International relations handwritten notes in Hindi pdf HPPCS
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Important international relations Questions
भारत-अफगानिस्तान संबंधों में चाबहार बंदरगाह की प्रासंगिकता
भारत द्वारा ईरान में बंदरगाह का विकास भारत को एक वैकल्पिक मार्ग का विकल्प प्रदान करता है. बंदरगाह पर लाइ गई वस्तुओं को आसानी से अफगान सीमा तक पहुँचाया जा सकता है तथा जरांज-डेलाराम राजमार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान के विभिन्न भागों में वितरित किया जा सकता है.
भारत चाबहार बंदरगाह के जरिये मध्य अफगानिस्तान की हाजिगक खानों से निष्कर्षित लौह अयस्क का निर्यात कर सकता है. यह अफगानिस्तान के क्षेत्रीय एकीकरण और पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने में सहायक होगा.
अफगानिस्तान के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अन्य पहलें
भारत-अफगानिस्तान वायु गलियारा (India-Afghanistan Air Corridor)
विदेशी व्यापार हेतु कराची बंदरगाह पर निर्भरता को कम करने के लिए हार्ट ऑफ़ एशिया सम्मेलन, 2016 में भारत और अफगानिस्तान के बीच रियायती एयर कार्गो सुविधाओं की घोषणा की गई.
अफगानिस्तान-पाकिस्तान व्यापार और पारगमन समझौता (Afghanistan-Pakistan Transit Trade Agreement)
इस समझौते के तहत, अफगानिस्तान में उत्पादित वस्तुओं को वाघा (भारत) तक पारगमन की अनुमति प्रदान की जायेगी तथा इसके बदले में, अफगानिस्तान पाकिस्तान को मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) के लिए पारगमन मार्ग की अनुमति प्रदान करेगा.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North South Transport Corridor : INSTC)
हालाँकि अफगानिस्तान INSTC का सदस्य नहीं है, फिर भी INSTC चाबहार से जरांज और डेलाराम के माध्यम से अफगानिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा. हाल ही में, भारत ने INSTC के तीव्र कार्यान्वयन के लिए रूस के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये.
INSCT वर्ष 2002 में सेंट पीटर्सबर्ग में हस्ताक्षर किया गया एक मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर है जिसके संस्थापक सदस्य ईरान, रूस और भारत हैं. बाद में INSTC का विस्तार करते हुए इसमें 11 नए सदस्यों को जोड़ा गया, जो हैं – अजरबैजान, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया (पर्यवेक्षक सदस्य राष्ट्र) को शामिल किया गया है.
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BIMSTEC का full form है – Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation.
यह एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना Bangkok Declaration के अंतर्गत जून 6, 1997 में हुई थी.
इसका मुख्यालय बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है.
वर्तमान में इसमें 7 देश हैं (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका) जिनमें 5 दक्षिणी-एशियाई देश हैं और 2 दक्षिण-पूर्व एशिया के देश (म्यांमार और थाईलैंड) हैं.
इस प्रकार के BIMSTEC के अन्दर दक्षिण ऐसा के सभी देश आ जाते हैं, सिवाय मालदीव, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के.
BIMSTEC के उद्देश्य
BIMSTEC का मुख्य उद्देश्य दक्षिण-एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (बंगाल की खाड़ी से संलग्न) के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है.
आज यह संगठन 15 प्रक्षेत्रों में सहयोग का काम कर रहा है, ये प्रक्षेत्र हैं –व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद निरोध, पर्यावरण, संस्कृति, लोगों का लोगों से सम्पर्क, जलवायु परिवर्तन.
BIMSTEC क्षेत्र का महत्त्व
बंगाल की खाड़ी विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी है. इसके आस-पास स्थित 7 देशों में विश्व की 22% आबादी निवास करती है और इनका संयुक्त GDP 2.7 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है.
यद्यपि इन देशों के समक्ष आर्थिक चुनौतियाँ रही हैं तथापि 2012-16 के बीच ये देश अपनी-अपनी आर्थिक वृद्धि की वार्षिक दर को 4% और 7.5% के बीच बनाए रखा है.
खाड़ी में विशाल संसाधन भी विद्यमान हैं जिनका अभी तक दोहन नहीं हुआ है.
विश्व व्यापार का एक चौथाई सामान प्रत्येक वर्ष खाड़ी से होकर गुजरता है.
भारतीय हित
इस क्षेत्र में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी है, अतः इससे भारत के हित भी जुड़े हुए हैं. BIMSTEC न केवल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ता है, अपितु इसके अन्दर हिमालय और बंगाल की खाड़ी जैसी पर्यावरण व्यवस्था विद्यमान है.
“पड़ोस पहले” और “एक्ट ईस्ट” जैसी नीतिगत पहलुओं को लागू करने में BIMSTEC एक सर्वथा उपयुक्त मंच है.
भारत के लगभग 300 मिलियन लोग अर्थात् यहाँ की आबादी का एक चौथाई भाग देश के उन चार तटीय राज्यों में रहते हैं जो बंगाल की खाड़ी के समीपस्थ हैं. ये राज्य हैं – आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल. इसके अतिरिक्त 45 मिलियन की आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्य चारों ओर भूभागों से घिरे हुए हैं और इनकी समुद्र तक पहुँच नहीं है. BIMSTEC के माध्यम से इन राज्यों को बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों से सम्पर्क करना सरल हो जाएगा और विकास की अनेक संभावनाएँ फलीभूत होंगी.
बंगाल की खाड़ी का सामरिक महत्त्व भी है. इससे होकर मनक्का जलडमरूमध्य पहुंचना आसान होगा. उधर देखने में आता है कि चीन हिन्द महासागर में पहुँचने के लिए बहुत जोर लगा रहा है. इस क्षेत्र में उसकी पनडुब्बियाँ और जहाज बार-बार आते हैं, जो भारत के हित में नहीं हैं. चीन की आक्रमकता को रोकने में BIMSTEC देशों की सक्रियता काम आएगी.
गुजराल डॉक्ट्रिन (GUJRAL DOCTRINE)
Gujral Doctrine में निम्नलिखित पाँच सिद्धांत हैं –
भारत, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से पारस्परिकता की अपेक्षा नहीं करता है बल्कि यह अच्छी भावना और विश्वास के अंतर्गत जो कुछ भी दे सकता है या जो सुविधाएँ प्रदान कर सकता है, उन्हें उपलब्ध कराएगा.
किसी भी दक्षिण एशियाई देश को क्षेत्र के एक अन्य देश के हितों के विरुद्ध अपने क्षेत्र के प्रयोग की अनुमति प्रदान नहीं करनी चाहिए.
किसी भी देश को किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता का अनिवार्य रूप से सम्मान करना चाहिए.
इन देशों को अपने सभी मुद्दों का समाधान शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिये करना चाहिए.
पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में दूरी के कारण
भारत का उसके पड़ोसी देशों के संबंधों में दूरी के तीन कारण उल्लेखनीय हैं –
प्रतिकूल संरचनात्मक चुनौतियाँ
सुरक्षा और विकास के प्रमुख मुद्दों पर सर्वसम्मति का अभाव
चीन का प्रभाव
भारत की कठोर प्रतिक्रिया कार्यनीति
राजनीतिक विवाद
1. प्रतिकूल संरचनात्मक चुनौतियाँ
भारत के सामने सीमा संघर्षों की ऐतिहासिक विरासत और नैतिक एवं सामाजिक समस्याएँ विद्यमान हैं. ये भारत की दक्षिण एशियाई नीति की सफलता को विफल बनाने वाली प्रमुख संरचनात्मक असक्षमताएँ हैं. उदाहरण के लिए नेपाल में मधेशियों, श्रीलंका में तमिलों, बांग्लादेश के साथ सीमा एवं नदी जल विवाद से सम्बंधित मुद्दों को भारत की विभिन्न संरचनात्मक असक्षमताओं के रूप में देखा जा सकता है.
2. सुरक्षा और विकास के प्रमुख मुद्दों पर सर्वसम्मति का अभाव
दक्षिण एशिया एकमात्र ऐसा भूभाग है जिसकी स्वयं की कोई क्षेत्रीय सुरक्षा सरंचना नहीं है और सर्वसम्मति के अभाव के चलते ऐसी किसी संरचना के विकास के लिए प्रयास भी नहीं किये गये हैं. भारत की बिग ब्रदर वाली छवि को क्षेत्र के अन्य देशों द्वारा क्षेत्र की सुरक्षा और विकास हेतु सहयोग देने के लिए एक सक्षम कारक के रूप में नहीं अपितु एक खतरे के रूप में देखा जाता है.
3. चीन का प्रभाव
चीन ने वर्ष 2015 के भारत-नेपाल सीमा अवरोध के बाद भारत के पड़ोस के वैकल्पिक व्यापार तथा कनेक्टिविटी विकल्पों (अर्थात् ल्हासा तक राजमार्ग, शुष्क बन्दरगाहों के विकास हेतु सीमा पर रेलमार्ग) में अपनी स्थिति मजबूत करने हेतु सशक्त प्रयास किये हैं.
श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान में चीन की रणनीतिक अचल सम्पदा मौजूद है और साथ ही इन देशों की घरेलू नीतियों में चीन सहभागी है.
चीन पहले से ही अवसंरचना और कनेक्टिविटी परियोजनाओं में अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रहा था और अब उसने राजनीतिक मध्यस्थता आरम्भ कर दी है. उदाहरण के लिए म्यांमार और बांग्लादेश के मध्य एक रोहिंग्या शरणार्थी वापसी समझौता तय करने के लिए कदम बढ़ाना, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की बैठकों का आयोजन करना ताकि दोनों को One Belt, One Road (OBOR) के साथ एक मंच पर लाया जा सके तथा मालदीव सरकार और विपक्ष के बीच मध्यस्थता करना.
अन्य सम्बंधित तथ्य
‘First China-South Asia Cooperation Forum’ (CSACF)
हाल ही में युन्नान प्रांत (चीन) में “प्रथम चाइना-साउथ एशिया कारपोरेशन फोरम (CSACF)” का अनावरण किया गया.
CSACF का सचिवालय युन्नान प्रांत में स्थापित किया जायेगा जहाँ इसके वार्षिक सम्मेलनों का भी आयोजन किया जाएगा.
सार्क देशों (भूटान को छोड़कर), दक्षिण-पूर्वी एशिया में म्यांमार और वियतनाम तथा कुछ अन्य देशों के अधिकारियों ने इस फोरम में भाग लिया था.
इस फोरम के उद्देश्य निर्दिष्ट करते हैं कि “चीन और दक्षिण एशियाई देशों को सहयोग को मजबूत करने, सहयोग में विस्तार करने, सहयोग परियोजनाओं को क्रियान्वित करने तथा सहयोग गुणवत्ता में सुधार करने हेतु अन्तः क्रिया को अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ करना चाहिए”.
यह OBOR का एक भाग है तथा इसकी स्थापना एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई है.
4. भारत की कठोर प्रतिक्रिया कार्यनीति
भारत की दक्षिण एशिया में केन्द्रीय अवस्थिति है तथा भौगोलिक और आर्थिक रूप से यह सबसे विशाल देश है. अतः यह अपेक्षा की जा सकती है कि भारत का उसके प्रत्येक पड़ोसी देश पर अधिक प्रभाव होगा. परन्तु अनेक अवसरों पर भारत की कठोर प्रतिक्रिया कार्यनीति अप्रभावी सिद्ध हुई है :
वर्ष 2015 में नेपाल सीमा पर अवरोध तथा भारतीय सहायता में एक अनुवर्ती कटौती ने नेपाली सरकार को उनके संविधान में संशोधन के लिए बाध्य नहीं किया जबकि भारत अपेक्षा कर रहा था कि उपर्युक्त कदम उठाकर नेपाल को संविधान संशोधन हेतु बाध्य किया जा सकता है. संभवत: इन क़दमों ने वहाँ भारत की स्थिति को विपरीत रूप से प्रभावित किया है.
वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमन्त्री द्वारा माले यात्रा को रद्द करना तथा मालदीव में आपातकाल की आलोचना भी मालदीव सरकार में भारत की इच्छानुरूप परिवर्तन करने में असफल सिद्ध हुई. इसका विपरीत प्रभाव पड़ा तथा मालदीव ने भारतीय नौसेना के “मिलन” अभ्यास में भाग लेने से इनकार कर दिया.
5. राजनीतिक विवाद
विभिन्न कारणों से SAARC के सदस्यों के साथ भारत के सम्बन्ध आदर्श नहीं हैं या राजनीतिक रूप से विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं.
मालदीव के राष्ट्रपति यामीन अब्दुल गयूम ने विपक्ष के विरुद्ध दमनात्मक कार्रवाई कर, चीन को आमंत्रित करके तथा पाकिस्तान को सार्क से अलग करने के भारत के प्रयासों में भारत का साथ नहीं देकर भारत को चुनौती दी है.
नेपाल में के.पी. शर्मा ओली सरकार भारत की प्रथम पसंद नहीं हैं तथा दोनों देशों की 1950 की शांति एवं मित्रता संधि इत्यादि पर असहमति है.
श्रीलंका और अफगानिस्तान में भारत के सम्बन्ध विगत कुछ वर्षों से तुलनात्मक रूप से बेहतर हैं परन्तु इन देशों में होने वाले आगामी चुनाव भारत के समक्ष चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं.
संबधित सुझाव
इन उल्लिखित कारकों में से किसी कारक को पूर्णतः परिवर्तित करना बहुत मुश्किल है, पर दक्षिण एशिया में भूगोल के मौलिक तथ्यों और साझी संस्कृति को भी नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. अतः भारत को नेबरहुड फर्स्ट को पुनः मजबूत बनाने हेतु अपने प्रयासों पर जरुर ध्यान देना चाहिए.
A) सॉफ्ट पॉवर
यह देखा गया है कि जब-जब भारत ने सॉफ्ट पॉवर की नीति अपनाई है वहाँ उसे लाभ ही हुआ है. कह सकते हैं कि सॉफ्ट पॉवर की नीति एक प्रबल कूटनीतिक हथियार है. उदाहरण के लिए भूटान और अफगानिस्तान में भारत द्वारा रक्षा सहायता देने की तुलना में विकास के लिए दी गई सहायता के कारण अधिक सफलता मिली है. इसे देखते हुए दो वर्षों की गिरावट के बाद 2018 में भारत द्वारा दक्षिण एशिया हेतु किये गये आवंटन में 6% वृद्धि की गई है.
B) चीन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन
क्षेत्र में चीन की प्रत्येक परियोजना का विरोध करने के स्थान पर भारत को त्रिआयामी दृष्टिकोण को अपनाना होगा –
पहला, जब भारत को यह अनुभव हो कि कोई परियोजना उसके हितों के प्रतिकूल है तो भारत को परियोजना का विकल्प प्रस्तुत करना चाहिए. यदि आवश्यक हो तो उसे अपने चतुर्भुजीय भागीदारों (जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया) से सहयोग से ऐसा करना चाहिए.
दूसरा, भारत को उन परियोजनाओं के सन्दर्भ में तटस्थ रहना चाहिए जिनमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. साथ ही साथ उसे सतत विकास सहायता के लिए ऐसे दक्षिण एशियाई सिद्धांतों का विकास करते रहना चाहिए जिसका सम्पूर्ण क्षेत्र में उपयोग किया जा सके.
C) आसियान देशों से सीख
आसियान (ASEAN) की तरह सार्क देशों को भी प्रायः अनौपचारिक रूप से बैठक करनी चाहिए, एक दूसरे की सरकार के आंतरिक कार्यों में नाममात्र का हस्तक्षेप करना चाहिए तथा सरकार के प्रत्येक स्तर पर अधिक अन्तः क्रिया करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त कुछ विशेषज्ञ यह तर्क देते हैं कि इंडोनेशिया की भाँति भारत को भी सार्क प्रक्रिया को अधिक सामंजस्यपूर्ण बनाने के लिए निर्णय निर्माण में गौण भूमिका निभानी चाहिए.
D) नेबरहुड फर्स्ट की सीमाओं समझना
वैश्विक शासन में अपनी अधिकारपूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और राजनीतिक संगठनों में सुधार के प्रयास करने के अतिरिक्त भारत को निवेश, प्रौद्योगिकी तक पहुँच, अपनी रक्षा एवं ऊर्जा आवश्कताओं की प्रतिपूर्ति तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वार्ताओं में अपने हितों की सुरक्षा करने की आवश्यकता है. विदित हो कि इन आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति उसके पड़ोसी देशों द्वारा नहीं हो सकती है.
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