीय पहलू पर प्रभाव पड़ता है।

इसलिये, समाज के विभिन्न वर्गों तक आईसीटी की भौतिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये मौजूदा डिजिटल बुनियादी ढाँचे में सुधार करना समय की मांग है। साथ ही, वंचित समूहों को अपने दैनिक जीवन में प्रौद्योगिकी को शामिल करने के लिये प्रेरित करने की आवश्यकता है और इस तरह के बदलाव की अनुमति देने के लिये डिजिटल कौशल प्रदान करने की आवश्यकता है।

प्रश्न : भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए इसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता है। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और इनके क्रियान्वयन हेतु सुझाव दीजिये। (250 शब्द)

उत्तर :
दृष्टिकोण:

भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति का संक्षेप में वर्णन करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
भारत में उच्च शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
भारत में शिक्षा में सुधार हेतु सुझाव दीजिये।
उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:

भारत की लगभग एक चौथाई जनसंख्या स्कूल और कॉलेज जाने की उम्र से संबंधित है। हमारी जनसांख्यिकीय स्थिति हमारे देश के लिये एक संपत्ति है या नहीं यह शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 50% किशोर माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं जबकि लगभग 20 मिलियन बच्चे प्राथमिक स्कूल ही नहीं जा पाते हैं।

मुख्य भाग:

भारत में शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दे:
अपर्याप्त सरकारी निधि: आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2018-19 में देश में शिक्षा पर कुल सकल घरेलू उत्पाद का 3% खर्च किया गया जो विकसित और OECD देशों की तुलना में काफी कम है।
बुनियादी ढाँचे की का अभाव: अधिकांश स्कूलों में अभी तक RTE के तहत निर्धारित बुनियादी ढाँचे का अभाव बना हुआ है। अधिकांश स्कूलों में पीने के पानी के साथ लड़के और लड़कियों के लिये अलग शौचालय का अभाव देखने को मिलता है।
संस्थानों की खराब वैश्विक रैंकिंग: मुख्य रूप से शिक्षक-छात्र अनुपात में नकारात्मक स्थिति और अनुसंधान क्षमता की कमी के कारण बहुत कम भारतीय विश्वविद्यालयों को विश्व की शीर्ष रैंकिंग में शामिल किया गया है।
शिक्षा और उद्योग की मांग के बीच तालमेल का अभाव: भारत में उद्योगों को उपयुक्त कर्मचारियों को खोजने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि प्रदान की जाने वाली शिक्षा, उद्योग में काम करने हेतु उपयुक्त नहीं होती है इसलिये कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है।
अपर्याप्त शिक्षक और उनका प्रशिक्षण: भारत का शिक्षक-छात्र अनुपात (24:1), स्वीडन (12:1), ब्रिटेन (16:1), रूस (10:1) और कनाडा (9:1) से काफी कम है। इसके अलावा शिक्षकों की गुणवत्ता और पर्याप्त रूप से इनका प्रशिक्षित नहीं होना एक अन्य बड़ी चुनौती है।
शिक्षा की गुणवत्ता: ASER की रिपोर्ट में भारत में सीखने के परिणामों की बहुत ही निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत की गई है।
भारत में शिक्षा में सुधार हेतु आवश्यक उपाय:
समस्या को स्पष्ट किया जाना: शिक्षा की प्रगति को मापने के लिये नियमित आकलन की आवश्यकता है और इससे संबंधित समस्याओं को व्यापक रूप से समझने की आवश्यकता है।
इसके अलावा भारत को नियमित रूप से अंतर्राष्ट्रीय मूल्यांकन जैसे- अंतर्राष्ट्रीय गणित और विज्ञान अध्ययन में रुझान और अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम में भाग लेना चाहिये ताकि लक्ष्यों को निर्धारित करते हुए इसके प्रदर्शन और प्रगति को निर्धारित किया जा सके।
शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च को बढ़ाना: शिक्षा पर खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 6% तक बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि उचित वित्त पोषण के बिना भारतीय शिक्षा क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता में और गिरावट आएगी।
कौशल आधारित शिक्षा प्रदान करना: प्राथमिक स्तर से 12वीं कक्षा तक प्रत्येक छात्र को स्कूल स्तर पर व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है।
उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण: भारत में विदेशी नागरिकों को आकर्षित करने और भारतीय संस्थानों और वैश्विक संस्थानों के बीच अनुसंधान सहयोग और छात्रों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये भारत को ज्ञान केंद्र बनाने की आवश्यकता है।
पठन-पाठन अभियान पर बल देना: यह समय की मांग है कि देश के 80% बच्चे नौ साल की उम्र तक किसी एक भाषा में अच्छी तरह से पढ़ और लिख सकें। इससे हम 80% शैक्षिक समस्याओं को हल कर सकेंगे।
पठन-पाठन कौशल विकास और मूल्यांकन पद्धति हेतु शिक्षकों के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।
शिक्षा हेतु प्रौद्योगिकी में निवेश करना: हम जो बदलाव चाहते हैं उसके लिये अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के तरीके विकसित करने की आवश्यकता है। हमारा ध्यान केवल हार्डवेयर निर्माण पर नहीं होना चाहिये बल्कि नई, उच्च-गुणवत्ता वाली सामग्री जैसे कि कुशल शिक्षण प्रणाली और ऐसे उपकरण विकसित करने पर होना चाहिये जो छात्रों को पढ़ने और गणित जैसे बुनियादी कौशल को विकसित करने के साथ कई भारतीय भाषाओं में सामग्री विकसित करने में मददगार साबित हो।
निष्कर्ष:

स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार से एक ऐसा सक्षम वातावरण तैयार होगा जो आजीवन सीखने का मार्ग प्रशस्त करेगा। इससे छात्र स्कूल में पठन-पाठन में अधिक रूचि लेने के साथ राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकेंगे।

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Author: Deep