UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi

UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi

UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi

Hello aspirants,

UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi:- Today we are sharing UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi. This UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi can prove to be important for the preparation of upcoming government exams like SSC CHSL, GATE, SSC CGL, BANK, RAILWAYS, RRB NTPC, LIC AAO, DRDO, FCI, DSSSB, RAS, UPSC, DDA, AAI, SSC JE, IES, UPSC, ALL STATE PDF EXAM, and many other exams. This UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi are very important for any government exam.

This UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi is being provided to you free of charge, which you can DOWNLOAD by clicking on the DOWNLOAD button given below, and you can also DOWNLOAD some more new PDFs related to This UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi by going to the related notes. You can learn about all the new updates on PDFDOWNLOAD.IN by clicking on the Allow button on the screen.

pdfdownload.in is an online educational website, where we are sharing UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi for free DOWNLOAD for UPSC, SSC, BANK, RAILWAY, LIC, and many other exams. Our International Relations are very simple and easy to understand. This UPSC International Relations handwritten notes pdf in Hindi, International Relations We also cover basic subjects like English Grammar, Mathematics, Geography, History, General Science, Politics, etc. We also share study material including previous year question papers, current affairs, important sources, etc. for upcoming government exams. Our PDF will help you prepare for any SARKARI EXAM.

Download GK Notes 

Most Important International Relations Question Answer

वेस्ट बैंक विवाद का इतिहास :-

अमेरिका के विदेश सचिव माइक पोम्पियों पिछले दिनों इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतनयाहू से जेरुसलम में मिले. इन दोनों ने वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों को इजराइल में मिलाने की इजरायली योजना पर चर्चा हुई.

वेस्ट बैंक क्या है?
वेस्ट बैंक भूमध्यसागर के तट के निकट एक भूभाग है जो चारों ओर से अन्य देशों से घिरा (landlocked) हुआ है. इसके पूर्व में जॉर्डन तथा दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में इजराइल है.

वेस्ट बैंक के अन्दर मृत सागर (dead sea) के पश्चिमी तट का एक बड़ा भाग भी आता है.

वेस्ट बैंक विवाद का इतिहास
1948 के अरब-इजराइली युद्ध में जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर आधिपत्य कर लिया था.
1967 के छह दिवसीय युद्ध के समय इजराइल ने जॉर्डन से यह भूभाग छीन लिया और तब से इस पर इजराइल का ही कब्ज़ा है.
इजराइल ने यहाँ 130 औपचारिक बस्तियाँ बनाई हैं. इसके अतिरिक्त इतनी ही बस्तियाँ पिछले 20-25 वर्षों में यहाँ बन चुकी हैं.
यहाँ 26 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं. इसके अतिरिक्त यहाँ 4 लाख इजराइली बस गये हैं. यहूदियों का मानना है कि इस भूभाग पर उनको बाइबिल में ही जन्मसिद्ध अधिकार मिला हुआ है.
फिलिस्तीनी लोगों का कोई अलग देश नहीं है. उनका लक्ष्य है कि इस भूभाग में फिलिस्तीन देश स्थापित किया जाए जिसकी राजधानी पूर्वी जेरुसलम हो. इस कारण यहूदियों और फिलिस्तीनियों में झगड़ा होता रहता है. फिलिस्तीनियों का मानना है कि 1967 के बाद वेस्ट बैंक ने जो यहूदी बस्तियाँ बसायीं, वे सभी अवैध हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद् और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय भी यही मानता है कि वेस्ट बैंक में इजराइल द्वारा बस्तियाँ स्थापित करना चौथी जिनेवा संधि (1949) का उल्लंघन है जिसमें कहा गया था कि यदि कोई देश किसी भूभाग पर कब्ज़ा करता है तो वहाँ अपने नागरिकों को नहीं बसा सकता है.
रोम स्टैच्यूट (Rome Statute) के अंतर्गत 1998 में गठित अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court) के अनुसार भी इस प्रकार एक देश के लोगों को कब्जे वाली भूमि पर बसाना एक युद्ध अपराध है.
अमेरिका और भारत का दृष्टिकोण
अमेरिका इजराइली बस्तियों को अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं मानता है, अपितु उन्हें इजराइल की सुरक्षा के लिए आवश्यक मानता है. भारत पारम्परिक रूप से इस मामले में दो देशों के अस्तित्व के सिद्धांत (2-state solution) पर चलता आया है और इसलिए वह एक संप्रभु और स्वतंत्र फिलिस्तीन देश के स्थापना का समर्थन करता है. फिर भी इजराइल से भारत के रिश्ते दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ होते रहे हैं.

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध – TRADE WAR BETWEEN US-CHINA

1 भारत-अमेरिका-चीन
2 अमेरिका-चीन में सीमा शुल्क प्रतिस्पर्धा और इसके राजनीतिक परिणाम
3 भारत और उभरते बाजार का प्रभाव
4 भारत बाजार पर प्रभाव
4.0.1 मुख्य तथ्य
4.1 निष्कर्ष
4.2 Related

अमेरिका-चीन के व्यापार के विभिन्न आयाम हैं और इसमें कई प्रकार की जटिलताएं विद्यमान हैं. इन जटिलताओं का व्यापक प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ता है जिसमें उभरते हुए बाजार एवं व्यापार असंतुलन भी शामिल हैं. इसके पीछे कारण यह है कि पिछले 25 सालों से चीन का दबदबा जगजाहिर है.

अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा अब शीतयुद्ध में बदल रही है क्योंकि अब अमेरिका व्यापार में असंतुलन को खत्म करने के लिए अग्रसर है.

भारत-अमेरिका-चीन
भारत की अमेरिका के साथ जुगलबंदी चल रही है और चीन के साथ भी रिश्ते में नए पहल और नए आयाम खोजे जा रहे हैं. अमेरिकी प्रशासन चीन की सर्वोच्चता को माँपते हुए भारत को समर्थन एवं महत्त्व दे रहा है. इसी क्रम में यह भी आशंका जताई जा रही है कि दोनों महाशक्तियों के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के उत्पन्न होने से सबसे अधिक नुकसान श्रमिक वर्गों एवं कृषि उत्पादन को है. अमेरिका की स्पष्ट चिंता है कि इस बढती व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का परिणाम क्या होगा. चीन की अर्थव्यवस्था को वृहद् विश्व बाजार में कैसे मुखर किया जाए, यह एक दीर्घप्रश्न है. यह एक बड़ा सवाल चीन के विरुद्ध अमेरिकी अभियान के समक्ष है.

अमेरिका-चीन में सीमा शुल्क प्रतिस्पर्धा और इसके राजनीतिक परिणाम
वैश्विक आर्थिक संवृद्धि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संपोषण के आधार पर संचालित होती है और ये सारी चीजें आयात-निर्यात करने वाले देशों के बीच क्रियाशील संबंधों एवं मनोवृत्तियों पर निर्भर करती है. आज विश्व की जो स्थिति एवं परिस्थिति है, विश्व की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक एशिया देशों, विशेषकर – चीन, जापान, साउथ कोरिया और भारत के साथ व्यापार पर निर्भर करती है. अमेरिका व्यापार की गति को अपने डॉलर मुद्रा और उपभोग की ताकत के द्वारा नियंत्रित करता है. यूरोप में जर्मनी एक बड़ा निर्यातक देश है और इसकी सीधी प्रतिस्पर्धा चीन से है जो विश्व व्यापार की एक बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है.

ट्रम्प के शासनकाल में देखा जाए तो अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में व्यापक बदलाव का अनुभव किया जाने लगा है. अमेरिका और चीन के रिश्ते में तनाव की लकीरें पड़नी शुरू हो गई हैं क्योंकि चीन अमेरिका को निर्यात करता है और डॉलर मुद्रा का महत्त्व सर्वोपरि है. अमेरिका का चीन के साथ व्यापारिक घाटा 375 बिलियन डॉलर का रहा और इसलिए यह आवश्यक हो गया कि चीन के साथ नए व्यापारिक शुल्क दर या व्यापारिक सीमा शुल्क निर्धारित किया जाए.

भारत और उभरते बाजार का प्रभाव
अधिकांश उभरते बाजार ऐसे हैं, जो व्यापार प्रतिबंध और उच्च अमेरिकी दरों की मार झेल रहे हैं. जितनी अधिक उच्च दर होगी, उतनी ही शीघ्रता और तत्परता से निवेषक अपनी पूँजी को सम्पत्ति में बदलेगा. इससे निश्चित रूप से डॉलर का मूल्य बढ़ेगा. IMF ने टिपण्णी की कि उभरते हुए बाजार में पूँजी प्रवाह उत्तरार्द्ध के महीनों में कमजोर हुआ है. अगर यही स्थिति जारी रही तो, गिरते हुए बाजार में दबाव अधिक बढ़ेगा. उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना ने IMF से मदद मांगी तो उसने दूसरे देशों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया. दूसरा खतरा यह कि चीन अधिकतर उन जगहों पर जटिल स्थिति का सामना कर रहा है, जहाँ पर विकास दरों को 0.2% से 6.2% तक कटौती झेलनी पड़ी है. बहरहाल, इसके अतिरिक्त और भी समस्याएँ हैं, जो विकासशील देशों को अपने घरेलू हालातों के वजह से झेलनी पड़ रही है.

भारत बाजार पर प्रभाव
जहाँ तक भारत का सवाल है, यहाँ चीन के मुकाबले समायोजन की संभावना अल्प है. इसके पीछे कारण यह है कि यहाँ हमारे देश में विकल्प बहुत कम हैं. विभिन्न स्थानों पर कार्यरत सेंट्रल बैंक दरें कम करने के ऊपर सोच रहे हैं, ताकि US फेडरल रिजर्व्स का मुकाबला किया जा सके ताकि उभरते हुए बाजार में मुद्रा का मूल्य बरकरार रहे. सारे उभरते हुए बाजार अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अनुरूप अपने दर तेजी से घटाते जा रहे हैं. RBI ने रेपो रेट में यथास्थिति बरकरार रखा है. कच्चे तेल की कीमतों एवं रुपये का अवमूल्यन और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के अतिरिक्त भारत के राज्यों में चुनाव में आगामी महीनों में कोई खतरा नहीं है.

भारत में सामान्य शेयर बाजार (इक्विटी मार्किट) इस तथ्य की तरफ इंगित करेंगे कि रूपये में कितना अवमूल्यन होने की संभावना है. भारत तेल के आवश्यकता की पूर्ति विदेशी मालवाहक परिवहन से कर लेता है.

मुख्य तथ्य
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा अब शीतयुद्ध में परिवर्तित हो रही है क्योंकि अब अमेरिका व्यापार में असंतुलन को समाप्त करते हुए परिवर्तन का आकांक्षी है. ट्रम्प प्रशासन को अमेरिकी राजनीतिक संवर्ग एवं राजनीतिक गलियारों का पूरा समर्थन हासिल है.
ट्रम्प सरकार का कहना है कि चीन का कृषि सम्बन्धी दृष्टिकोण वाकई में किसानों का अहित करेगा. चीन के द्वारा लगाया करारोपण कृषि उत्पादों पर और कृषि श्रमिकों पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है.
विभिन्न स्थानों पर कार्यरत सेन्ट्रल बैंक दरें कम करने के ऊपर सोच रहे हैं, ताकि US फ़ेडरल रिजर्व्स का मुकाबला किया जा सके ताकि उभरते हुए बाजार में मुद्रा का मूल्य बरकरार रहे. सारे उभरते हुए बाजार अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अनुरूप अपने दर तेजी से घटाते जा रहे हैं.
IMF ने 2019 में अमेरिका के लिए उभरते हुए बाजार के लिए और विकासशील अर्थव्यस्था के लिए कटौती की है. इनमें 2018 और 2019 तक 2% विकास होने की संभावना है. बाकी दुनिया के लिए आर्थिक परिदृश्य कुछ विशेष नहीं है. यहाँ पर आर्थिक परिदृश्य एक बदसूरत तस्वीर पर्श करता है.
निष्कर्ष
अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध का भावी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि दोनों देशों में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के संदर्भ में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं. इस परिवर्तन की समीक्षा इस तरह से भी होनी चाहिए कि अब एक समतावादी समाज वर्तमान के जद्दोजहद से उभर कर सामने आएगा. इसी आधार पर अब अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विकसित होंगे. केवल चातुर्य से ही कोई हल नहीं निकलने वाला है, जब तक कि व्यवस्थित प्रयास नहीं किये जाते हैं. सभी के लिए मुक्त संवाद एवं स्वतंत्र परिस्थितियाँ कायम करनी होगी.

More Related Notes PDF Download

Maths Topicwise Free PDF > Click Here To Download
English Topicwise Free PDF > Click Here To Download
GK/GS/GA Topicwise Free PDF > Click Here To Download
Reasoning Topicwise Free PDF > Click Here To Download
Indian Polity Free PDF > Click Here To Download
History  Free PDF > Click Here To Download
Computer Topicwise Short Tricks > Click Here To Download
EnvironmentTopicwise Free PDF > Click Here To Download
UPSC Notes > Click Here To Download
SSC Notes Download > Click Here To Download

Most Important International Relations Question Answer

ओस्लो समझौता – OSLO ACCORDS EXPLAINED

0.1 फिलिस्तीनियों की आशंकाएँ
0.2 पृष्ठभूमि
1 ओस्लो समझौता क्या है?
1.1 ओस्लो II समझौता
1.2 Related

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने घोषणा की है कि वे अगले सप्ताह पश्चिमी एशिया के लिए एक शांति योजना घोषित करेंगे. इस पर फिलिस्तीनियों ने धमकी दी है कि यदि ट्रम्प ऐसा करते हैं तो वे ओस्लो समझौते (Oslo Accords) से बाहर निकल जाएँगे.

फिलिस्तीनियों की आशंकाएँ
फिलिस्तीनियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि हो सकता है प्रस्तावित कार्ययोजना में इजराइल ने फिलिस्तीन के जिस भूभाग को तत्काल के लिए कब्जे में रखा है, उस पर उनका स्थायी कब्ज़ा हो जाएगा.
फिलिस्तीनी सोचते हैं कि कल होकर उनका कोई देश बनेगा तो उसकी राजधानी पूर्वी येरुसलम होगी जो ट्रम्प की कार्ययोजना के कारण उनके हाथ से निकल जायेगी.
फिलिस्तीनियों का विश्वास है कि ट्रम्प की योजना दो देशों के समाधान की अवधारणा (the two-state solution) को समाप्त कर देगी जबकि यही अवधारणा पश्चिम एशिया की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की दशकों से आधारशिला रही है.
पृष्ठभूमि
1993 के ओस्लो समझौते के अन्दर इजराइल और फिलिस्तीनी दोनों इस बात सहमत हुए थे कि फिलिस्तीनी बस्तियों का दर्जा वार्तालाप से निर्धारित किया जाएगा. परन्तु कई वर्षों से समझौते की प्रक्रिया लगभग मृतप्राय ही है.

1967 में इजराइल पूर्वी येरुसलम में घुस गया और कालांतर में उस पर आधिपत्य जमा लिया. इजराइल का कहना है कि येरुसलम पर कोई भी वार्ता नहीं हो सकती अर्थात् वह इसे कभी नहीं छोड़ेगा. जबकि ऐसा ऊपर कहा जा चुका है कि फिलिस्तीनी पूर्वी येरुसलम को अपने भावी देश की राजधानी बनाना चाहते हैं. विश्व के अधिकांश देश इसे एक कब्ज़ा किया गया भूभाग मानते हैं.

ओस्लो समझौता क्या है?
ओस्लो समझौता का औपचारिक नाम “सिद्धांतों की घोषणा” (Declaration of Principles – DOP) है. इस समझौते में मध्य-पूर्व शान्ति प्रक्रिया की एक समय-तालिका बनी थी. इसके अनुसार, पश्चिमी तट पर स्थित गाजा और जेरिको में फिलिस्तीन की एक अंतरिम सरकार होगी.

ओस्लो II समझौता
आगे चलकर ओस्लो समझौते का विस्तार करते हुए ओस्लो II समझौता हुआ जिसका औपचारिक नाम “पश्चिम तट और गाजा पर इसरायली-फिलिस्तीनी अंतरिम समझौता” (Israeli-Palestinian Interim Agreement on the West Bank and Gaza) पड़ा.

इसमें यह प्रावधान किया गया कि पश्चिम तट के छह नगरों और लगभग 450 शहरों से इसरायली सेनाएँ पूरी तरह से वापस हो जाएँगी. इस भूभाग में फिलिस्तीनियों को पाँच वर्ष की सीमित स्वायत्तता दी जायेगी. ओस्लो II में फिलिस्तीनी विधान परिषद् के लिए चुनाव हेतु एक समय-सारिणी भी दी गई. फिलिस्तीन के पुलिस बल की स्थापना होगी. इस समझौते में येरुसलम के विषय में कोई निर्णय नहीं लिया गया.

सिन्धु जल संधि एवं इसका सामरिक महत्त्व – SINDHU RIVER TREATY

सिन्धु जल संधि

उरी अटैक के बाद भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध में एक बार फिर से खटास आ गयी है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने सिन्धु जल संधि की बात छेड़ कर अंदाजा दे दिया है कि रिश्ते में यह खटास कभी भी कड़वाहट में बदल सकती है. एक सिविल सेवा परीक्षार्थी होने के नाते आपका धर्म है कि आप Current Affairs से सम्बंधित सभी टॉपिक को जानें, इसलिए सिन्धु जल संधि के विषय में मैं आपको संक्षेप में बता रहा हूँ.

क्या है यह सिन्धु जल संधि (SINDHU RIVER TREATY)?
१. यह संधि भारत और पाकिस्तान के मध्य 1960 ई. में की गयी थी. भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सिन्धु नदी के जल को लेकर यह समझौता हुआ था.

२. इस संधि के तहत सिन्धु नदी की सहायक नदियों को दो भागों में बाँट दिया गया – – – पूर्वी भाग और पश्चिमी भाग.

३. पूर्वी भाग में जो नदियाँ बहती हैं, वे हैं–> सतलज, रावी और व्यास. इन तीनों नदियों पर भारत का फुल कण्ट्रोल है.

४. पश्चिमी भाग में जो नदियाँ बहती हैं, वे हैं–> सिंध, चेनाब और झेलम. भारत सीमित रूप से इन नदियों के जल का प्रयोग कर सकता है.

५. इस संधि के अनुसार पश्चिमी भाग में बहने वाली नदियों का भारत केवल 20% भाग प्रयोग में ला सकता है. हालाँकि, भारत इनमें “रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट” पर काम कर सकता है. रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट का अर्थ हुआ—>वे पनबिजली उत्पादन संयंत्र जिनमें जल को जमा करने की आवश्यकता नहीं है.

६. यह 56 साल पुरानी संधि है.

सिन्धु नदी की उपयोगिता क्या है? (UTILITY OF SINDHU RIVER)

१. सिन्धु नदी उप-महाद्वीप की विशाल नदियों में से एक है.

२. सिन्धु बेसिन 11.5 लाख वर्गमीटर में फैला हुआ है. उत्तर प्रदेश के जैसे चार राज्य इसमें समा सकते हैं.

३. इसकी लम्बाई 3000 किलोमीटर से भी ज्यादा है.

४. गंगा नदी से भी यह विशाल है.

५. इसकी सहायक नदियाँ — चेनाब, झेलम, सतलज, रावी और व्यास हैं.

६. अपनी सभी सहायक नदियों के साथ यह अरब सागर (कराँची, पाकिस्तान) में गिरती है.

७. सिन्धु नदी पाकिस्तान के दो तिहाई भाग को कवर करती है.

८. पाकिस्तान सिन्धु नदी के जल का प्रयोग सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए करता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि सिन्धु नदी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण है.

भारत के लिए सिन्धु जल संधि को अचानक रद्द कर देना इतना आसान नहीं है. भारत को पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदी को रोकने के लिए अनेक डैम और नहरें बनानी पड़ेंगी. ऐसा करने में करोड़ों/अरबों रूपये बहाने पड़ेंगे. यदि भारत ने ऐसा किया भी तो कई निवासियों का विस्थापन हो जायेगा और ऐसा करना पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित नहीं है. भारत ने कभी भी आज तक किसी भी देश से की गई संधि नहीं तोड़ी है. संधि तोड़ने पर पकिस्तान को सार्वजनिक वैश्विक मंच पर भारत को नीचा दिखाने का मौका भी मिल जायेगा.

Topic Related PDF Download

Download pdf

pdfdownload.in will bring you new PDFs on Daily Bases, which will be updated in all ways and uploaded on the website, which will prove to be very important for you to prepare for all your upcoming competitive exams.

The above PDF is only provided to you by PDFdownload.in, we are not the creator of the PDF, if you like the PDF or if you have any kind of doubt, suggestion, or question about the same, please send us on your mail. Do not hesitate to contact me. [email protected] or you can send suggestions in the comment box below.

Please Support By Joining Below Groups And Like Our Pages We Will be very thankful to you.

Author: Deep

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *