बिजोलिया किसान आंदोलन:- कब शुरु हुआ
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बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के बिजोलिया ठिकाने में वर्ष 1897 ईस्वी में हुई थी. राजस्थान से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया. बिजोलिया किसान आंदोलन को इतिहास का सबसे लंबा अहिंसक किसान आंदोलन माना जाता है. वर्ष 1897 ईस्वी में शुरू हुआ यह आंदोलन वर्ष 1941 में समाप्त हुआ.
साधु सीताराम दास को बिजोलिया किसान आंदोलन का जनक माना जाता है. बिजोलिया का प्राचीन नाम विजयावल्ली था. बिजोलिया ऊपर माल जागीर के अंतर्गत आता था. इस जागीर को मेवाड़ के महाराणा सांगा ने खंडवा के युद्ध में विजय होने पर अशोक परमार नाम के व्यक्ति को इनाम के रूप में दिया था. बिजोलिया किसान आंदोलन में भाग लेने वाले ज्यादातर किसान धाकड़ जाति के थे.
बिजोलिया राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है जो किसान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध है.
1. बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण (1897-1916)
2. बिजोलिया किसान आंदोलन का द्वितीय चरण (1916-1923)
3. बिजोलिया किसान आंदोलन का तीसरा चरण (1927-1941)
3 बिजोलिया किसान आंदोलन के परिणाम
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बिजोलिया किसान आंदोलन के कारण
बिजोलिया किसान आंदोलन 44 वर्षों तक चलने वाला अहिंसात्मक रूप से इतिहास का सबसे लंबा किसान आंदोलन माना जाता है. बिजोलिया आंदोलन की शुरुआत विभिन्न प्रकार के दमनकारी करों (Tax) की वजह से हुई थी. बिजोलिया किसान आंदोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
[1] ठिकानोदारों द्वारा किसानों पर 84 तरह के कर लगाए जाना.
[2] इनमें से ज्यादातर कर दमनकारी थे जिनमें चंवरी कर ( किसान की बेटी के विवाह पर लगने वाला कर), तलवार बंधाई कर ( नए जागीरदार बनने पर लगने वाला कर), लाग- बाग कर, लाटा कुंता कर ( खेत में खड़ी फ़सल पर लगने वाला कर) और बेगार कर आदि शामिल थे.
[3] ज्यादातर किसान इन दमनकारी करों की वजह से परेशान थे.
[4] कभी-कभी किसान की आय नहीं होने पर भी उन्हें ठिकानेदारों को कर अदा करना पड़ता था.
[5] प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान किसानों पर युद्ध के लिए चंदा और अन्य कर लगाए गए.
[6] अधिक कर और ठिकानेदारों की मनमानी के परिणामस्वरूप बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी.
[7] वर्ष 1894 ईस्वी में उपरमाल जागीर के नए ठिकानेदार राव कृष्ण सिंह बने, किसानों को इनसे राहत की उम्मीद थी लेकिन वर्ष 1897 ईसवी तक करों में किसी भी प्रकार की कटौती नहीं हुई और यहीं से बिजोलिया किसान आंदोलन शुरू हुआ.
बिजोलिया किसान आंदोलन के चरण
यह आंदोलन 3 चरणों में हुआ था. बिजोलिया किसान आंदोलन के तीन प्रमुख चरण निम्नलिखित है-
1. बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण (1897-1916)
इस आंदोलन का प्रथम चरण साधु सीताराम दास के नेतृत्व में हुआ था. वर्ष 1894 ईस्वी में जब राव कृष्ण सिंह उपरमाल जागीर के ठिकानेदार बनें तो किसानों को उम्मीद थी कि यह करों में कमी करेंगे लेकिन 3 वर्ष बीत जाने पर भी कुछ नहीं हुआ. किसान शांतिपूर्वक आंदोलन करना चाहते थे. गिरधरपुर नामक गांव में एक पंचायत बुलाई गई जिसकी अध्यक्षता साधु सीताराम दास कर रहे थे.
इस पंचायत में निर्णय लिया गया कि ठिकानेदार रावकृष्ण सिंह की मेवाड़ के महाराणा से शिकायत करेंगे ताकि किसानों की मांगों को मान लिया जाए.
किसानों की ओर से नानजी पटेल और ठाकरी पटेल महाराणा के दरबार में पहुंचे. मेवाड़ के महाराणा द्वारा हामिद हुसैन को जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई.
महाराणा द्वारा सहायता नहीं मिलने पर राव कृष्ण सिंह के हौसले और बुलंद हो गए और उसने किसानों के खिलाफ दमनकारी नीति अपनाना शुरू किया. परिणाम स्वरूप नानजी पटेल और ठाकरी पटेल को मेवाड़ में प्रतिबंधित कर दिया.
राव कृष्ण सिंह यहीं पर नहीं रुके और उन्होंने किसी भी किसान की बेटी की शादी होने पर ₹5 का नगद कर, चंवरी कर के रूप में लगाया. “तलवार बंधाई कर” की शुरूआत वर्ष 1906 में हुई जब राव कृष्ण सिंह की मौत हो गई और उनकी जगह ठिकानेदार बनें राव पृथ्वीसिंह ने नया कर लगाया. यहीं से बिजोलिया आंदोलन ने जोर पकड़ा.
बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण लगभग 19 वर्ष तक चला.
2. बिजोलिया किसान आंदोलन का द्वितीय चरण (1916-1923)
बिजोलिया किसान आंदोलन का द्वितीय चरण विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में हुआ था. बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रथम चरण की बागडोर संभाल रहे साधु सीताराम दास ने विजय सिंह पथिक को भी इस किसान आंदोलन से जोड़ा जिन्होंनेइस आंदोलन के द्वितीय चरण का नेतृत्व किया.
बिजोलिया किसान आंदोलन में विजय सिंह पथिक का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
विजय सिंह पथिक मूल रूप से बुलंदशहर उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे और उनका नाम भूपसिंह था. मन्ना पटेल नामक व्यक्ति को सरपंच नियुक्त करते हुए विजय सिंह पथिक ने 13 सदस्यों वाली उपरामल पंचबोर्ड बोर्ड का गठन किया.
वर्ष 1918 में बिजोलिया आंदोलन को लेकर विजय सिंह पथिक महात्मा गांधी से मिले और इस आंदोलन के बारे में जानकारी दी, जिससे महात्मा गांधी भी प्रभावित हुए. महात्मा गांधी ने उनके महासचिव महादेव देसाई को इस आंदोलन की जांच का आदेश दिया और विजय सिंह पथिक को “राष्ट्रीय पथिक” की उपाधि प्रदान की.
विजय सिंह पथिक ने कानपुर में छपने वाले एक समाचार पत्र के माध्यम से इस किसान आंदोलन को पूरे भारत में फैलाया. जब महात्मा गांधी ने इस आंदोलन में रुचि लेना शुरू कर दिया तब बिंदु लाला भट्टाचार्य की अध्यक्षता में अंग्रेजी सरकार द्वारा 1918-19 में एक जांच आयोग का गठन किया और कुछ करों में राहत दी.
बेगू किसान आंदोलन के साथ जुड़ने के पश्चात 10 सितंबर 1923 को विजय सिंह पथिक को गिरफ्तार किया गया.
3. बिजोलिया किसान आंदोलन का तीसरा चरण (1927-1941)
बिजोलिया किसान आंदोलन का तीसरा चरण विजय सिंह पथिक की गिरफ्तारी के कुछ वर्षों बाद प्रारंभ हुआ, जिसका नेतृत्व माणिक्य लाल वर्मा ने किया था. वर्ष 1927 ईस्वी में प्रारंभ हुए बिजोलिया किसान आंदोलन के तीसरे चरण में माणिक्य लाल वर्मा के साथ हरीभाऊ उपाध्याय और जमनालाल बजाज भी.
माणिक्य लाल वर्मा का गीत “पंछीड़ा” ने किसानों में जोश भर दिया.
अहिंसात्मक रूप से 44 वर्ष तक चलने वाले इस किसान आंदोलन की समाप्ति वर्ष 1941 में हुई. जिसमें टी. वीजय राघवाचार्य (मेवाड़ के प्रधानमंत्री) और किसानों के मध्य एक समझौता हुआ, इस समझौते के अनुसार किसानों की सभी मांगे मान ली गई.
बिजोलिया किसान आंदोलन को अहिंसात्मक की किसान आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है. बिजोलिया किसान आंदोलन में महिलाओं ने भी भाग लिया था जिनमें रमा देवी, नारायण देवी वर्मा और अंजना देवी चौधरी का नाम प्रमुख है.
निरंतर 44 वर्षों तक चले आंदोलन के कारण अंततः किसानों के सभी कर माफ कर दिए गए और इस अहिंसात्मक आंदोलन में किसानों की जीत हुई.
बिजोलिया किसान आंदोलन के समय मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह जी थे.
बिजोलिया किसान आंदोलन के परिणाम
1897 ईस्वी में शुरू हुए बिजोलिया किसान आंदोलन की समाप्ति वर्ष 1941 ईस्वी में हुई. निरंतर 44 वर्षों तक चले बिजोलिया किसान आंदोलन के परिणाम निम्नलिखित हैं-
[1] बिजोलिया किसान आंदोलन के परिणाम स्वरूप किसानों के सभी कर माफ कर दिए गए.
[2] किसानों की सभी मांगे मान ली गई.
[3] बिजोलिया किसान आंदोलन भारत के अहिंसक किसान आंदोलनों में सबसे लंबा चलने वाला आंदोलन माना जाता है.
[4] यह अहिंसक किसान आंदोलन किसानों के पक्ष में हुए समझौते के साथ वर्ष 1941 में समाप्त हुआ.
बिजोलिया किसान आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रश्न
बिजोलिया किसान आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रश्न (Bijoliya Kisan Aandolan GK)– बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के बिजोलिया ठिकाने में वर्ष 1897 ईस्वी में हुई थी. राजस्थान से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया. बिजोलिया किसान आंदोलन को इतिहास का सबसे लंबा अहिंसक किसान आंदोलन माना जाता है. वर्ष 1897 ईस्वी में शुरू हुआ यह आंदोलन वर्ष 1941 में समाप्त हुआ. बिजोलिया किसान आंदोलन से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न कई परीक्षाओं में पूछे जाते हैं. परीक्षा की दृष्टि से Bijoliya Kisan Aandolan GK के प्रश्न और उत्तर का समावेश किया गया हैं.
बिजोलिया किसान आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न [1] बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत कब हुई?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत 1897 ईस्वी में मेवाड़ के बिजोलिया में हुई थी.
प्रश्न [2] राजस्थान का पहला संगठित किसान आंदोलन कौन सा था?
उत्तर- “बिजोलिया किसान आंदोलन” राजस्थान का पहला संगठित किसान आंदोलन था.
प्रश्न [3] बिजोलिया किसान आंदोलन का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर- साधु सीताराम दास को बिजोलिया किसान आंदोलन का जनक माना जाता हैं.
प्रश्न [4] बिजौलिया की स्थापना किसने ने की थी?
उत्तर- अशोक परमार ने बिजोलिया की स्थापना की थी.
प्रश्न [5] बिजोलिया किसान आंदोलन जब प्रारंभ हुआ तब वहां के ठिकानेदार कौन थे?
उत्तर- बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्ण सिंह थे.
प्रश्न [6] बिजोलिया का प्राचीन या शुद्ध नाम क्या था?
उत्तर- विजयावल्ली.
प्रश्न [7] वर्तमान में बिजोलिया कहां स्थित हैं?
उत्तर- भीलवाड़ा (राजस्थान).
प्रश्न [8] “ऊपरमाल” नाम से किसे जाना जाता हैं?
उत्तर- बिजोलिया.
प्रश्न [9] बिजोलिया किसान आंदोलन में किस जाति के किसान सर्वाधिक थे?
उत्तर- धाकड़ जाति.
प्रश्न [10] बिजोलिया किसान आंदोलन का मुख्य मुद्दा क्या था?
उत्तर- भू राजस्व निर्धारण एवं संग्रह की पद्धति तथा 84 प्रकार के कर.
प्रश्न [11] बिजोलिया किसान आंदोलन के समय मेवाड़ के महाराणा कौन थे?
उत्तर- महाराणा फतेह सिंह जी.
प्रश्न [12] बिजोलिया किसान आंदोलन की प्रथम पंचायत किस गांव में हुई?
उत्तर- गिरधारीपुरा नामक गांव में.
प्रश्न [13] बिजोलिया ठिकाने के जुल्मों के विरुद्ध महाराणा से शिकायत करने के लिए किसे भेजा गया?
उत्तर- नानजी पटेल और ठाकरी पटेल.
प्रश्न [14] बिजोलिया किसान आंदोलन में किसानों की शिकायत के खिलाफ महाराणा द्वारा किसे जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया?
उत्तर- हामिद हुसैन.
प्रश्न [15] नानजी पटेल और ठाकरी पटेल को ऊपरमाल (बिजोलिया) से निर्वासित क्यों किया गया?
उत्तर- क्योंकि इन्होंने ठिकानेदार राव कृष्ण सिंह के खिलाफ महाराणा से शिकायत की थी. जब महाराणा द्वारा कोई सहायता नहीं मिली तो राव कृष्ण सिंह के हौसले बुलंद हो गए और उन्होंने इन दोनों को ठिकाने से निर्वासित कर दिया.
प्रश्न [16] वर्ष 1897 ईस्वी में हुए बिजोलिया किसान आंदोलन की असफलता का कारण क्या था?
उत्तर- महाराणा फतेह सिंह जी द्वारा सहायता नहीं मिलना.
प्रश्न [17] “तलवार बंधाई कर” किस ठिकानेदार द्वारा लगाया गया?
उत्तर- राव पृथ्वीसिंह द्वारा.
प्रश्न [18] “तलवार बंधाई कर” क्या था?
उत्तर- उत्तराधिकारी शुल्क अर्थात ठिकानेदार द्वारा उत्तराधिकारी के अधीन ताजपोशी होने पर जनता से वसूल किया जाने वाला कर.
प्रश्न [19] “तलवार बंधाई कर” का विरोध किसके नेतृत्व में हुआ था?
उत्तर- साधु सीताराम दास, फतेहकरण चारण एवं ब्रह्मदेव के नेतृत्व में.
प्रश्न [20] विजय सिंह पथिक किसके आग्रह पर बिजोलिया किसान आंदोलन से जुड़े?
उत्तर- साधु सीताराम दास के आग्रह पर वर्ष 1916 ईस्वी में विजय सिंह पथिक बिजोलिया किसान आंदोलन से जुड़े.
प्रश्न [21] “ऊपरमाल पंच बोर्ड” नामक संगठन की स्थापना किसने की थी?
उत्तर- ऊपरमाल पंच बोर्ड संगठन की स्थापना वर्ष 1917 ईस्वी में विजय सिंह पथिक ने की थी.
प्रश्न [22] “ऊपरमाल पंच बोर्ड” का सरपंच किसे नियुक्त किया गया?
उत्तर- श्री मन्ना पटेल.
प्रश्न [23] बिजोलिया किसान आंदोलन को एक निश्चित एवं संगठित स्वरूप किसने प्रदान किया था?
उत्तर- विजय सिंह पथिक.
प्रश्न [24] बिजोलिया के किसानों की मांगों के औचित्य की जांच के लिए गठित जांच आयोग का नाम क्या था?
उत्तर- अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य जांच आयोग का गठन किया गया.
प्रश्न [25] बिजोलिया किसान आंदोलन को शांत करने के लिए भारत सरकार द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि का नाम बताइए?
उत्तर- रॉबर्ट हॉलैंड (4 फरवरी 1922).
प्रश्न [26] बिजोलिया किसान आंदोलन में किसानों के पक्ष में पहला समझौता कब हुआ?
उत्तर- 11 जून,1922 (रॉबर्ट हॉलैंड के प्रयासों से).
प्रश्न [27] विजय सिंह पथिक बिजोलिया किसान आंदोलन से कब अलग हुए?
उत्तर- वर्ष 1927 ईस्वी में.
प्रश्न [28] विजय सिंह पथिक के बाद बिजोलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर- सेठ जमनालाल जी बजाज एवं हरीभाऊ जी उपाध्याय द्वारा.
प्रश्न [29] बिजोलिया किसान आंदोलन का पटाक्षेप कब हुआ?
उत्तर- वर्ष 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचार्य के बनने पर.
प्रश्न [30] मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचा ने बिजोलिया किसान आंदोलन की समस्या का समाधान करने के लिए किसे भेजा?
उत्तर- राजस्व विभाग के मंत्री डॉ मनमोहन मेहता को.
प्रश्न [31] किसके नेतृत्व में बिजोलिया किसान आंदोलन की सभी मांगें मान ली गई?
उत्तर- माणिक्यलाल वर्मा
प्रश्न [32] बिजोलिया किसान आंदोलन कितने वर्षों तक चला?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन 44 वर्षों तक चला.
प्रश्न [33] भारत का पहला अहिंसक किसान आंदोलन कौन सा था?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन (1897-1941).
प्रश्न [34] बिजोलिया किसान आंदोलन कब आरम्भ हुआ?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन 1897 में आरंभ हुआ था.
प्रश्न [35] बिजोलिया किसान आंदोलन में मुख्यतः किस जाति के किसान थे?
उत्तर- धाकड़ जाति के किसान.
प्रश्न [36] विजय सिंह पथिक किसके कहने पर और कब बिजोलिया किसान आंदोलन से जुड़े?
उत्तर- वर्ष 1916 ईस्वी में विजय सिंह पथिक, साधु सीताराम दास के आग्रह पर बिजोलिया किसान आंदोलन से जुड़े.
प्रश्न [37] विजय सिंह पथिक बिजोलिया किसान आंदोलन से पृथक कब हुए?
उत्तर- वर्ष 1927 ईस्वी में.
प्रश्न [38] बिजोलिया किसान आंदोलन का कारण कितने प्रकार के कर और बेगार प्रथा थी?
उत्तर- 84.
प्रश्न [39] नानजी और ठाकरी पटेल का संबंध किस आन्दोलन से है?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन से.
प्रश्न [40] “मेवाड़ का वर्तमान शासन” नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर- माणिक्य लाल वर्मा ने.
प्रश्न [41] वर्ष 1916 में किसने बिजोलिया किसान पंचायत का आयोजन किया था?
उत्तर- विजय सिंह पथिक.
प्रश्न [42] “ऊपरमाल किसान पंच बोर्ड” की स्थापना की गई?
वर्ष 1917 में.
प्रश्न [43] बिजोलिया किसान आंदोलन के दौरान “प्रवर्तित विद्या प्रचारिणी सभा” के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर- विजय सिंह पथिक.
प्रश्न [44] मेवाड़ पुकार 21 सूत्री मांग पत्र का संबंध किससे था?
उत्तर- मोतीलाल तेजावत.
प्रश्न [45] बिजोलिया शिलालेख के लेखक कौन हैं?
उत्तर- जैन श्रावक लोलाक जी.
प्रश्न [46] बिजोलिया किसान आंदोलन कितने वर्ष तक चला?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन 44 वर्षों तक चला.
प्रश्न [47] बिजोलिया किसान आंदोलन कितने चरणों में हुआ था?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन तीन चरणों में हुआ था.
प्रश्न [48] बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण वर्ष 1897 ईस्वी से लेकर 1916 ईस्वी तक चला जिसका नेतृत्व साधु सीताराम दास द्वारा किया गया.
प्रश्न [49] बिजोलिया किसान आंदोलन का द्वितीय चरण?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन का द्वितीय चरण वर्ष 1916 से लेकर 1923 तक चला जिसका नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था.
प्रश्न [50] बिजोलिया किसान आंदोलन का तृतीय चरण?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन का तृतीय चरण वर्ष 1923 से लेकर 1941 ईस्वी तक चला जिसका नेतृत्व सेठ जमनालाल बजाज और हरीभाऊ उपाध्याय द्वारा किया गया था.
प्रश्न [51] बिजोलिया कौन से जिले में स्थित है?
उत्तर- बिजोलिया राजस्थान राज्य के भीलवाड़ा जिले में स्थित है.
प्रश्न [52] बिजोलिया किसान आंदोलन में भाग लेने वाली महिला कौन थी?
उत्तर- रमा देवी जी.
प्रश्न [53] राजस्थान का पहला किसान आंदोलन कौन सा है?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन.
प्रश्न [54] बिजोलिया किस लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर- बिजोलिया तपोदाय तीर्थ क्षेत्र और मंदाकिनी मंदिर के साथ ही किसान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध है.
प्रश्न [55] बिजोलिया किसान आंदोलन कहां हुआ था?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन मेवाड़ के बिजोलिया नामक क्षेत्र में हुआ था जो कि वर्तमान में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है.
प्रश्न [56] बिजोलिया किसान आंदोलन के समय मेवाड़ के महाराणा कौन थे?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन के समय मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह जी थे.
प्रश्न [57] बिजोलिया किसान आंदोलन में महिलाओं का योगदान?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन एकमात्र अहिंसक किसान आंदोलन था जिसमें अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वर्मा व रमा देवी नामक महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.
प्रश्न [58] बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख नेताओं में साधु सीताराम दास, विजय सिंह पथिक, माणिक्य लाल वर्मा, सेठ जमनालाल बजाज, हरीभाऊ उपाध्याय और फतेह करण चारण का नाम मुख्य है इसके अलावा रामनारायण चौधरी भी इसमें शामिल थे.
प्रश्न [59] बिजोलिया आंदोलन कितने वर्ष तक चला?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन 44 वर्षों तक चला था.
प्रश्न [60] बिजोलिया किसान आंदोलन क्या है?
उत्तर- बिजोलिया किसान आंदोलन मेवाड़ राज्य में अत्यधिक भू राजस्व के खिलाफ बड़ा आंदोलन था.
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