Battles in Rajasthan history pdf in Hindi

Battles in Rajasthan history pdf in Hindi

Battles in Rajasthan history pdf in Hindi

Hello friends,

Battles in Rajasthan history pdf in Hindi:- Today we are sharing Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi. This Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi for upcoming examination like 1st grade Teacher, SSC CGL, BANK, RAILWAYS, RRB NTPC, LIC AAO, etc. Exams are starting after a few months. In those exams, a lot of questions are coming from Most Important Rajasthan history notes in Hindi pdf, so Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi for UPSC Download is important in all exams. In Our Pdfdownload.in Website providing you an Important PDF of Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi which is helpful for students who preparing for all such competitive exams.

Common questions are placed in Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi Download which has been put together in most examinations, you can download this PDF Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi Notes very simply by clicking on the Download Button at the bottom. pdfdownload.in is an online Educational Platform, where you can download free PDF for UPSC, SSC CGL, BANK, RAILWAYS,  RRB NTPC, LIC AAO, and many other exams.

There are around 20-25 questions in each Government Exams related to Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi and you can solve 18-20 questions out of them very easily by reading these Notes of Most Important Rajasthan history notes in Hindi pdf The complete PDF of Most Important Battles in Rajasthan history pdf in Hindi Download is attached below for your reference, which you can download by clicking at the Download Button. pdfdownload.in will update many more new pdfs and study materials and exam updates, keep Visiting and share our post, So more people will get this.

Download GK Notes 

Most Important Battles in Rajasthan Question Answer

आबू का युद्ध (1178 ई.) –
1175 ई. में मुल्तान पर अधिकार करने के बाद 1178 ई. में गजनी का शासक मोहम्मद गोरी भारत विजय हेतु आबू के निकट पहुँच गया। इस समय गुजरात पर चालुक्य वंशी मूलराज द्वितीय का शासन था। मूलराज द्वितीय ने आबू के युद्ध में मोहम्मद गोरी को पराजित कर दिया। मोहम्मद गोरी की यह भारत में प्रथम पराजय थी।

तुमुल का युद्ध (1182 ई.) –
चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय ने साम्राज्य विस्तार की नीति के तहत 1182 ई. में चन्देल राज्य पर आक्रमण कर दिया। चन्देल शासक परमर्दिदेव के प्रसिद्ध सेनानायक आल्हा व ऊदल पृथ्वीराज चौहान की सेना का मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए, जिसमे पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई।

तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) –
मोहम्मद गोरी ने 1191 ई. में भटिण्डा (तबरहिन्द) को जीत लिया। पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने तराइन (जिला करनाल, हरियाणा) के मैदान में मोहम्मद गोरी (तुर्क सेना) का सामना किया, जिसमे पृथ्वीराज चौहान तृतीय की विजय हुई।

तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) –
तराइन के प्रथम युद्ध में पराजय के बाद एक विशेष प्रशिक्षित घुड़सवार सेना के साथ 1192 ई. में मोहम्मद गोरी पुनः तराइन के मैदान में आ गया। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान तृतीय के नेतृत्व वाली चौहान सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया। पृथ्वीराज को बंदी बना लिया तथा अजमेर और दिल्ली पर तुर्को का अधिकार हो गया।

रणथम्भौर का युद्ध (1301 ई.) –
रणथम्भोर का सबसे प्रतापी एवं प्रसिद्ध शासक हम्मीर देव चौहान था। जिसने दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मुहमदशाह को शरण प्रदान की थी। जिस वजह से अलाउद्दीन खिलजी क्रोधित होकर 1300 ईस्वी में रणथम्भोर दुर्ग पर आक्रमण किया था। कई दिनों तक डेरा डालने के बाद भी सफल न होने पर अलाउद्दीन खिलजी छल-कपट से हम्मीर देव के दो विश्वस्त मंत्रियों को अपनी ओर झुका लेता है जिनसे दुर्ग के गुप्त रास्ते पता कर दुर्ग को भेद कर अंदर पहुंच गया था। राणा हम्मीर लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त होता है तथा हम्मीर की रानी रंगदेवी, अन्य रानियों एवं दुर्ग की स्त्रियों ने जोहर किया था। जुलाई 1301 ईस्वी में रणथंबोर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया था। यह शाखा राजस्थान का प्रथम शाखा था।

चित्तौड़ का युद्ध (1303 ई.) –
अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया। जिसमें रतनसिंह ने केसरिया किया था तथा उसकी रानी पद्मिनी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर किया था। रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी। इसमें रतनसिंह के सेनापति गौरा एवं बादल वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर अपने पुत्र के नाम पर खिज्राबाद रखा था तथा अलाउद्दीन ने इस दुर्ग की जिम्मेदारी अपने पुत्र खिज्र खां को सौपी। यह मेवाड़ का प्रथम साका तथा राजस्थान का दूसरा साका था। राजस्थान का प्रथम साका रणथम्भौर दुर्ग का है।

सिवाना का युद्ध (1308 ई.) –
1308 ईस्वी में कमालुद्दीन गर्ग के नेतृत्व में अलाउद्दीन की सेना ने सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया था। उस समय सिवाना का शासक शीतलदेव/सातलदेव था। शीतलदेव के पुत्र का नाम सोम था। शीतलदेव का वीर सेनापति भावले पंवार था। काफी समय बीत जाने के बावजूद अलाउद्दीन की सेना सिवाना दुर्ग को अपने कब्जे में नहीं ले सकी। फिर उन्होंने छल-कपट करके शीतलदेव के सेनापति भावले पंवार को लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया और भावले पंवार से अलाउद्दीन की सेना ने दुर्ग के गुप्त रास्ते पता किये। जिससे वे दुर्ग में प्रवेश करने में सफल हुए। शीतलदेव एवं सोम लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए और दुर्ग की ललनाओं ने जौहर किया था। अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने दुर्ग के प्रमुख पेयजल स्रोत भांडेलाव तालाब में गौमांस/गौरक्त मिलकर पेयजल को दूषित कर दिया था। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा सिवाना दुर्ग को जीत लिए जाने के बाद इसका नाम बदलकर खैराबाद रख दिया गया।

जालौर का युद्ध (1311 ई.) –
सन 1311 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग पर आक्रमण किया था। उस समय वहां का शासक का कान्हड़देव था। अलाउद्दीन खिलजी हर तरीके से दुर्ग को फतह करने में नाकाम रहा था। फिर उन्होंने कान्हड़देव के सेनापति दहिया बिका को लालच देकर गुप्त रास्तों का पता कर जालौर दुर्ग पर आक्रमण किया। जिसमें कान्हड़देव वीरगति को प्राप्त हुए थे तथा उनके पुत्र वीरमदेव ने अपनी कुलदेवी आशापुरा माता के सामने कटार घोंप कर आत्महत्या कर दी थी। इस प्रकार इन वीरों ने केसरिया किया था तथा कान्हड़देव की रानी जैतल दे जोहर किया था। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर का नाम बदलकर जलालाबाद रखा था।

सिंगोली का युद्ध (1326) –
1326 ई. में सिसोदिया राणा हम्मीर ने सिंगोली के युद्ध (चित्तौड़) में दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को पराजित किया।

सारंगपुर का युद्ध (1437 ई.) –
महाराणा कुम्भा ने 1437 ई० में ‘सारंगपुर के युद्ध’ में मालवा/मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम को पराजित कर मालवा पर विजय के उपलक्ष्य में 9 मंजिले कीर्ति स्तम्भ/विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।

दाडिमपुर का युद्ध (1473 ई.) –
कुम्भा के पुत्र रायमल ने अपने समर्थकों की सहायता से दाडिमपुर के युद्ध में अपने भाई उदा को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। उदा वहां से भागकर माण्डू चला गया, जहाँ बिजली गिरने से उसकी मृत्यु हो गई।

More Related PDF Download

Maths Topicwise Free PDF >Click Here To Download
English Topicwise Free PDF >Click Here To Download
GK/GS/GA Topicwise Free PDF >Click Here To Download
Reasoning Topicwise Free PDF >Click Here To Download
Indian Polity Free PDF >Click Here To Download
History  Free PDF > Click Here To Download
Computer Topicwise Short Tricks >Click Here To Download
EnvironmentTopicwise Free PDF > Click Here To Download
SSC Notes Download > Click Here To Download

Most Important Battles in Rajasthan Question Answer

खातौली का युद्ध (1517 ई.) –
राणा साँगा ने 1517 में खातोली (बूंदी) के युद्ध में इब्राहिम लोदी को परास्त किया।

बाड़ी का युद्ध (1518 ई.) –
राणा सांगा ने 1518 में बाड़ी (धौलपुर) के युद्ध में इब्राहिम लोदी को परास्त किया।

गागरोण का युद्ध (1519 ई.) –
राणा सांगा ने 1519 में गागरोन के युद्ध (झालावाड़) में मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय को पराजित किया।

ढोसी का युद्ध (1526 ई.) –
बीकानेर के राठौड़ शासक राव लूणकरण ने 1526 ई. में नारनौल (हरियाणा) के शासक शेख अबीमीरा के साथ ढोसी का युद्ध किया जिसमे राव लूणकरण वीरगति को प्राप्त हुआ तथा राठौड़ सेना पराजित हुई।

बयाना का युद्ध (16 फरवरी, 1527 ई.) –
16 फरवरी, 1527 ई. में हुये बयाना के युद्ध में साँगा के सैनिकों ने बाबर के सैनिकों (दुर्ग रक्षक बाबर का बहनोई मेहंदी ख्वाजा) को हराकर बयाना दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527 ई.) –
यह युद्ध राणा सांगा एवं बाबर के मध्य 17 मार्च, 1527 को लड़ा गया। खानवा के युद्ध में राणा साँगा बाबर से पराजित हो गया। खानवा के युद्ध (रुपवास-भरतपुर) में बाबर ने ‘जिहाद/धर्म युद्ध’ का नारा दिया। इस युद्ध में सांगा ने ‘पाती पेरवन’ प्रथा का प्रयोग किया जिसके तहत इसमें राजस्थान के 7 राजा, 9 राव तथा 104 सामंत शामिल हुए। बाबर ने इस युद्ध में ‘तुलुगमा युद्ध पद्धति’ का प्रयोग किया जिसमे उनकी सेना के पास तोपें एवं बंदूकें थी। युद्ध में सांगा के सिर पर एक तीर लगा जिससे सांगा घायल हो थे, उन्होंने अपना राजचिह्न एवं हाथी सादड़ी के झाला अज्जा को दे दिए एवं युद्ध का मैदान छोड़कर बसवा गांव (दौसा) पहुँच गए। बसवा (दौसा) में ‘सांगा का चबूतरा’ बना हुआ है।

सेवकी गाँव का युद्ध (1529 ई.) –
मारवाड़ के राव गांगा के विद्रोही चाचा शेखा ने नागौर के शासक दौलत खाँ की सहायता से जोधपुर पर आक्रमण करने का प्रयास किया किन्तु रावा गांगा ने बीकानेर के राव जैतसी की सहायता से सेवकी गाँव (जोधपुर) के युद्ध में आक्रमणकारियों को पराजित कर दिया।

चित्तौड़गढ़ का युद्ध (1534 ईस्वी) –
विक्रमादित्य के शासन काल में 1533 ई० में गुजरात के बहादुर शाह ने आक्रमण किया। लेकिन हाडा रानी कर्मावती ने संधि कर ली जिससे बहादुर शाह वापस चला गया। विक्रमादित्य के शासन काल में 1534 ई० में गुजरात के बहादुर शाह ने फिर से आक्रमण किया। हाड़ारानी कर्मवती/कर्णवती ने बादशाह हुमायूँ से सहायता के लिए राखी भेजी थी, लेकिन हुमायूँ की समय पर मदद न मिलने के कारण विक्रमादित्य व उदयसिंह को ननिहाल बूँदी भेज दिया गया। हाड़ारानी कर्मावती ने दुर्ग की जिम्मेदारी देवलिया के बाघसिंह को सौंपी। देवलिया (प्रतापगढ़) के रावत बाघसिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने युद्ध किया व लड़ते हुये मारे गये (केसरिया ) तथा हाडारानी कर्मावती ने 1200 महिलाओं के साथ जौहर किया। यह चित्तौड़गढ़ का दूसरा साका था।

मालवी का युद्ध (1540 ईस्वी) –

उदयसिंह ने शक्ति संगठित कर मारवाड़ के राव मालदेव की सहायता से 1540 ई. में मावली (उदयपुर) के युद्ध में बणवीर को पराजित कर चित्तौड़ सहित सम्पूर्ण मेवाड़ राज्य पर अधिकार कर लिया।

पाहेबा का युद्ध (1541 ई.) –
राव मालदेव (सेनापति जेता एवं कुम्पा) ने 1541 में पाहोपा साहेबा के युद्ध में बीकानेर के राव जैतसी को हराया।बीकानेर पर मालदेव का अधिकार हो गया। मालदेव ने पूपा को झुंझुनूं की जागीर देकर बीकानेर का प्रशासक नियुक्त कर दिया।

गिरि-सुमेल/जैतारण का युद्ध (जनवरी, 1544 ई.) –
5 जनवरी, 1544 ई. में जैतारण (पाली) के निकट गिरी-सुमेल/सुमेलगिरी के युद्ध में शेरशाह सूरी ने बड़ी कठिनाइयों से मालदेव की सेना की पराजित किया तब शेरशाह सूरी कहा कि ‘एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता’। इस युद्ध में मालदेव के सेनापति जेता एवं कुम्पा मारे गए और मालदेव जोधपुर चले गए। बीकानेर के राव कल्याणमल ने गिरी-सुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी की सहायता की थी।

हरमाड़ा का युद्ध (1557 ई.) –
24 जून, 1557 ई. को हरमाड़ा (अजमेर) का युद्ध मेवाड़ के राणा उदयसिंह और अजमेर के हाजीखाँ पठान के बीच लड़ा गया था।इसमें राणा उदयसिंह की सेना पराजित हुई।

चित्तौड़ का युद्ध (1567-68 ई.) –
उदयसिंह के शासन काल में 1567-68 में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। उदयसिंह सेनापतियों जयमल व फत्ता को किले का भार सौंपकर गोगुन्दा चला गया। 23 फरवरी, 1568 ई. को जयमल, फत्ता एवं जयमल के भतीज कल्लाजी (चार हाथ के लोक देवता) इस युद्ध में मारे गये( केसरिया ) व उनकी रानियों ने फूल कँवर (वीर फता की पत्नी) के नेतृत्व में जौहर किया, यह चित्तौड़ का तीसरा व अन्तिम साका था।

हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून, 1576 ई.) –
18 जून (ए.एल. श्रीवास्तव एवं राजस्थान बोर्ड की पुस्तकों के अनुसार ) 21 जून (डॉ. गोपीनाथ शर्मा एवं हिन्दी साहित्य अकादमी की पुस्तकों के अनुसार) 1576 ई. में अकबर की तरफ से मानसिंह तथा महाराणा प्रताप (हरावल भाग का नेतृत्व हाकिम खां सूरी ने किया) के मध्य हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। इसमें प्रताप की पराजय हुई, लेकिन वे प्रताप को बन्दी नहीं बना सके। हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों और महाराणा के सैनिकों के साथ-साथ दोनों पक्षों के लूणा, रामप्रसाद, गजराज, गजमुक्त हाथियों ने बहुत वीरता दिखाई थी। युद्ध में महाराणा प्रताप घायल होने के बाद राजचिह्न झाला बींदा/मन्ना को धारण करवाकर युद्ध भूमि से बाहर बलीचा चले गए। वहां पर प्रताप के घोड़े चेतक ने अंतिम साँस ली थी। यहां बलीचा में चेतक का चबूतरा/स्मारक बना हुआ है। इस युद्ध को अबुल फजल ने ‘खमनौर का युद्ध’ और बदायूँनी ने ‘गोगुन्दा का युद्ध’ कहा है।

कुम्भलगढ़ का युद्ध (1578 ई.) –
अकबर ने एक सेना शाहबाज खाँ के नेतृत्व में कुम्भलगढ़ पर विजय हेतु भेजी। राणा प्रताप किले की रक्षा का जिम्मा मानसिंह सोनगरा को सौंपकर पहाड़ों में चले गए। कड़ी मेहनत के बाद अप्रैल, 1578 ई. में शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ पर अधिकार कर लिया। इसके बाद प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बनाया था।

दिवेर का युद्ध (अक्टूबर, 1582 ई.) –
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की भूमि को मुक्त करने के लिए अभियान दिवेर से प्रारम्भ किया था। 1582 ई० में प्रताप व अकबर के मध्य दिवेर का युद्ध हुआ जिसे कर्नल जैम्स टॉड ने मैराथन का युद्ध कहा क्योंकि यहाँ से महाराणा प्रताप की विजय की शुरूआत हुई। दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगल गढ़ पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप अकबर द्वारा मेवाड़ की 36 मुगल चौकियों को बंद करना पड़ा था। महाराणा प्रताप ने माण्डलगढ़ व चित्तौड़गढ़ के अलावा पूरे मेवाड़ पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।

दत्ताणी का युद्ध (1583 ई.) –
1583 ई. में राव सुरताण और जगमाल के मध्य दत्ताणी का युद्ध हुआ, इसमें जगमाल मारा गया था।

मतीरे की राड़ (1644 ई.) –
1644 ईस्वी में नागौर के अमरसिंह राठौड़ तथा बीकानेर के करणसिंह के मध्य जाखमणियाँ गाँव को लेकर सीमा
विवाद हुआ, जो ‘मतीरे की राड़’ के रूप में प्रसिद्ध है। जिसमें अमरसिंह विजय हुआ था।

दौराई का युद्ध (मार्च, 1659 ई.) –
अजमेर के पास दौराई नामक स्थान पर मार्च, 1659 ई. में औरंगजेब और दाराशिकोह के मध्य उत्तरधिकर युद्ध हुआ, जिसमें औरंगजेब जीता था।

पिलसूद का युद्ध (1715 ई.) –
1715 ई. में पिलसूद (भीलवाड़ा) नामक स्थान पर सवाई जयसिंह और मराठों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें सवाई जयसिंह ने मराठों को पराजित किया था।

मन्दसौर का युद्ध (1733 ई.) –
1732 ई. में सवाई जयसिंह को तीसरी बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया गया। जयसिंह ने पुन: मालवा में मराठा प्रसार को रोकने के प्रयास किये, परन्तु फरवरी, 1733 ई. में वह मराठों से पराजित हो गया ।

मुकुन्दरा का युद्ध (1735 ई.) –
17 जुलाई, 1734 ई. को मराठों ने रामपुरा के निकट मुकुन्दरा में राजपूत सेना को घेरकर पराजित कर दिया। जयपुर के सवाई जयसिंह ने सन्धि कर मराठों को चौथ देना स्वीकार कर लिया।

गंगवाना का युद्ध (1741 ई.) –
1741 ई. में गंगवाना (जोधपुर) के युद्ध में सवाई जयसिंह ने जोधपुर के अभयसिंह और नागौर के बख्तसिंह की संयुक्त सेना को पराजित किया था।

राजमहल का युद्ध (1747 ई.) –
सवाई जयसिंह के पुत्रों ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के मध्य 1747 ई. में राजमहल (टोंक) स्थान पर उत्तराधिकार युद्ध हुआ, जिसमें ईश्वरीसिंह की विजय हुई।

मानपुरा का युद्ध (1748 ई.) –
जयपुर के सवाई ईश्वरीसिंह ने मार्च, 1748 ई. में मानपुरा (अलवर) नामक स्थान पर अहमदशाह अब्दाली की सेना को पराजित किया था।

बगरू का युद्ध (1748 ई.) –
जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के मध्य दूसरा उत्तराधिकार युद्ध 1748 ई. में बगरू (जयपुर) नामक स्थान पर हुआ। इस युद्ध में माधोसिंह ने ईश्वरीसिंह को पराजित किया था।

भटवाड़ा का युद्ध (1761 ई.)-
1761 ई. में कोटा (नेतृत्व झाला जालिमसिंह ने किया) और जयपुर राज्यों के मध्य भटवाड़ा का युद्ध हुआ, जिसमें जयपुर की सेना पराजित हुई।

तूंगा का युद्ध (28 जुलाई, 1787 ई.) –
28 जुलाई, 1787 ई. को दौसा के पास तूंगा स्थान पर मराठा सेनापति महादजी सिंधिया और जयपुर के सवाई प्रतापसिंह के मध्य युद्ध हुआ था, इस युद्ध में सवाई प्रतापसिंह ने जोधपुर के शासक विनयसिंह की मदद से सिंधिया को पराजित किया।

पाटन का युद्ध (20 जुलाई, 1790 ई.) –
पाटन का युद्ध महादजी सिंधिया और सवाई प्रतापसिंह के मध्य 20 जुलाई, 1790 ई. को हुआ था। इस युद्ध में मराठा सेनापति महादजी सिंधिया विजयी रहे थे।

गिंगोली का युद्ध (1807 ईस्वी) –
यह युद्ध 1807 ईस्वी में परबतसर गांव में जयपुर के जगतसिंह द्वितीय एवं जोधपुर के मानसिंह राठोड के मध्य हुआ, जिसमें जगतसिंह विजय हुआ था।

आउवा का युद्ध (सितम्बर, 1857) –
इस युद्ध में आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत के नेतृत्व में क्रांतिकारियों (जोधपुर लीजियन के विद्रोही सैनिकों) की सेना ने कैप्टन हीथकोट के नेतृत्व में अंग्रेजी एवं जोधपुर राज्य की संयुक्त सेना को हराया था।

Topic Related PDF Download

Download pdf

Download pdf

Download pdf

Download pdf

pdfdownload.in will bring you new PDFs on Daily Bases, which will be updated in all ways and uploaded on the website, which will prove to be very important for you to prepare for all your upcoming competitive exams.

The above PDF is only provided to you by PDFdownload.in, we are not the creator of the PDF, if you like the PDF or if you have any kind of doubt, suggestion, or question about the same, please send us on your mail. Do not hesitate to contact me. [email protected] or you can send suggestions in the comment box below.

Please Support By Joining Below Groups And Like Our Pages We Will be very thankful to you.

TEGS:-important battles in indian history pdf in hindi,rajasthan gk pdf in hindi 2021,राजस्थान के युद्ध pdf download,rajasthan gk quiz in hindi pdf,राजस्थान के युद्ध ट्रिक,राजस्थान के प्रमुख युद्ध एवं सम्बंधित प्रश्नोत्तरी,पीपाड़ का युद्ध कब हुआ,हरमाड़ा का युद्ध कब हुआ

Author: Deep

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *