Ethics integrity and aptitude notes pdf in Hindi for UPPSC

Ethics integrity and aptitude notes pdf in Hindi for UPPSC

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Most Important Ethics integrity and aptitude Question Answer

प्रश्न: भारतीय संविधान में निहित नैतिक मूल्य क्या हैं? (250 शब्द)

उत्तर : नैतिक मूल्यों को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
भारतीय संविधान में निहित विभिन्न नैतिक मूल्यों की चर्चा कीजिये।
उचित निष्कर्ष लिखिये।
पृष्ठभूमि

नैतिक मूल्य, कौन सा कार्य सही है या विभिन्न कृत्यों के महत्त्व को निर्धारित करने के उद्देश्य से कार्यो के महत्त्व की कोटि को दर्शाता है।

प्रारूप

भारतीय संविधान में निहित नैतिक मूल्य हैं::
प्रस्तावना:
समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र।
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय।
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना की स्वतंत्रता।
स्थिति और अवसर की समानता।
व्यक्ति की बंधुता और गरिमा।
राष्ट्रीय एकता और अखंडता।
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य: मौलिक अधिकारों में निहित नैतिक मूल्य सम्मानजनक जीवन का अधिकार, उपासना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार आदि के रूप में मौजूद हैं और मौलिक कर्तव्यों में साथी नागरिकों के बीच बंधुत्व बनाए रखना, प्रकृति के प्रति सम्मान और उनका संरक्षण करके पर्यावरण नैतिकता को प्रोत्साहित करना शामिल है।
राज्य के नीति-निदेशक तत्त्व:
राज्य के नीति निदेशक तत्त्व ‘देश के शासन के प्रमुख सिद्धांत’ हैं। सरकार को कानून बनाते समय इन सिद्धांतों का पालन करना होता है।
पूंजी का समान वितरण या समाजवादी विचारधारा के अनुरूप पुरुषों और महिलाओं दोनों को बिना किसी लैंगिक भेदभाव के समान काम के लिए समान वेतन।
सभी नागरिकों, पुरुषों और महिलाओं के लिए आजीविका के पर्याप्त साधन का प्रावधान।
सभी के लिये रोज़गार का प्रावधान।
बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा।
श्रमिकों के लिए उचित पारिश्रमिक।
नैतिक और भौतिक परित्यजन तथा शोषण के खिलाफ बच्चों एवं युवाओं का संरक्षण।
स्वशासन की इकाइयों के रूप में ग्राम पंचायतों का संगठन।
चिकित्सा प्रयोजनों को छोड़कर, नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन का निषेध।
आधुनिक और वैज्ञानिक तर्ज़ पर कृषि और पशुपालन का संगठन।
अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना और विश्व के देशों के बीच न्यायसंगत और सम्मानजनक संबंधों को बनाए रखना।
सामाजिक कल्याण के उपाय।
निष्कर्ष:

संविधान में निहित उपरोक्त मूल्य लोक सेवकों को उनके प्रदर्शन में उत्तरोतर वृद्धि करने में मदद करते हैं और आगे कई आधिकारिक स्थितियों में उनकी मदद करते हैं, जिनमें नैतिक प्रश्न शामिल हैं।

प्रश्न : शासन में सत्यनिष्ठा से आप क्या समझते हैं? इस शब्द के संदर्भ में अपनी समझ के आधार पर, सरकार में सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)

उत्तर : सत्यनिष्ठा के बारे में संक्षेप में बताइये ।
शासन में इसकी भूमिका की चर्चा कीजिये।
सरकारी प्रणाली में सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने हेतु कुछ उपाय बताइये।
उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये ।

परिचय:

सत्यनिष्ठा शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘प्रोबिटास’ से लिया गया है, जिसका अर्थ “ईमानदारी” होता है।

शासन में सत्यनिष्ठा शब्द का आशय शासन प्रक्रिया में मौजूद नैतिक मानदंडों के प्रतिमान से है। सत्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व, सत्यनिष्ठा, करुणा और अन्य सकारात्मक विशेषताएँ बेहतर शासन की आधार होती हैं।

मुख्य भाग:

शासन में सत्यनिष्ठा की भूमिका:

इससे सरकारी कार्यों में जनता का विश्वास बना रहता है।
इससे सार्वजनिक सेवाओं में सत्यनिष्ठा बनी रहती है।
इससे सरकार के उत्तरदायित्व को प्रोत्साहन मिलता है।
इसके द्वारा प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित होता है।
इससे कदाचार, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की संभावना में कमी आती है।

शासन में सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के उपाय:

उत्तरदायित्व: इससे शासन में भ्रष्टाचार की संभावना कम होती है। जब किसी व्यक्ति से उच्च अधिकारियों को उत्तर देने की अपेक्षा की जाती है, तो वह ऐसे कार्य करने से बचता है जिससे उसकी स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगता हो । इससे सुशासन स्थापित होगा। उदाहरण के लिये, सामाजिक लेखा परीक्षा से उत्तरदायित्व सुनिश्चित होने के साथ सत्यनिष्ठा को प्रोत्साहन मिलता है।
नैतिक शिक्षा: शासन में सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के लिये नैतिक शिक्षा आवश्यक है। किसी व्यक्ति में सत्यनिष्ठा के उच्च प्रतिमान शामिल करने हेतु उसे नैतिक प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है जो उसे शासन में सुधार करने के लिये प्रेरित करेगा। नैतिक शिक्षा से ऐसा होना सुनिश्चित होगा। उदाहरण के लिये रिश्वत ना लेने के महत्व पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
शिकायत निवारण: सरकारी अधिकारियों और जनता के बीच सुलभ पहुँच प्रभावी शिकायत निवारण के लिये महत्वपूर्ण है। इसे निम्नलिखित माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है:
लोगों के लिये वरिष्ठ सरकारी प्राधिकारियों के संपर्क नंबरों को उपलब्ध कराना
विभागीय वेबसाइटों पर संबंधित विवरण दर्ज करना
नागरिकों के लिये सुविधा काउंटर बनाना
मूल्यांकन और निगरानी प्रणाली स्थापित करना
आचार संहिता: मंत्रियों, नौकरशाही, न्यायपालिका और नागरिक समाज समूहों के लिये आदर्श आचार संहिता तैयार और लागू करके सत्यनिष्ठा को बनाए रखा जाता है।
अन्य उपाय:
लोकपाल: यह “ओम्बुड्समैन ” के रुप में कार्य करता है और कुछ सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार से संबंधित आरोपों की जाँच करता है।
आपराधिक न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ बनाना चाहिये।
अनुशासन की भावना: इसे संगठनों के प्रमुखों और समाज के नेताओं द्वारा स्थापित किया जाता है। उदाहरण के लिये जब लाल बहादुर शास्त्री के बेटे ने आधिकारिक कार का इस्तेमाल कर लिया था तो उन्होंने इसके लिये भुगतान किया था।
प्रशिक्षण, प्रदर्शन मूल्यांकन, सहानुभूति और करुणा जैसे मूल्यों के समावेश के माध्यम से नौकरशाहों के व्यवहार में परिवर्तन लाना।
ई-गवर्नेंस: पारदर्शिता के लिये आईसीटी का उपयोग करना। इसके अलावा इससे आम लोगों द्वारा लोक सेवकों के खिलाफ शिकायत करने में भी सहायता मिलेगी।
निष्कर्ष:

उपयुक्त नियमों और विनियमों के संयोजन से सहायक प्रशासनिक प्रक्रियाओं का विकास होगा। शासन में सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने के लिये नैतिक प्रतिमानों में वृद्धि की आवश्यकता है। इसके अलावा बाहरी प्रणालियों पर निर्भरता से बचना चाहिये क्योंकि इससे उल्लंघन (breach) का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ-साथ मज़बूत, नैतिक प्रतिमानों को लोगों में विकसित करना चाहिये जो ऐसे सिद्धांतों को संरक्षित और स्थापित कर सकें।

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Most Important Ethics integrity and aptitude Question Answer

प्रश्न : पर्यावरणीय नैतिकता से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित समझाइये। (150 शब्द)

उत्तर :
पर्यावरण नैतिकता के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिये।
पर्यावरण नैतिकता के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
पर्यावरण नैतिकता से संबंधित विभिन्न उदाहरणों के बारे में बताइये।
उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय :

पर्यावरणीय नीतिशास्त्र व्यावहारिक दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जिसके अंतर्गत आस-पास के पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित नैतिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात् मनुष्य एवं पर्यावरण के आपसी संबंधों का नैतिकता के सिद्धांतों एवं नैतिक मूल्यों के आलोक में अध्ययन किया जाता है
प्रारूप:

पर्यावरणीय नैतिकता का महत्त्व:
पारिस्थितिक तंत्र के बिगड़ने और पर्यावरण की बदतर स्थिति को देखते हुए मनुष्यों ने महसूस किया है कि वे केवल आर्थिक, तकनीकी और न्यायिक साधनों से पर्यावरण प्रदूषण और पारिस्थितिक असंतुलन को ठीक नहीं कर सकते हैं। इसलिये हमारे पर्यावरण में मनुष्यों और अन्य प्राणियों के साथ समान व्यवहार यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
पर्यावरणीय नैतिकता के उदाहरण:
पर्यावरण बनाम विकास:
1950 के दशक के दौरान दुनिया की आबादी लगभग 2.5 बिलियन बताई गई थी। वर्ष 2050 तक इसके नौ से 10 अरब के बीच होने की उम्मीद है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, बढ़ती मांग को समायोजित करने के लिये अवसंरचना विकास आवश्यक है, जिसका एक बड़ा बोझ पर्यावरण पर पड़ेगा। अधिकतर, विकास पर्यावरण की कीमत पर होता है
पर्यावरण के प्रति लापरवाह विकास और अज्ञानता ने अब मानव जाति के लिये नैतिक मुद्दों को उठाया है। आने वाली और युवा पीढ़ी जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे कम जिम्मेदार हैं, फिर भी वे इसके प्रभाव का सबसे बड़ा बोझ उठाएंगे।
पर्यावरणीय नैतिकता के संबंध में नीतिगत पहल:
पर्यावरण को अब एक ऐसे क्षेत्र के रूप में नहीं माना जाता है जिसे विशेष रूप से पर्यावरण संस्थाओं द्वारा प्रबंधित किया जाता है, बल्कि इसे विभिन्न नीति क्षेत्रों में शामिल किया जाता है जिसमें ऊर्जा, परिवहन, कृषि, उद्योग या व्यापार क्षेत्र शामिल हैं।
उदाहरण के लिये, भारत में, विकास और पर्यावरण को संतुलित करने के लिये, नीति निर्माताओं ने एनजीटी, केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड, राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण और कई अन्य संस्थानों की स्थापना की है।
पर्यावरण नैतिकता और सतत् विकास:
सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिये विकास और पर्यावरण के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना प्रमुख कारक है।
सतत् विकास का तात्पर्य जनसंख्या, संसाधनों, पर्यावरण और विकास के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों पर जोर देने के साथ मानव-पर्यावरण अन्योन्यक्रिया तथा अंतर-पीढ़ी की जिम्मेदारी के मध्य सामंजस्य है।
सतत् विकास की दिशा में पर्यावरणीय नैतिकता की भूमिका यह है कि यह न केवल जनसंख्या, संसाधन, पर्यावरण और आर्थिक विकास के संबंधों में सामंजस्य स्थापित करता है, बल्कि व्यवहार चयन को भी निर्देशित करता है, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन को आगे बढ़ाता है, कानूनी प्रणाली को मज़बूत करता है और पर्यावरण के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाता है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA):
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को निर्णय लेने से पूर्व किसी परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
खनन, थर्मल पावर प्लांट, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना (सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह और हवाई अड्डे) जैसी परियोजनाओं तथा बहुत छोटे इलेक्ट्रोप्लेटिंग या फाउंड्री इकाइयों सहित विभिन्न छोटे उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
ईआईए यह सुनिश्चित करता है कि विकास योजना पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ हो और पारिस्थितिकी तंत्र को आत्मसात करने और पुनर्जनन की क्षमता की सीमा के भीतर हो।
जलवायु नैतिकता:
जलवायु नैतिकता अनुसंधान का एक क्षेत्र है जो जलवायु परिवर्तन के नैतिक आयामों (जिसे ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी जाना जाता है) पर केंद्रित है।
उत्तर भारत में हाल ही में लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव या असम में अभूतपूर्व भूस्खलन के साथ विनाशकारी बाढ़ भारत में जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम हैं।
निष्कर्ष:

जहाँ दुनिया विचारधारा, राष्ट्र-राज्यों, धर्म, भाषा आदि के आधार पर विभाजित है, वहीं पर्यावरण नैतिकता ने इस विभाजित दुनिया को एकजुट किया है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, मरुस्थलीकरण आदि से उत्पन्न चुनौतियाँ किसी भी सीमा के बावजूद लोगों को प्रभावित करती हैं, इसलिये इसके लिये एक एकीकृत प्रयास की आवश्यकता है।

प्रश्न : सिविल सेवकों में किस प्रकार के व्यक्तिगत गुण वांछनीय हैं? लोक प्रशासन में सिविल सेवा नैतिकता क्यों प्रमुख हो गई है? (250 शब्द)

उत्तर : सिविल सेवकों के व्यक्तिगत गुणों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उन वांछनीय गुणों की चर्चा कीजिये जो सिविल सेवकों में होने चाहिये।
लोक प्रशासन में सिविल सेवा नैतिकता के महत्त्व की चर्चा कीजिये।
तदनुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:

सिविल सेवकों के व्यक्तिगत गुणों में व्यक्तित्व, चरित्र और बौद्धिक क्षमताएँ शामिल होती हैं। अरस्तू के अनुसार चार गुण हैं- विवेक, न्याय, धैर्य और संयम; इसके अलावा यह माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति में कोई एक गुण पूरी तरह से विकसित हो जाता है, तो वह अन्य तीन की उपस्थिति का भी संकेत देगा।

प्रारूप:

सिविल सेवकों को व्यक्तिगत गुणों का पालन करना चहिये जो इस प्रकार हैं:

विवेक: यह वास्तविक आचरण में कार्रवाई के सबसे उपयुक्त, राजनीतिक या लाभदायक तरीके का पता लगाने की क्षमता को संदर्भित करता है; यह व्यावहारिक ज्ञान और बुद्धिमानी का भी प्रतीक है।
सिविल सेवा में सार्वजनिक क्षेत्र में निर्णय लेना शामिल है। सिविल सेवकों को व्यावहारिक मामलों का मुख्य कर्ता माना जाता है। वे लोगों के काफी नियमित संपर्क में रहते हैं। सिविल सेवकों को गुमनाम और विवेकपूर्ण तरीके से मामलों से निपटना होता है। इन सभी कारणों से सिविल सेवकों में विवेक एक अत्यंत वांछनीय गुण है।
धैर्य: यह दर्द या विपत्ति की स्थिति से लड़ने हेतु नैतिक शक्ति या नैतिक साहस है। कठिन युद्धक्षेत्र स्थितियों का सामना करने वाले सैनिकों के साथ भी यह अक्सर दृढ़ता से जुड़ा होता है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का एक उदाहरण है।
सिविल सेवा के सन्दर्भ में, धैर्य अपेक्षाकृत कम वीरता का प्रतीक है, लेकिन लंबे समय तक काम की चुनौतियों और प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिये यह महत्त्वपूर्ण रवैया है।
संयम: लोक सेवकों के लिये संयम विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। यह किसी के क्रोध, भावनाओं और इच्छाओं को नियंत्रित करने की क्षमता का प्रतीक है। इसे तर्कसंगत आत्म-संयम के रूप में माना जा सकता है। लेकिन संयम कुछ अलग व्यवहार विशेषताओं को व्यक्त कर सकता है। निर्णय लेते समय या स्थितियों का जवाब देते समय, सिविल सेवकों को उदार होना चहिये। उन्हें किसी मुद्दे पर ज़्यादा नहीं झुकना चहिये बल्कि संतुलित और विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करना चहिये।
न्याय: न्याय एक सामान्य अवधारणा है। जब हम ‘न्याय’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ अक्सर अस्पष्ट होता है, इसलिये हमें इसकी ठोस सामग्री या इसका सटीक अर्थ क्या है, इसका संकेत देना पड़ता है।
लोक प्रशासन में सिविल सेवा नैतिकता का महत्त्व:

सिविल सेवकों के मनमाने कार्यों की जाँच करना।
प्रशासनिक ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देना।
नागरिक और सिविल सेवा के बीच अच्छे संबंध स्थापित करना और बढ़ावा देना।
सामाजिक भलाई, सार्वजनिक हित और सामान्य भलाई को संरक्षित करना तथा बढ़ावा देना।
प्रशासनिक शक्ति और विवेक के उस हिस्से को नियंत्रित करने के लिये जिसे औपचारिक कानूनों के तरीकों तथा प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
प्रशासनिक प्रक्रिया की दक्षता और प्रभावशीलता में सुधार करना।
लोक प्रशासन की वैधता और विश्वसनीयता को मज़बूत करना।
निष्कर्ष:

विवेक, धैर्य, संयम आदि जैसे प्रमुख गुण किसी के चरित्र की अच्छाई और एक अच्छा तथा सफल सिविल सेवक बनने में सहायता करते हैं। लोक प्रशासन सिद्धांत में नैतिकता की प्रमुखता सिविल सेवकों के बीच उच्च नैतिकता को बढ़ावा देने और बनाए रखने में मदद करती है।

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Author: Deep

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