Ethics integrity and aptitude notes pdf in Hindi for UPPSC exam

Ethics integrity and aptitude notes pdf in Hindi for UPPSC exam

Ethics integrity and aptitude notes pdf in Hindi for UPPSC

Hello aspirants,

Ethics, integrity, and aptitude are important topics that are often studied in the context of civil services examinations and other competitive exams. Here are some notes about ethics, integrity, and aptitude:

Ethics: Ethics is the study of moral principles and values. Ethics helps individuals understand what is right and wrong and provides a framework for making ethical decisions.

Integrity: Integrity is the quality of being honest, trustworthy, and having strong moral principles. Integrity is essential for building trust and credibility, both in personal and professional relationships.

Aptitude: Aptitude is the natural ability or talent to do something. It is a combination of innate abilities and learned skills.

Code of Conduct: A code of conduct is a set of rules and guidelines that outline expected behavior and ethical standards. Many organizations have their own code of conduct that employees are expected to follow.

Conflict of Interest: A conflict of interest arises when an individual or organization has competing interests or loyalties that could compromise their judgment or decision-making. It is important to identify and manage conflicts of interest to maintain ethical standards.

Public Service Values: Public service values include accountability, impartiality, transparency, and responsiveness. These values are essential for ensuring that public servants act in the best interest of the public.

Whistleblowing: Whistleblowing is the act of reporting unethical or illegal behavior within an organization. It is important for promoting transparency and accountability and can help prevent corruption.

These are just a few notes about ethics, integrity, and aptitude. The study of ethics, integrity, and aptitude is important for promoting ethical behavior, building trust and credibility, and ensuring that public servants act in the best interest of the public.

Download GK Notes 

Most Important Ethics integrity and aptitude Question Answer

प्रश्न : न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (जस्ट वॉर थ्योरी) से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :
विभिन्न न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (जस्ट वॉर थ्योरी) के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
जूस एड बेलम , जूस इन बेल्लो और जूस पोस्ट बेलम जैसे दृष्टिकोणों पर चर्चा कीजिये।
उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये ।
परिचय:

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत को तीन श्रेणियों- जूस एड बेलम, जूस इन बेल्लो और जूस पोस्ट बेलम में विभाजित किया गया है जिनमें से प्रत्येक के अपने नैतिक सिद्धांत हैं। ये लैटिन शब्द प्रमुख रुप से ‘युद्ध के प्रति न्याय’, ‘युद्ध के दौरान न्याय’ और ‘युद्ध के बाद न्याय’ से संबंधित हैं।

मुख्य भाग:

जूस एड बेलम: जब राजनेता युद्ध करने के बारे में निर्णय लेते हैं तो इस सिद्धांत के अनुसार उन्हें कई सिद्धांतों के आधार पर अपने निर्णय का परीक्षण करने की आवश्यकता होती है।

विपरीत परिस्थितियों में (Just Cause): इसके तहत युद्ध केवल गंभीर परिस्थितियों की प्रतिक्रिया में ही किया जाना चाहिये। इसका सबसे आम उदाहरण आत्मरक्षा है, हालाँकि किसी निर्दोष राष्ट्र की रक्षा को भी कई लोगों द्वारा इसके तहत उचित कारण के रूप में देखा जाता है।
नैतिक इरादा (Right Intention): इसके तहत युद्ध के समय राजनेताओं को व्यक्तिगत स्तर पर पूरी तरह से युद्ध के न्यायसंगत होने के प्रति प्रेरित होना चाहिये। उदाहरण के लिये, भले ही किसी निर्दोष देश की रक्षा में युद्ध छेड़ा गया हो लेकिन ऐसे में नेता युद्ध का सहारा नहीं ले सकते क्योंकि यह उनके पुन: चुनाव अभियान में सहायता करेगा।
जूस इन बेल्लो: यह युद्ध के दौरान न्यायपूर्ण आचरण से संबंधित है।

युद्ध के दौरान केवल वैध लक्ष्यों पर ही हमला करना चाहिये। उदाहरण के लिये- नागरिक, चिकित्सक और सहायताकर्मी, सैन्य हमले के वैध लक्ष्य नहीं हो सकते हैं। हालाँकि इस सिद्धांत के अनुसार, सैन्य हमले में आवश्यक और आनुपातिक दृष्टिकोण से नैतिक होने पर कुछ हद तक नागरिकों का मारा जाना भी अनुमेय हो सकता है।

जूस पोस्ट बेलम:

यह युद्ध समाप्ति के चरण के दौरान न्याय को संदर्भित करता है। इसमें युद्ध को समाप्त करने और युद्ध से शांति की ओर सुचारू रूप से स्थानांतरित होने के तरीके शामिल हैं, अंतरराष्ट्रीय कानून शायद ही इस क्षेत्र से संबंधित होते हैं हालाँकि इसमें निम्नलिखित सिद्धांतों का उल्लेख किया जा सकता है।
भेदभाव: शांति समझौते में पराजित राष्ट्र के नेताओं और सैनिकों को उसके नागरिकों से अलग करके देखा जा सकता है।
मुआवज़ा: पराजित राष्ट्र के वित्तीय नुकसान की भरपाई के लिये हमलावर राष्ट्र पर एक उचित और निष्पक्ष वित्तीय शुल्क लगाया जा सकता है।
निष्कर्ष:

न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत से सैद्धांतिक और व्यावहारिक नैतिकता के बीच अंतर में कमी आती है क्योंकि इसके तहत युद्ध की व्यावहारिकताओं को समझने के लिये मेटा-नैतिक स्थितियों और मॉडलों पर विचार करने के साथ-साथ इसकी तार्किकता पर विचार किया जाता है। यह सिद्धांत राष्ट्र-राज्यों को अपनी शक्ति के उपयोग और नियंत्रण के विनियमन के माध्यम से राष्ट्रीय हित बनाये रखने में सहयता करते हैं।

प्रश्न :”अभिवृत्ति एक छोटी सी चीज है लेकिन इससे बहुत फर्क पड़ता है।” अभिवृत्ति के निर्माण में योगदान देने वाले कारकों और अभिवृत्ति के विभिन्न कार्यों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

उत्तर :
अभिवृत्ति के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
अभिवृत्ति के निर्माण के कारणों की विवेचना कीजिये।
अभिवृत्ति के कार्यों की चर्चा कीजिये।
उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय

अभिवृत्ति का सामान्य अर्थ किसी मनोवैज्ञानिक विषय (अर्थात् व्यक्ति, वस्तु, समूह, विचार, स्थिति या कुछ और जिसके बारे में भाव आ सके) के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव की उपस्थिति है। उदाहरण के लिये वर्तमान भारत में पश्चिमी संस्कृति और ज्ञान के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति है, जबकि पारंपरिक तथा रूढि़वादी मान्यताओं के प्रति आमतौर पर नकारात्मक अभिवृत्ति दिखाई पड़ती है।

प्रारूप

अभिवृत्ति के निर्माण के पीछे कारक

संस्कृति: संस्कृति व्यक्ति पर अत्यधिक प्रभाव डालती है। संस्कृति में अपने आप में धर्म, परंपरा, रीति-रिवाज, निषेध, पुरस्कार और प्रतिबंध शामिल हैं। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा संस्कृति लोगों के दृष्टिकोण को आकार देती है। संस्कृति व्यक्तिगत विश्वासों, दृष्टिकोणों और व्यवहारों को सिखाती है जो किसी के जीवन और समाज में स्वीकार्य हैं।
परिवार: परिवार एक व्यक्ति के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण और निकटतम सामाजिक समूह है। यह मनोवृत्ति निर्माण की नर्सरी है। परिवार प्रणाली में माता-पिता अधिक प्रभावशाली होते हैं जो एक बच्चे की मनोवृत्ति का निर्माण करते हैं। सयुंक्त परिवार और भाई-बहन के रिश्ते, विशेष रूप से, मनोवृत्ति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सामाजिक समूह: परिवार के अलावा कई सामाजिक समूह मनोवृत्ति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिसमें मित्र, सहकर्मी, आदि शामिल हैं। यदि भारत में मतदान पैटर्न पर विचार करें तो ऐसे लोग हैं जो उम्मीदवार के भाषणों को नहीं सुनते हैं, समाचार पत्र नहीं पढ़ते हैं वे बस दोस्तों, परिवार आदि से बात करते हैं और एक उम्मीदवार को वोट देते हैं। परिवार, मित्र और ऐसे अन्य सामाजिक समूह उम्मीदवार की पसंद को निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं।
संस्थाएँ: एक आदमी कभी अकेला नहीं होता है। पालने से लेकर कब्र तक वह किसी न किसी संस्था के प्रभाव में रहता है। उदाहरण के लिये: स्कूल और कॉलेज जैसे शैक्षणिक संस्थान ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, किसी व्यक्ति के विश्वासों, मूल्यों को निर्देशित करते हैं और आकार देते हैं तथा और इस प्रकार अभिवृत्ति का निर्माण करते हैं।
परिचितता: परिचितता सकारात्मक दृष्टिकोण को जन्म देती है। मनुष्य को आमतौर पर अज्ञात होने का डर होता है, इसलिये कोई भी परिचित चीज उसे शांति का अनुभव करा सकती है। परिचित और क्लासिकल कंडीशनिंग एक व्यक्ति की भावनाओं पर कार्य करती है और इसलिये अभिवृत्ति दृष्टिकोण के भावनात्मक घटक को आकार देती है।
अभिवृत्ति के कार्य

ज्ञान फलन: अभिवृत्तियों का एक ज्ञान फलन होता है, जो व्यक्तियों को अपने परिवेश को समझने और अपने विचारों और सोच में सुसंगत रहने में सक्षम बनाता है। अधिकांश अभिवृत्तियाँ किसी न किसी रूप में इस मूल कार्य की पूर्ति करती हैं।
उपयोगितावादी कार्य: यह व्यक्तियों, समूहों और उनके वातावरण में स्थितियों को समझते हुए लाभ को अधिकतम करने और नुकसान को कम करने में व्यक्तियों की मदद करता है। उपयोगितावादी दृष्टिकोण ऐसे व्यवहार की ओर ले जाता है जो किसी के हितों को अनुकूलित करता है।
सामाजिक भूमिका निभाना: अभिवृत्ति एक सामाजिक भूमिका निभाने में मदद करती है, एक व्यक्ति की आत्म-अभिव्यक्ति और सामाजिक संपर्क में मदद करती है। अभिवृत्ति की इस सामाजिक भूमिका को सामाजिक पहचान कार्य के रूप में जाना जाता है, यह एक व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत और सामाजिक पहचान स्थापित करने की इच्छा को रेखांकित करता है।
एक व्यक्ति के आत्म-सम्मान को बनाए रखना: अभिवृत्ति किसी व्यक्ति के आंतरिक मानसिक संघर्ष से निपटने के लिये रक्षा तंत्र के रूप में काम कर सकता है जो व्यक्तिगत तनाव को दर्शाता है। रक्षा तंत्र किसी व्यक्ति के वास्तविक उद्देश्यों को खुद से छिपाते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से उसे शत्रुतापूर्ण या धमकी देने वाले समूहों से अलग करते हैं।
निष्कर्ष

एपीजे अब्दुल कलाम के अनुसार “सभी पक्षी बारिश के दौरान आश्रय ढूँढते हैं। लेकिन ईगल बादलों के ऊपर उड़कर बारिश से बचता है।” इसका मतलब है कि समस्याएँ आम हैं, लेकिन रवैये से फर्क पड़ता है।

More Related PDF Download

Maths Topicwise Free PDF >Click Here To Download
English Topicwise Free PDF >Click Here To Download
GK/GS/GA Topicwise Free PDF >Click Here To Download
Reasoning Topicwise Free PDF >Click Here To Download
Indian Polity Free PDF >Click Here To Download
History  Free PDF > Click Here To Download
Computer Topicwise Short Tricks >Click Here To Download
EnvironmentTopicwise Free PDF > Click Here To Download
SSC Notes Download > Click Here To Download

Most Important Ethics integrity and aptitude Question Answer

प्रश्न : सिर्फ शांति के बारे में बात करना पर्याप्त नहीं है, इस पर विश्वास भी करना चाहिये तथा सिर्फ विश्वास करना ही पर्याप्त नहीं है, इस पर कार्य भी करना चाहिये।’ इस कथन को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में विश्लेषित कीजिये। (150 शब्द)

उत्तर :
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शांति की महत्ता को बताइये।
विश्व इतिहास के कुछ उदाहरण बताते हुए प्रश्न में उल्लिखित कथन के औचित्य को सिद्ध कीजिये।
वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर शांति के महत्त्व को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
वर्तमान युग विज्ञान-प्रौद्योगिकी का युग है जहाँ विज्ञान के विकास ने एक तरफ मानव जीवन को सरल एवं सुलभ बनाया है तो वहीं दूसरी तरफ महाविनाश के हथियारों जैसे परमाणु बम, मिसाइल, टैंक आदि का आविष्कार किया है। कुछ देशों की महत्त्वाकांक्षाओं ने बीसवीं सदी में विश्व को दो विश्वयुद्धों में झोंक दिया जिसने व्यापक नरसंहार व सामाजिक-आर्थिक विनाश तो किया ही साथ में विश्व शांति के महत्त्व को भी उजागर किया।

वर्तमान विश्व तकनीकी रूप से एकीकृत होने के बावजूद कई विचारधाराओं में बँटा हुआ है एवं सभी देश स्वयं की स्वार्थपूर्तियों में लगे हुए हैं। कुछ देशों के द्वारा स्वयं के हितों के लिये विश्व में अशांति पैलाने का कार्य किया गया है, जैसे- वर्तमान में उत्तर कोरिया, ईरान, इराक, सीरिया आदि देशों के संदर्भ में देखा जा सकता है। सैन्य प्रतिद्वंद्विताओं ने जहाँ एक तरफ हथियारों की होड़ को बढ़ाया है, वहीं दूसरी तरफ अन्य नवीन चुनौतियों जैसे साइबर वार, ट्रेडवार आदि को भी जन्म दिया है।

मतभेदों के इस दौर में रूजवेल्ट महोदया का यह कथन, ‘‘सिर्प शांति की बात करना पर्याप्त नहीं, इस पर विश्वास भी करना चाहिये तथा सिर्प विश्वास करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि इस पर कार्य भी करना चाहिये’’ अत्यधिक तार्किक प्रतीत होता है। हालाँकि विश्व शांति हेतु कई प्रयास किये जा चुके हैं, उदाहरणस्वरूप- इजराइल व फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन द्वारा ओस्लो अकार्ड पर हस्ताक्षर करना लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को सुलझाने का गंभीर प्रयास था। वर्ष 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाहौर की यात्रा भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर करने की एक अनुकरणीय पहल थी। वर्तमान इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद अली द्वारा इरिट्रिया के साथ किया गया समझौता एक प्रशंसनीय पहल है, जिसके लिये उन्हें वर्ष 2019 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।

वस्तुत: विश्व में शांति की पहल के अनेकों उदाहरण विद्यमान हैं किंतु कई ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ कुछ देश स्वयं को शांतिप्रिय घोषित करते हैं, वैश्विक मंचों पर विश्व शांति की बात तो करते हैं; किंतु वास्तविकता यह है कि वे उस पर अमल नहीं करते जैसा कि चीन द्वारा वन चाइना नीति को पूरा करने के लिये हॉन्गकॉन्ग में पैलाई गई अशांति। रूस व अमेरिका की आपसी प्रतिद्वंद्विता ने वैश्विक अशांति को जन्म दिया है। ऐसे में यह तथ्य तार्किक प्रतीत होता है कि सिर्प शांति की बात करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस पर अमल भी करना चाहिये।

इस प्रकार देखा जाए तो वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय संबंध, देशों के स्वहितों से परिचालित हैं। ऐसे में वैश्विक शांति वह महत्त्वपूर्ण विचार है जो कि इनके बीच मतभेदों को समाप्त कर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को मूर्त कर सकती है। इस संदर्भ में भारतीय विदेश नीति एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करती है जो कि विश्व-बंधुत्व एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को चरितार्थ करती है एवं ‘‘वसुधैव कुटुंबकम्’’ का लक्ष्य रखती है।

प्रश्न : “भ्रष्टाचार लोक सेवक के चरित्र के नैतिक पतन के साथ-साथ सरकारी प्रणालियों और प्रक्रियाओं की त्रुटियों को भी संदर्भित करता है”। परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

उत्तर :
भ्रष्टाचार को संक्षेप में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
नैतिक पतन के कारण होने वाले भ्रष्टाचार के कारणों की चर्चा कीजिये।
सरकारी प्रणाली में मौजूद कमियों के कारण होने वाले भ्रष्टाचार पर चर्चा कीजिये।
लोक सेवा में भ्रष्टाचार को कम करने के लिये कुछ उपाय सुझाते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:

भ्रष्टाचार से आशय निजी लाभ के लिये सार्वजनिक पद का दुरूपयोग करना है या दूसरे शब्दों में कहें तो किसी पदाधिकारी द्वारा अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये अपने पद, रैंक या स्थिति का दुरूपयोग करना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
इस परिभाषा के आधार पर भ्रष्ट आचरण के उदाहरणों में निम्नलिखित शामिल होंगे: रिश्वतखोरी, जबरन वसूली, धोखाधड़ी, भाई-भतीजावाद, सार्वजनिक संपत्तियों का दुरूपयोग या इनका निजी उपयोग।
मुख्य भाग:

सार्वजनिक सेवा में नैतिक पतन की वजह से होने वाले भ्रष्टाचार के कारण:
सत्यनिष्ठा का अभाव: कुछ मामलों में भ्रष्ट आचरण, लोक सेवक द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करने या अनुचित व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिये स्वैच्छिक रुप से किया जा सकता है।
लालच: बहुत से लोक सेवक धन के अधिक लालच के कारण भ्रष्टाचार करते हैं।
निजी क्षेत्र की तुलना में कम वेतन: निजी क्षेत्र की तुलना में सिविल सेवकों का कम वेतन होना भी भ्रष्टाचार का एक कारण हो सकता है।
कम वेतन होने के कारण कुछ कर्मचारी रिश्वत का सहारा ले सकते हैं।
शासन प्रणाली में व्याप्त कमियों के कारण होने वाला भ्रष्टाचार:
भ्रष्टाचार को गंभीरता से न लेना: कुछ अपराध इस गलत धारणा में किये जाते हैं कि भ्रष्टाचार करना आपराधिक कृत्य नहीं है।
सिविल सेवा का राजनीतिकरण: जब सिविल सेवक राजनीति से प्रेरित होकर या उसके दवाब में अपने पद का दुरूपयोग करते हैं तो इससे उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
सार्वजनिक जीवन पर भ्रष्टाचार का प्रभाव:
सेवाओं में गुणवत्ता की कमी: भ्रष्टाचार वाली व्यवस्था में सेवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
इसके कारण गुणवत्तापूर्ण सेवा हेतु लोगों को भुगतान करना पड़ सकता है। इसे नगर पालिका, विद्युत्, राहत कोष के वितरण आदि जैसे कई क्षेत्रों में देखा जाता है।
उचित न्याय का अभाव: न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार होने से उचित न्याय नहीं मिल पाता है। जिससे अपराध के शिकार लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
निष्कर्ष:

लोक सेवा में भ्रष्टाचार को कम करने के लिये व्यापक उपाय करने की आवश्यकता है जैसे:
सिविल सेवा बोर्ड: सिविल सेवा बोर्ड की स्थापना करके सरकार अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप पर अंकुश लगा सकती है।
अनुशासनात्मक प्रक्रिया को सरल बनाना: अनुशासनात्मक प्रक्रिया को सरल बनाकर और विभागों के अंदर निवारक सतर्कता को मजबूत करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भ्रष्ट सिविल सेवक संवेदनशील पदों पर आसीन न हों।
मूल्य-आधारित प्रशिक्षण पर जोर देना: सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के लिये सभी सिविल सेवकों के मूल्य-आधारित प्रशिक्षण पर बल देना महत्त्वपूर्ण है।
सभी प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक नैतिकता को एक अभिन्न अंग बनाना चाहिये और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशों के आधार पर सिविल सेवकों के लिये एक व्यापक आचार संहिता होना काफी महत्त्वपूर्ण है।

Topic Related Pdf Download

pdfdownload.in will bring you new PDFs on Daily Bases, which will be updated in all ways and uploaded on the website, which will prove to be very important for you to prepare for all your upcoming competitive exams.

The above PDF is only provided to you by PDFdownload.in, we are not the creator of the PDF, if you like the PDF or if you have any kind of doubt, suggestion, or question about the same, please send us on your mail. Do not hesitate to contact me. [email protected] or you can send suggestions in the comment box below.

Please Support By Joining Below Groups And Like Our Pages We Will be very thankful to you.

Author: Deep