Rajasthan Judiciary Services Previous Year Question Papers

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Hello aspirants,

Rajasthan Judiciary Services refers to the judicial services conducted by the Rajasthan High Court for the recruitment of judicial officers in the state of Rajasthan, India. The judiciary services examination is conducted to select candidates for various posts, such as Civil Judge, Judicial Magistrate, and District Judge, in the subordinate and district judiciary of Rajasthan.

Here are some key points regarding Rajasthan Judiciary Services:

Conducting Authority: The Rajasthan High Court is responsible for conducting the recruitment process for judicial services in the state.

Eligibility Criteria: To be eligible for Rajasthan Judiciary Services, candidates must meet certain criteria, including educational qualifications, age limits, and other eligibility requirements specified by the Rajasthan High Court.

Examination Process: The recruitment process typically involves a three-stage selection process, which includes a preliminary examination, a mains examination, and a viva-voce (interview) round.

Preliminary Examination: The preliminary examination is an objective-type test that assesses candidates’ knowledge in subjects such as law, general knowledge, and current affairs.

Mains Examination: Candidates who qualify the preliminary examination are eligible to appear for the mains examination. The mains examination is a descriptive test that evaluates candidates’ understanding of various areas of law, including substantive law and procedural law.

Viva-Voce (Interview): Candidates who clear the mains examination are shortlisted for a viva-voce or personal interview round. The interview assesses candidates’ personality, knowledge, and suitability for the judicial services.

Syllabus and Subjects: The syllabus for Rajasthan Judiciary Services includes various subjects related to law, such as the Constitution of India, Code of Civil Procedure, Code of Criminal Procedure, Indian Evidence Act, and other relevant laws.

Notification and Application Process: The Rajasthan High Court releases official notifications for the Rajasthan Judiciary Services examination, including details about eligibility, examination dates, application process, and selection criteria. Interested candidates need to apply online within the specified timeframe.

Training and Appointment: After the selection process, candidates who are finally selected undergo a training period before they are appointed as judicial officers in the subordinate or district judiciary of Rajasthan.

It is essential for aspiring candidates to refer to the official notifications, study materials, and previous years’ question papers provided by the Rajasthan High Court for detailed information and to prepare effectively for the Rajasthan Judiciary Services examination.

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भारतीय दण्ड संहिता ( Indian Penal Code ) की प्रमुख धाराओं

भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) में कई धाराएं हैं जो अपराधों और उनके दण्डों को परिभाषित करती हैं। कुछ प्रमुख धाराओं के नाम निम्नलिखित हैं:

धारा 302 – हत्या के लिए दण्ड।
धारा 307 – हत्या की कोशिश के लिए दण्ड।
धारा 376 – बलात्कार के लिए दण्ड।
धारा 420 – धोखाधड़ी के लिए दण्ड।
धारा 467 – जालसाजी के लिए दण्ड।
धारा 498A – स्त्री हिंसा के लिए दण्ड।
धारा 504 – भद्दा या अपमानजनक शब्दों का उपयोग करने के लिए दण्ड।
धारा 506 – धमकी देने के लिए दण्ड।
धारा 509 – स्त्रियों को शर्मसार करने के लिए दण्ड।
धारा 511 – साजिश करने के लिए दण्ड।
ये कुछ प्रमुख धाराएं हैं, इसके अलावा भी भारतीय दण्ड संहिता में कई अन्य धाराएं होती हैं जो अपराधों को परिभाषित करती हैं।

IPC की प्रमुख धाराएं – वर्तमान समय में जहाँ हमारे देश में जागरूकता की अति आवश्यकता है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपने अधिकार और कर्तव्यों से वाकिफ होना चाहिए। आज के समय में हर नागरिक को हमारी कानून व्यवस्था की सामान्य जानकारी होनी चाहिए। इसी उद्देश्य से यहाँ पर हमने हमारे देश की न्याय व्यवस्था से जुडी भारतीय दण्ड संहिता ( Indian Penal Code ) की प्रमुख धाराओं का जिक्र किया है

भारतीय दण्ड संहिता ( Indian Penal Code ) की प्रमुख धाराओं

IPC – 1 :-
संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार।

IPC – 2 :-
भारत के भीतर किये गए अपराधों का दण्ड –

IPC – 3 :-
भारत से परे किये गए किंतु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड।

IPC – 4 :-
राज्य क्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार।

IPC – 5 :-
कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना।

IPC – 6 :-
संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना।

IPC – 7 :-
एक बार स्पष्टीकरण पद का भाव

IPC – 08 :- लिंग
पुल्लिंग वाचक शब्द जहाँ भी प्रयोग किये गए हैं, वे हर व्यक्ति के बारे में लागू हैं। चाहें वह नर हो या नारी।

IPC – 09 :- वचन
जब तक कि सन्दर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, एकवचन द्योतक शब्दों के अंतर्गत बहुवचन आता है। और बहुवचन शब्दों के अंतर्गत एकवचन।

IPC – 10 :- पुरुष-स्त्री
पुरुष शब्द किसी भी आयु के नर मानव का द्योतक है। स्त्री शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का द्योतक है।

IPC – 45 :- जीवन
जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, “जीवन” शब्द मानव के जीवन का द्योतक है।

IPC – 46 :- मृत्यु
जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, “मृत्यु” शब्द मानव की मृत्यु का द्योतक है।

IPC – 49 :- वर्ष-मास
जहाँ कहीं वर्ष या मास शब्द का प्रयोग किया गया हो। वहां यह समझा जाना चाहिए कि वर्ष या मास की गणना ब्रिटिश कैलेंडर के अनुसार की जानी है।

IPC – 53 :- “दण्ड”
अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है, वे इस प्रकार हैं –

पहला – मृत्यु

दूसरा – आजीवन कारावास

तीसरा – (1949 के अधिनियम संख्या 17 की धारा 2 द्वारा निरसित)

चौथा – कारावास जो दो प्रकार का होता है (कठिन अर्थात कठोर श्रम के साथ और सादा)

पाँचवां – संपत्ति का समपहरण

छठा – जुर्माना

IPC – 64 :- जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश
IPC – 80 :- विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना
कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण प्रकार से विधिपूर्ण साधनों द्वारा उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में ही हो जाती है।

IPC – 82 :- सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य
कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है।

IPC – 83 :- सात वर्ष से अधिक परन्तु 12 वर्ष से कम आयु के अपरिपक़्व समझ के शिशु का कार्य
कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से ऊपर और 12 वर्ष से कम आयु के ऐसे शिशु द्वारा की जाती है, जिसकी समझ इतनी परिपक़्व नहीं हुयी है कि वह उस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके।

IPC – 84 :- विकृतचित व्यक्ति का कार्य
कोई बात अपराध नहीं है, जो उसे करते समय चित्तविकृत के कारण उस कार्य की प्रकृति या यह कि जो कुछ भी वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है।

IPC – 90 :- संपत्ति, जिसके संबंध में यह ज्ञान हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गयी है
IPC – 93 :- सदभावपूर्ण दी गयी संसूचना
सदभावपूर्ण दी गयी संसूचना, उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो जिसे वह दी गयी है। यदि वह उस व्यक्ति के फायदे के लिए दी गयी हो।

IPC – 94 :- वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है
हत्या और मृत्यु से दंडनीय उन अपराधों को, जो राज्य के विरुद्ध हैं, छोड़कर कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाये, जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो। जिसने उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गयी हो कि अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाये। परन्तु यह तब जबकि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति ने अपनी इच्छा से या तत्काल मृत्यु से कम अपनी अपहानि की युक्तियुक्त आशंका से अपने को उस स्थिति में न डाला हो। जिसमे कि वह ऐसी मज़बूरी के अधीन पड़ गया है।

IPC – 98 :- ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित आदि हो
IPC – 111 :- दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है
जब किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है। तब दुष्प्रेरक उस किये गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है। मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो।

IPC – 115 :- मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण – यदि अपराध नहीं किया जाता
IPC – 141 :- विधि विरुद्ध जमाव
पाँच या अधिक व्यक्तियों का जमाव ‘विधि विरुद्ध जमाव” कहलाता है। यदि उन व्यक्तियों का जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उद्देश्य हो –

पहला – केंद्र सरकार, राज्य सरकार, संसद या किसी प्रदेश के विधानमण्डल या किसी लोकसेवक को जबकि वह ऐसे लोकसेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना।

दूसरा – किसी विधि या वैध आदेशिका के निष्पादन का विरोध करना।

तीसरा – किसी रिष्ट या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना।

चौथा – किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी संपत्ति का कब्ज़ा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से, या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्ज़ा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार का अनुमति अधिकार को प्रवर्तित करना।

पाँचवां – आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन के द्वारा किसी व्यक्ति को वह करने के लिए, जिसे करने के लिए वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए, जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो, विवश करना।

IPC – 144 :- घातक आयुध से सज्जित होकर विधि विरुद्ध जमाव में सम्मिलित होना
जो कोई किसी घातक आयुध से या किसी ऐसी चीज से जिससे आक्रमण आयुध के रूप में उपयोग किये जाने से मृत्यु कारित होनी संभव हो, सज्जित होते हुए किसी विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होगा। वह दोनों में से किसी प्रकार के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा।

IPC – 146 :- बल्बा करना
जब किसी विधि विरुद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा, ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है। तब ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्बा करने के दोषी होगा।

IPC – 153 :- बल्बा कराने के आशय से स्वैरिता से प्रकोपन देना- यदि बल्बा किया जाए-यदि बल्बा न किया जाये

IPC – 153 क :- धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास-स्थान, भाषा इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता या संप्रवर्तन और सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना

IPC – 153 कक :- किसी जुलूस में जानबूझ कर आयुध ले जाने या किसी सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध सहित संचालन या आयोजन करना या उसमे भाग लेना

IPC – 154 :- उस भूमि का स्वामी या अधिभोगी, जिस पर विधि विरुद्ध जमाव किया गया है
जब कभी कोई विधि विरुद्ध बल्बा हो। तब जिस भूमि पर ऐसा किया जा रहा हो उस भूमि का स्वामी या अधिभोगी और ऐसी भूमि में हित रखने वाला या हित रखने का दवा करने वाला व्यक्ति एक हजार रूपये से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय होगा। यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक यह जानते हुए कि ऐसा अपराध किया जा रहा है या किया जा चुका है, या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए की ऐसा अपराध का किया जाना सम्भाव्य है, उस बात को अपनी शक्ति पर शीघ्रतम सूचना निकटतम पुलिस थाने के प्रधान ऑफिसर को दें या न दें और उस दशा में जिसमें कि उसे या उन्हें यह विश्वास करने का कारण हो कि यह लगभग किया ही जाने वाला है। अपनी शक्ति भर सब विधिपूर्ण साधनों का उपयोग उसका निवारण करने के लिए नहीं करता या करतेऔर उसके हो जाने पर अपनी शक्ति भर सब विधि पूर्ण साधनो का उस विधि विरुद्ध जमाव को बिखरने या बल्बे को दबाने के लिए उपयोग नहीं करता/करते।

IPC – 157 :-विधि विरुद्ध जमाव के लिए भाड़े पर लाये गए व्यक्तियों का संश्रय देना
जो कोई अपने अधिभोग या भारसाधन या नियंत्रण के अधीन किसी गृह या परिसर में किन्हीं व्यक्तियों को यह जानते हुए कि वे व्यक्ति विधि विरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या सदस्य बनाने के लिए भाड़े पर लाये गए बचनबद्ध या नियोजित किये गए हैं। या भाड़े पर लाये जाने बचनबद्ध या नियोजित किये जाने वाले हैं, संश्रय देगा, आने देगा या सम्मिलित करेगा। वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 6 मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा।

IPC – 158 :- विधि विरुद्ध जमाव या बल्बे में भाग लेने के लिए भाड़े पर जाना
जो कोई धरा-141 में विनिर्दिष्ट कार्यों में से किसी को करने के लिए या करने में सहायता देने के लिए बचनबद्ध किया या भाड़े पर लिया जायेगा। या भाड़े पर लिए जाने या बचनबद्ध किये जाने के लिए अपनी प्रस्थापना करेगा या प्रयत्न करेगा। वह दोनों में से किसी भांति के कारावास….

IPC – 159 :- “दंगा”
जब्कि दो या अधिक व्यक्ति लोक-स्थान में लड़कर लोक शांति में विघ्न डालते हैं तब यह कहा जाता है कि वे दंगा करते हैं।

IPC – 160 :- दंगा करने के लिए दण्ड

IPC – 166 क :- लोक सेवक जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता है

IPC – 166 ख :- पीड़ित का उपचार न करने के लिए दण्ड

IPC – 171 :- कपटपूर्ण आशय से लोक सेवक के उपयोग की पोषक पहनना या टोकन को धारण करना

IPC – 171 ग :- निर्वाचनों में असम्यक असर डालना

IPC – 171 घ :- निर्वाचनों में प्रतिरूपण

जो कोई किसी निर्वाचन में किसी अन्य व्यक्ति के नाम से चाहे वह जीवित हो या मृत या किसी कल्पित नाम से मत-पत्र के लिए आवेदन करता या मत देता है या ऐसे निर्वाचन में एक बार मत दे चुकने के पश्चात उसी निर्वाचन में अपने नाम के मत-पत्र के लिए आवेदन करता है और जो कोई किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रकार से मतदान को दुष्प्रेरित करता है, उपाप्त करता है या प्रयत्न करता है। वह निर्वाचन के प्रतिरूपण का अपराध करता है।

IPC – 171 ड़ :- रिश्वत के लिए दण्ड

IPC – 171 च :- निर्वाचनों में असम्यक असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड

IPC – 171 छ :- निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन

IPC – 172 :- समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना

IPC धारा – 174 :- लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना

IPC धारा – 188 :- यह धारा महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3, अधिनियम के तहत किये गए किसी भी विनियमन या आदेश की अवज्ञा करने के लिये दंड का प्रावधान करती है। यह दंड जो कि लोकसेवक द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन करने से संबंधित है।

धारा 188 के अनुसार, जो कोई भी किसी लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश, जिसे प्रख्यापित करने के लिये लोक सेवक विधिपूर्वक सशक्त है और जिसमें कोई कार्य करने से बचे रहने के लिये या अपने कब्ज़े या प्रबंधाधीन किसी संपत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिये निर्दिष्ट किया गया है, की अवज्ञा करेगा तो;
यदि इस प्रकार की अवज्ञा-विधिपूर्वक नियुक्त व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम कारित करे या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक निश्चित अवधि के लिये कारावास की सजा दी जाएगी जिसे एक मास तक बढ़ाया जा सकता है अथवा 200 रुपए तक के आर्थिक दंड अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा; और यदि इस प्रकार की अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट उत्पन्न करे, या उत्पन्न करने की प्रवृत्ति रखती हो, या उपद्रव अथवा दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक निश्चित अवधि के लिये कारावास की सजा दी जाएगी जिसे 6 मास तक बढ़ाया जा सकता है, अथवा 1000 रुपए तक के आर्थिक दंड अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
ध्यातव्य हो कि यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय क्षति उत्पन्न करने का ही हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से क्षति होना संभाव्य है।
IPC – 197 :- मिथ्या प्रमाण-पत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना

IPC – 198 :- प्रमाणपत्र को जिसका मिथ्या होना ज्ञात है, सच्चे के रूप में काम में लाना

IPC – 201 :- अपराध के साक्ष्य का विलोपन या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना

IPC – 203 :- किये गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तेला देना

IPC – 211 :- क्षति कारित करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप

IPC – 212 :- अपराधी को संश्रय देना

IPC – 213 :- अपराधी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए लेना

IPC – 214 :- अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या संपत्ति का प्रत्यावर्तन

जो कोई किसी व्यक्ति को कोई अपराध उस व्यक्ति द्वारा छिपाये जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित किये जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न की जाने के लिए प्रतिफलस्वरूप कोई परितोषण देगा या दिलाएगा या दिलाने की प्रस्थापना या करार करेगा, या कोई संपत्ति प्रत्यावर्तित करेगा या कराएगा। वह दण्ड का भागीदार होगा।

IPC – 215 :- चोरी की संपत्ति इत्यादि के बापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना

IPC – 216 :- ऐसे अपराधी को संश्रय देना जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चूका है

IPC – 216 क :- लुटेरों या डांकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति

IPC – 226 :- निर्वासन से विधि विरुद्ध वापसी

IPC – 229 क :- जमानत या बंधपत्र पर छोड़े गए व्यक्ति द्वारा न्यायलय में हाजिर होने में असफलता

IPC – 230 से 263 (अध्याय-12) :- सिक्कों और सरकारी स्टाम्पों से सम्बन्धी अपराधों के विषय में

IPC – 264 :- खोटे उपकरणों का कपटपूर्ण उपयोग

IPC – 267 :- खोटे वाट या माप का बनाना या बेचना

IPC – 272 :- विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय का अपमिश्रण

IPC – 273 :- अपायकर खाद्य या पेय का विक्रय

IPC – 277 :- लोक जल स्त्रोत या जलाशय का जल कलुषित करना

IPC – 285 :- अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण

IPC – 286 :- विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण

IPC – 287 :- मशीनरी के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण

IPC – 288 :- किसी निर्माण को गिराने या उसकी मरम्मत करने के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण

IPC – 289 :- जीव जंतु के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण

IPC – 292 :- अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय

IPC – 293 :- तरुण व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं का विक्रय आदि

IPC – 294 :- अश्लील कार्य और गानें

IPC – 294 क :- लॉटरी कार्यालय रखना

IPC – 295 :- किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना

IPC – 296 :- धार्मिक जमाव में विघ्न करना

IPC – 298 :- घार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि

IPC – 299 :- आपराधिक मानव वध

IPC की प्रमुख धाराएं – भारतीय दण्ड संहिता ( Indian Penal Code ) की प्रमुख धाराएं :-

IPC – 301 :- जिस  मृत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध

IPC – 302 :- हत्या के लिए दण्ड

IPC – 304 :- हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के लिए दण्ड

IPC – 305 :- शिशु या उन्मत्त व्यसक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण

IPC – 306 :- आत्महत्या का दुष्प्रेरण

IPC – 307 :- हत्या करने का प्रयत्न

IPC – 308 :- आपराधिक मानव वध करने का प्रयत्न

IPC – 309 :- आत्महत्या करने का प्रयत्न

IPC – 310 :- ठग

IPC – 312 :- गर्भपात कारित करना

IPC – 313 :- स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करना

IPC – 314 :- गर्भपात कारित करने के आशय से किये गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु

IPC – 315 :- शिशु का जीवित पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य

IPC – 317 :- शिशु के माता या पिता या उसकी देखरेख करने वाले व्यक्ति द्वारा 12 वर्ष के कम आयु के शिशु का अरक्षित डाल दिए जाना और परित्याग

IPC – 326 क :- अम्ल (acid) आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना

IPC – 326 ख :- स्वेच्छया अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना

IPC – 328 :- अपराध करने के आशय से विष इत्यादि द्वारा उपहति कारित करना

IPC – 340 :- सदोष परिरोध

साधारण शब्दों में – किसी को बंदी बनाकर रखना या पकड़कर रखना

IPC – 341 :- सदोष अवरोध के लिए दण्ड

IPC – 342 :- सदोष परिरोध के लिए दण्ड

IPC – 343 :- तीन या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध

IPC – 344 :- दस या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध

IPC – 354 :- स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग

IPC – 354 क :- लैंगिक उत्पीड़न और लैंगिक उत्पीड़न के लिए दण्ड

IPC – 354 ख :- निर्वस्त करने के आशय से स्त्री पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग

IPC – 354 ग :- दृश्यरतिकता

किसी स्त्री की अश्लील तस्वीरें इत्यादि खींचना या उन्हें वायरल करना इत्यादि। इस धारा के अंतर्गत अपराध हैं।

IPC – 354 घ :- पीछा करना

IPC – 356 :- किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जाने वाली सम्पत्ति की चोरी के प्रयत्नों में हमला, आपराधिक बल का प्रयोग

IPC – 362 :- अपहरण

IPC – 363 :- व्यपहरण के लिए दण्ड

IPC – 364 :- हत्या करने के लिए व्यपहरण या अपहरण

IPC – 364 क :- मुक्ति-धन इत्यादि के लिए व्यपहरण

IPC – 366 :- विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को व्यपहरण करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना

IPC – 366 क :- अप्राप्तवय लड़की का उपापन

IPC – 366 ख :- विदेश से लड़की का आयत करना

IPC – 370 :- व्यक्ति का दुर्व्यापार

IPC – 370 क :- ऐसे व्यक्ति जिसका दुर्व्यापार किया गया है, शोषण

IPC – 372 :- वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय को बेचना

IPC – 373 :- वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय का खरीदना

IPC – 374 :- विधि विरुद्ध अनिवार्य श्रम

IPC – 375 :- बलात्संग (बलात्कार)

परिस्थियाँ –

पहली – उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध

दूसरी – उस स्त्री की सम्मति के बिना

तीसरी – उस स्त्री की सम्मति से, जब उसकी सम्मति उसे या  व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति के भय में डालकर अभिप्राप्त की गयी है।

चौथी – उस स्त्री की सम्मति से, जबकि वह पुरुष यह जनता है कि वह उसका पति नहीं है। और उसने सम्मति  दी है कि यह विश्वास करती है कि ऐसा अन्य पुरुष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है।

पांचवी – उस स्त्री की सम्मति से, जब ऐसी सम्मति देने के समय, वह विकृतचित्त या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य के माध्यम से कोई संज्ञाशून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण, उस बात की जिसके बारे में वह सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में समर्थ है।

छठी – उस स्त्री की सम्मति से या उसके बिना, जब वह 18 वर्ष से कम आयु की है।

सातवीं – जब वह स्त्री सम्मति संसूचित करने में असमर्थ है।

IPC – 376 :- बलात्संग के लिए दण्ड

IPC – 376 क :- पीड़िता की मृत्यु या लगातार विकृतशील दशा कारित करने के लिए दण्ड

IPC – 376 ख :- पति द्वारा अपनी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन

IPC – 376 ग :- प्राधिकरण  व्यक्ति द्वारा मैथुन

IPC – 376 घ :-सामूहिक बलात्संग (सामूहिक बलात्कार)

IPC – 376 ड़ ;- पुनरावृत्तिकर्ता अपराधियों के लिए दण्ड

IPC – 377 – प्रकृति विरुद्ध अपराध (इन्द्रिय भोग )

IPC – 378 :- चोरी

IPC – 380 :- निवास गृह आदि में चोरी

IPC – 382 :- चोरी करने  मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात चोरी

IPC – 390 :- लूट

जिस चोरी में व्यक्ति की उपहति, तत्काल सदोष अवरोध या मृत्यु कारित हो।

IPC – 391 :- डकैती

जब 5 या अधिक व्यक्ति संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं।

IPC – 392 :- लूट के लिए दण्ड

IPC – 393 :- लूट करने का प्रयत्न

IPC – 395 :- डकैती के लिए दण्ड

IPC – 396 :- हत्या सहित डकैती

IPC – 397 :- मृत्यु या घोर अपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट  डकैती

IPC – 398 :- घातक आयुध से सज्जित होकर लूट या डकैती करने का प्रयत्न

IPC – 402 :- डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित होना

IPC – 403 :- संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग

IPC – 410 :- चुराई हुयी संपत्ति

IPC – 413 :- चुराई हुयी संपत्ति का अभ्यस्तः व्यापर करना

IPC – 428 :- दस रूपये के मूल्य के जीव जंतुओं को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि

IPC – 431 :- लोक सड़क, नदी, पुल या जलसरणी को क्षति पहुंचाकर रिष्टि

IPC – 432 :- लोक जल निकास में नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित करने द्वारा रिष्टि

IPC – 434 :- लोक प्राधिकारी द्वारा गए भूमिचिन्ह को नष्ट करने या हटाने आदि द्वारा रिष्टि

IPC – 436 :- गृह आदि को नष्ट करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि

IPC – 441 :- आपराधिक अतिचार

अपराध के उद्देश्य से किसी दूसरे की संपत्ति में प्रवेश करना

IPC – 442 :- गृह-अतिचार

मानव निवास हेतु प्रयुक्त किसी भी प्रकार के निर्माण यथा घर, तम्बू, जलयान, जो कि किसी और का है, में अपराध के उद्देश्य से प्रवेश करना।

IPC – 445 :- गृह-भेदन

IPC – 446 :- रात्रौ गृह-भेदन

IPC – 447 :- आपराधिक अतिचार के लिए दण्ड

IPC – 448 :- गृह-अतिचार के लिए दण्ड

IPC – 452 :- उपहति हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात गृह-अतिचार

IPC – 453 :- प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन के लिए दण्ड

IPC – 461 :- ऐसे पात्र को जिसमे संपत्ति है बेईमानी से तोड़कर खोलना

IPC – 462 :- इसी (IPC-461) अपराध के लिए दण्ड

IPC – 464 :- मिथ्या दस्तावेज रचना

IPC – 467 :- मूल्यवान प्रतिभूति, विल इत्यादि की कूट रचना (copy करना)

IPC – 478 :- व्याकरण चिन्ह

IPC – 479 :- संपत्ति चिन्ह

IPC – 489 क :- करेंसी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरण (copy करना)

IPC – 493 :- विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास

विधिपूर्वक विवाहित न होते हुए भी किसी स्त्री को यह विश्वास दिलाकर सहवास करना कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है।

IPC – 494 :- पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना

IPC – 495 :- पूर्व विवाह की जानकारी छुपा कर दूसरा विवाह करना

IPC – 496 :- विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्ण विवाह कर्म पूरा कर लेना

IPC – 497 :- जारकर्म

किसी दूसरे की पत्नी या पति के साथ सहवास करना जो बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता वह जारकर्म कहलाता है। इस धारा के अंतर्गत दण्डनीय अपराध है।

IPC – 498 :- विवाहिता स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना, ले जाना या निरुद्ध रखना

सामान्य शब्दों में – किसी दूसरे की बीबी को भगा ले जाना।

IPC – 498 क – किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना

IPC – 499 :- मानहानि

IPC – 500 :- मानहानि के लिए दण्ड

IPC – 508 :- व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा, कराया गया कार्य

IPC – 509 :- शब्द, अंग विक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है

IPC – 510 :- मत्त व्यक्ति द्वारा लोकस्थान में अवचार

साधारण शब्दों में – शराब या अन्य मादक पदार्थों के नशे में सार्वजानिक स्थल पर हंगामा करना।

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Author: Deep