PrajaMandal movements in Rajasthan pdf in Hindi for RSSB

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Hello aspirants,

The Praja Mandal movement in Rajasthan was a significant political movement that emerged in the princely state of Rajasthan during the British colonial period. The movement aimed to address the grievances of the people and advocate for political reforms and the democratization of governance. Here are some key points about the Praja Mandal movements in Rajasthan:

Background: The princely state of Rajasthan consisted of multiple princely states, each with its own ruler or Maharaja. The movement emerged in the 1930s and gained momentum in the 1940s as a response to the autocratic rule of the princely states and the desire for democratic representation.

Demand for Responsible Government: The Praja Mandal movement demanded responsible government, constitutional reforms, and representation of the people in the administration of the princely states. The movement aimed to challenge the absolute power of the rulers and establish a participatory form of governance.

Leadership and Organizations: The movement was led by prominent leaders such as Manikya Lal Verma, Tikaram Paliwal, and Hanuman Prasad Poddar. They organized various political organizations, including the Marwar Praja Mandal, Mewar Praja Mandal, and Jaipur Praja Mandal, to mobilize public support and press for reforms.

Advocacy for Democratic Rights: The Praja Mandal movement called for fundamental rights, civil liberties, and the right to participate in decision-making processes. It demanded the formation of elected legislative bodies, representation of people in the administration, and accountability of rulers to the public.

Mass Protests and Agitations: The movement organized mass protests, public meetings, and demonstrations to highlight the demands of the people and put pressure on the princely rulers. These agitations often faced repression from the princely authorities, leading to arrests and confrontations.

Integration with Indian National Movement: The Praja Mandal movement in Rajasthan aligned itself with the larger Indian national movement for independence from British rule. The leaders collaborated with the Indian National Congress and participated in the Quit India Movement in 1942, seeking to overthrow both British and princely rule.

Achievements and Impact: The Praja Mandal movement succeeded in mobilizing public opinion and creating awareness about the need for political reforms in the princely states. It contributed to the process of democratization and paved the way for the eventual integration of princely states into independent India after 1947.

Integration of Princely States: Following India’s independence, the princely states of Rajasthan, including Jaipur, Jodhpur, Udaipur, and others, acceded to the Indian Union. The Praja Mandal movement played a significant role in facilitating the integration process and ensuring the democratic governance of the region.

The Praja Mandal movement in Rajasthan marked a significant chapter in the struggle for political rights and democratic representation in the princely states. It laid the foundation for the transformation of the region’s political landscape and contributed to the formation of a united and democratic Rajasthan within the independent Indian nation.

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Most Important PrajaMandal movements in Rajasthan Question

जयपुर प्रजामण्डल (1931) –

राजपूताने के जयपुर राजघराने ने प्रजामण्डल को संरक्षण दिया। जयपुर में ब्रिटिश सत्ता का विरोध एवं जनजागृति का कार्य सर्वप्रथम अर्जुनलाल सेठी ने किया था, इन्होने 1908 में क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए जयपुर में ‘वर्धमान विद्यालय’ की स्थापना की।
जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना : 1931 में कर्पूरचंद पाटनी द्वारा जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गयी। जिसका मुख्य उद्देश्य समाज सुधार एवं खादी का प्रचार करना था।

जयपुर प्रजामण्डल का पुनर्गठन : जमनालाल बजाज व हीरालाल शास्त्री ने 1936-37 में इसका पुनर्गठन किया था। जयपुर के श्री चिरंजीलाल मिश्र को इसका अध्यक्ष तथा हीरालाल शास्त्री को इसका मंत्री बनाया गया।
1938 में जमनालाल बजाज को जयपुर प्रजामण्डल का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।
हरिश्चंद्र के नेतृत्व में एक गुट ने 1942 में ‘आजाद मोर्चा’ का गठन किया।
भारत छोड़ो आंदोलन – भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के दौरान जयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री ने प्रधानमंत्री मिर्जा स्माइल से समझौता कर जयपुर प्रजामण्डल को भारत छोड़ो आंदोलन से पूर्णत: अलग रखने का निर्णय लिया।
जेंटलमेन अग्रीमेंट – 1942 में प्रधानमंत्री मिर्जा राजा स्माइल तथा हीरालाल शास्त्री के मध्य हुआ था। इसके तहत जयपुर राज्य युद्ध के लिए अंग्रेजों की जन-धन से मदद नहीं करेगा के साथ-साथ महाराजा ने राज-काज में जनता को शामिल करने की अपनी नीति का उल्लेख किया।
जमनालाल बजाज ने 1927 में जयपुर में ‘चरखा संघ’ की स्थापना की थी।

मारवाड़ प्रजामण्डल (1934) –

मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना – 1934 ईस्वी में जोधपुर में मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना जयनारायण व्यास ने की थी तथा इसकी अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ बने।
मारवाड़ लोक परिषद – इसका गठन 16 मई, 1938 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इसके बाद में इसका नेतृत्व जयनारायण व्यास को सौपा। इसका मुख्य उद्देश्य महाराज की छत्र-छाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
इससे पहले 1920 में मारवाड़ में राजनितिक चेतना जागृत करने के लिए ‘मारवाड़ सेवा संघ’ की स्थापना जयनारायण व्यास, भंवरलाल सर्राफ, प्रयागराज भंडारी तथा आनंदराज सुराणा आदि लोगो ने मिलकर की थी।
1921 में मारवाड़ सेवा संघ के स्थान पर ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ का गठन किया गया। इसका प्रथम अधिवेशन 11-12 अक्टूबर, 1929 को जोधपुर में आयोजित किया गया।
1929 में जयनारायण व्यास ने ‘पोपाबाई का राज’ तथा ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तकें लिखकर मारवाड़ के शासन की कटु आलोचना की थी।
10 मई, 1931 को जयनारायण व्यास ने ‘मारवाड़ यूथ लीग’ की स्थापना की थी।
1937 को दीपावली के दिन जोधपुर प्रजामंडल तथा सिविल लिबर्टीज यूनियन को अवैध घोषित किया गया।
26 जुलाई, 1942 को पुरे राजपुताना में ‘मारवाड़ सत्याग्रह दिवस’ मनाया गया।

मेवाड़ प्रजामण्डल (1938) –

मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना – 24 अप्रैल, 1938 को माणिक्यलाल वर्मा ने उदयपुर में बलवंतसिंह मेहता के निवास स्थान ‘साहित्य कुटीर’ पर मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की थी। इसके प्रथम अध्यक्ष बलवंतसिंह मेहता को, भूरेलाल बया को उपाध्यक्ष तथा माणिक्यलाल वर्मा को महामंत्री बनाया गया।
24 सितम्बर, 1938 को उदयपुर सरकार ने मेवाड़ प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर दिया। माणिक्यलाल वर्मा उदयपुर छोड़कर अजमेर चले गए, वहां पर उन्होंने ‘मेवाड़ का वर्तमान शासन’ पुस्तक लिखकर मेवाड़ में व्याप्त अव्यवस्था एवं तानाशाही की तीव्र आलोचना की थी। लोगों में जागृति लाने के लिए ‘मेवाड़ प्रजामण्डल : मेवाड़वासियों से एक अपील’ नामक पर्चे भी बांटे गए।
मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन 25-26 नवम्बर, 1941 को माणिक्यलाल लाल वर्मा की अध्यक्षता में उदयपुर में हुआ। इसका उद्घाटन जे.बी. कृपलानी ने किया था तथा इसमें विजयलक्ष्मी पंडित ने भी भाग लिया था।
‘मेवाड़ पुकार’ 21 सूत्री मांगपत्र का सम्बन्ध मोतीलाल तेजावत से था।
मेवाड़ (उदयपुर) प्रजामण्डल से सम्बंधित महिला ‘नारायणी देवी वर्मा’ थी।
मेवाड़ राज्य का संविधान के. एम. मुंशी ने तैयार किया था।

भरतपुर प्रजामण्डल (1938) –

भरतपुर के महाराजा किशनसिंह ने 1927 में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की घोषणा कर दी, इसके बाद अंग्रेजों ने महाराजा के सारे प्रशासनिक अधिकार ले लिए थे तथा 1928 में मेकेंजी को प्रशासक नियुक्त कर दिया था। मेकेंजी की निरकुंश दमनकारी नीतियों से तंग आकर विरोध के लिए ‘भरतपुर राज्य प्रजा संघ’ की स्थापना की गयी। गोपीलाल यादव को इसका अध्यक्ष और देशराज को इसका सचिव नियुक्त किया गया।
भरतपुर प्रजामण्डल का गठन – 1938 में किशनलाल जोशी तथा मास्टर आदित्येन्द्र द्वारा भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गयी। गोपीलाल को इसका अध्यक्ष, ठाकुर देशराज एवं जुगलकिशोर चतुर्वेदी को इसका उपाध्यक्ष तथा मास्टर आदित्येन्द्र को इसका कोषाध्यक्ष बनाया गया। पंजीकरण के आभाव में सरकार द्वारा इसको शीघ्र ही अवैध घोषित कर दिया गया। प्रजामण्डल एवं सरकार के मध्य 23 दिसम्बर, 1939 को एक समझौता हुआ, जिसके तहत प्रजामंडल को ‘भरतपुर प्रजा परिषद’ नये नाम से पंजीकृत किया गया। मास्टर आदित्येन्द्र को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
1942 में भरतपुर के महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह ने ‘ब्रज जय प्रतिनिधि सभा’ नामक जन व्यवस्थापिका सभा की घोषणा की।

अलवर प्रजामण्डल (1938) –

अलवर प्रजामण्डल का गठन : 1938 में हरिनारायण शर्मा तथा कुंज बिहारी मोदी ने ‘अलवर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की। प्रजामण्डल ने 01-02 जून, 1941 को ‘जागीरमाफी प्रजा सम्मेलन’ का आयोजन किया। अलवर प्रजामण्डल का पहला अधिवेशन जनवरी, 1944 को भवानी शंकर शर्मा की अध्यक्षता में हुआ था।
पंडित हरिनारायण शर्मा ने ‘अस्पृश्यता निवारण’, ‘वाल्मीकि संघ’ तथा ‘आदिवासी संघ’ की स्थापना कर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के साथ जातिगत भेदभाव की दशा को सुधारने का प्रयास किया था।

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Important PrajaMandal movements Question

कोटा प्रजामण्डल (1939) –

कोटा राज्य में जनजागृति का श्रेय ‘राजस्थान सेवा संघ’ के कार्यकर्ता पंडित नयनूराम को जाता है, जिन्होंने 1918 में कोटा में ‘प्रजा प्रतिनिधि सभा’ की स्थापना की थी।
हाड़ौती में जनजागृति के लिए पंडित नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में ‘हाड़ौती सेवा संघ’ की स्थापना अभिन्न हरी ने की थी।
1934 में पंडित नयनूराम शर्मा ने अभिन्न हरी के सहयोग से ‘हाड़ौती प्रजामण्डल’ की। इसका अधिवेशन ‘हाजी फैज मोहम्मद’ की अध्यक्षता में हुआ था।
कोटा प्रजामण्डल का गठन – 1939 में अभिन्न हरी तथा पंडित नयनूराम शर्मा ने ‘कोटा राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की। इसका प्रथम अधिवेशन नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में 14 अक्टूबर, 1939 को मांगरोल में हुआ था।

बूंदी प्रजामण्डल (1931) –

बूंदी में जनचेतना जागृति के लिए पंडित नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में ‘हाड़ौती सेवा संघ’ की स्थापना की गयी।
बूंदी प्रजामण्डल का गठन – 1931 में कांतिलाल (अध्यक्षता) एवं नित्यानंद ने बूंदी प्रजामण्डल की स्थापना की।
1944 में ऋषिदत्त मेहता ने ‘बूंदी राज्य लोक परिषद’ का गठन किया था। इसका अध्यक्ष हरिमोहन माथुर तथा मंत्री बृजसुंदर शर्मा को बनाया गया।

करौली प्रजामण्डल (1938) –

करौली में जनजागृति की शुरुआत ठाकुर पूर्णसिंह तथा मदनसिंह ने की थी।
करौली प्रजामण्डल का गठन – 1938 में त्रिलोकचंद माथुर ने ‘करौली राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की थी। 1939 में त्रिलोकचंद माथुर की अध्यक्षता में करौली प्रजामण्डल का अधिवेशन हुआ था।

धौलपुर प्रजामंडल (1936) –

धौलपुर राज्य में जनजागृति के लिए ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु तथा यमुनाप्रसाद शर्मा ने 1910 में ‘आचार सुधारिणी सभा’ तथा 1911 में ‘आर्य समाज’ की स्थापना की थी।
धौलपुर में जनजागृति फ़ैलाने के लिए ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु तथा जौहरीलाल इंदु ने धौलपुर में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना की।
धौलपुर में हिरजनोद्वार आंदोलन 1936 में ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु ने चलाया था।
धौलपुर प्रजामण्डल का गठन – 1936 में कृष्णदत्त पालीवाल एवं ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु ने धौलपुर प्रजामण्डल की स्थापना की थी। इसकी अध्यक्षता कृष्णदत्त पालीवाल ने की थी।
12 नवम्बर, 1946 को धौलपुर प्रजामण्डल के ‘तासीमो’ गांव के अधिवेशन के दौरान राज्य पुलिस के द्वारा यहां नृशंसता दिखाई गयी, जिसे ‘तासीमो कांड’ कहते है।

प्रतापगढ़ प्रजामण्डल (1945) –

प्रतापगढ़ में जनजागृति फ़ैलाने के लिए अमृतलाल पाठक ने 1936 में ‘हरिजन पाठशाला’ का गठन किया तथा 1938 में ‘गीत प्रचार समिति’ का गठन किया।
प्रतापगढ़ प्रजामण्डल का गठन – 1945 में अमृतलाल पाठक तथा चुन्नीलाल प्रभाकर ने प्रतापगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना की थी।

शाहपुरा प्रजामण्डल (1938) –

शाहपुरा प्रजामण्डल का गठन – माणिक्यलाल वर्मा की प्रेरणा से रमेश चंद्र ओझा, लादूराम व्यास तथा अभयसिंह ने 1938 में ‘शाहपुरा प्रजामण्डल’ की स्थापना की थी।
यह प्रथम देशी राज्य था, जहां उत्तरदायी शासन की स्थापना की गयी।

सिरोही प्रजामण्डल (1939) –

सिरोही में जनजागृति फ़ैलाने का कार्य मोतीलाल तेजावत तथा गोविन्द गिरी ने किया था।
सिरोही प्रजामण्डल का गठन – 23 जनवरी, 1939 में सिरोही के हाथल गांव के निवासी गोकुल भाई भट्ट (राजस्थान के गाँधी) ने सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना की थी।

जैसलमेर प्रजामण्डल (1945) –

जैसलमेर में जनजागृति लाने का श्रेय सागरमल गोप्पा को जाता है, जिसने सर्वप्रथम महारावल के विरुद्ध आवाज उठाई थी।
सागरमल गोप्पा ने ‘जैसलमेर में गुंडाराज’, ‘देश के दीवाने’ तथा ‘रघुनाथसिंह का मुकदमा’ पुस्तके लिखकर जैसलमेर के महारावल के निरकुंश शासन एवं दमन की नीतियां को उजागर किया था।
जैसलमेर में जनजागृति के लिए 1932 में रघुनाथसिंह मेहता ने ‘महेश्वरी नवयुवक मंडल’ की स्थापना की थी।
जैसलमेर प्रजामण्डल का गठन – 1945 में मीठालाल व्यास ने जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना की थी।
जैसलमेर प्रजा परिषद – इसका गठन 1939-40 में शिवशंकर गोपा ने अपने साथियों लालचंद जोशी, मदनलाल पुरोहित, जीवनलाल कोठरी तथा जीतमल के सहयोग से किया था।

बांसवाड़ा प्रजामण्डल (1943) –

बांसवाड़ा में जनजागृति के लिए चिमनलाल मालोत ने 1930 में ‘शांत सेवा कुटीर’ की स्थापना की तथा ‘सर्वोदय वाहक पत्रिका’ का प्रकाशन किया था।
बांसवाड़ा प्रजामण्डल का गठन – 1943 में भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने हरिदेव जोशी, धुलजी, मोतीलाल जाड़िया, चिमनलाल आदि के साथ मिलकर बांसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना की थी। विनोदचन्द्र कोठरी को इसका अध्यक्ष बनाया गया।

डूंगरपुर प्रजामण्डल (1944) –

भोगीलाल पांड्या ने डूंगरपुर में जनजागृति फ़ैलाने के लिए 1919 में ‘आदिवासी छात्रावास’ की स्थापना की थी।
गौरीशंकर उपाध्याय ने 1929 में ‘सेवाश्रम’ की स्थापना की और हस्तलिखित ‘सेवक’ समाचार पत्र प्रकाशित किया था।
1935 में ठक्कर बापा की प्रेरणा से भोगीलाल पंड्या ने ‘हरिजन सेवा संघ’ की स्थापना की थी।
1935 में शोभालाल गुप्त ने ‘राजस्थान सेवक मंडल’ की स्थापना की।
माणिक्यलाल वर्मा ने 1934 में खाण्डलाई में ‘आश्रम’ की स्थापना की।
1938 में भोगीलाल ‘डूंगरपुर सेवा संघ’ की स्थापना की थी।
डूंगरपुर प्रजामण्डल का गठन – 26 अप्रैल, 1944 को भोगीलाल पांड्या ने डूंगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना की थी।

झालावाड़ प्रजामण्डल (1946) –

झालावाड़ में जनजागृति के लिए श्यामशंकर एवं अटल बिहारी ने 1919 में ‘झालावाड़ सेवा समिति’ की स्थापना की।
झालावाड़ प्रजामण्डल का गठन – 1946 में मांगीलाल भव्य ने मदनगोपाल, मकबूल आलम, कन्हैयालाल मित्तल तथा रतनलाल के साथ मिलकर ‘झालावाड़ प्रजामण्डल’ की स्थापना की थी।

कुशलगढ़ प्रजामण्डल (1942) –

कुशलगढ़ प्रजामण्डल का गठन – कुशलगढ़ प्रजामण्डल का गठन भंवरलाल निगम की अध्यक्षता में 1942 में किया गया। पन्नालाल त्रिवेदी को इसका मंत्री बनाया गया।
25 मार्च, 1948 को कुशलगढ़ का विलय ‘राजस्थान संघ’ में हो गया।

किशनगढ़ प्रजामण्डल (1939) –

किशनगढ़ प्रजामण्डल का गठन – किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में कांतिचंद चौथी के द्वारा की गयी।

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Author: Deep